युवा गायिका और कवयित्री चिन्मयी त्रिपाठी ने जिंदगी में वही किया, जिससे उन्हें सबसे ज्यादा सुकून मिलता था। संगीत। अपनी लगी-लगाई नौकरी छोड़ कर संगीत की दुनिया में मकाम बनाना आसान नहीं था, पर उन्होंने वो राह ली, जो मुश्किल भी थी और सुकूनदायक भी।
Chinmayi Tripathi: इन दिनों अक्सर यह बात होती है कि युवाओं को अपना करियर उसी क्षेत्र में बनाना चाहिए, जहां उनका हुनर है। ऐसी कई किताबें हैं, फिल्में हैं, जो इस बात पर जोर देती है कि आपको हमेशा उसी क्षेत्र और दिशा में काम करना चाहिए, जहां आपका दिल लगता है।
गायिका चिन्मयी त्रिपाठी ने भी बिलकुल यही किया था। एमबीए करने के बाद चिन्मयी गुड़गांव की एक कंपनी में काम करती थीं। पर उनका दिल लगता था संगीत में। गाने में और संगीत बनाने में। सो एक दिन, दिल्ली-गुड़गांव की भीड़ भरी सड़कों पर गाड़ी पर घंटों ट्रैफिक जाम में फंसने के बाद उनके अंदर से आवाज आई कि अब यहां से डेरा उठाओ और उड़ जाओ वहां जहां तुम्हारा दिल लगता है। चिन्मयी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया, अपना फोक बाजा दोबारा उठाया और पकड़ ली मुंबई की राह।
चिन्मयी त्रिपाठी ना सिर्फ गाने गाती हैं, वे कविताएं और गाने लिखती भी हैं और धुन भी बनाती हैं। हाल ही में उन्होंने एक बेहद नया और उम्दा प्रयोग किया है, बैक टू बचपन नाम से गानों का एल्बम बना कर। इस संग्रह में हिंदी के नामचीन कवियों की बाल कविताओं पर बने गाने हैं। ये कवि हैं, नरेश सक्सेना, विनोद कुमार शुक्ल, स्वानंद किरकिरे, श्याम सुशील, सुशील शुक्ला और वरुण ग्रोवर। चिन्मयी कहती हैं, ‘हमारा पहला एल्बम जो खासतौर से बच्चों के लिए है और उनको अच्छी, सुंदर, मजेदार कविताओं से जोड़ने का एक प्रयास है। ऐसी कविताएं जिनमें मस्ती भी हैं और जिंदगी के रंगों को अलग तरह से देखने का नजरिया भी।’
चिन्मयी और उनके साथी जोएल मुखर्जी मिलकर धुन बनाते हैं और गाते हैं। चिन्मयी कहती हैं, ‘मुंबई में संगीत के क्षेत्र में अपनी राह बनाना आसान नहीं है। यहां अलग किस्म का संघर्ष है। उनके लिए और भी ज्यादा जो लीक से हट कर काम करना चाहते हैं।’
चिन्मयी ने भी अपनी अलग राह चुनी। उन्होंने मंच को अपना माध्यम बनाया। उन्होंने काव्य राग फाउंडेशन बनाया, जहां वे अपनी पसंद की कविताएं या गानों को धुन देती हैं और देश भर में विभिन्न मंचों पर सुनाती हैं। इस मंच पर काव्य प्रेमी लोग आकर अपने गाने गा सकते हैं।
चिन्मयी त्रिपाठी के लिए यह सफर आसान नहीं रहा। पर उन्हें सिर्फ फिल्मों में पार्श्व गायिका नहीं बनना था। उनका कहना है, ‘ऐसा नहीं है कि मैं फिल्मों में नहीं गाना चाहती। पर वहां का संघर्ष बिल्कुल अलग है। मुझे लगा कि एक जगह पर अटक जाना मेरे लिए सही नहीं होगा, इसलिए मैंने तय किया कि मैं स्वतंत्र रूप से काम करूंगी। अपनी पसंद के गाने बनाऊंगी और अलग-अलग मंचों से सुनाऊंगी। कहने में यह काम जितना आसान लगता है, उतना है नहीं। लेकिन यह बहुत संतुष्टि देता है।’
बच्चों के गीत को धुन देना और गाना, यह चिन्मयी और जोएल दोनों के लिए अभूतपूर्व अनुभव रहा। कुछ समय पहले चिन्मयी ने बशीर बद्र का एक गीत रिकॉर्ड किया था, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। चिन्मयी का मानना है कि इसके बाद उनके पास कई प्रस्ताव आने लगे हैं। मुंबई की संगीत बिरादरी उनको जानने लगी है।
मध्यप्रदेश के सागर में पली-बढ़ी चिन्मई के माता-पिता को संगीत और संस्कृति से गहरा लगाव रहा हैं। पिता संस्कृत के विद्वान और मां हिंदी साहित्य की। जब चिन्मयी मात्र छह साल की थी, उनका गाना सुनकर एक रिश्तेदार ने उनके माता-पिता को सलाह दी कि अपनी बेटी को संगीत की शिक्षा दीजिए। इस तरह से चिन्मयी सागर यूनिवर्सिटी से संगीत सीखने लगीं। एमबीए करने के बाद नौकरी के दौरान उन्हें लगा कि स्वतंत्र तौर पर संगीत तैयार करना चाहिए। चिन्मयी कहती हैं कि शुरुआत में मैंने तय किया कि प्रसिद्ध हिंदी कवियों की कविताएं संगीत में ढालूंगी। मेरी पीढ़ी के लोग गुलजार और हरिवंश राय बच्चन को तो जानते हैं पर निराला जी या शुक्ल जी को नहीं। मुझे यह बात अखर गई। मैंने तय किया कि मुझे जो कविताएं पसंद आ रही हैं, उन्हें संगीतबद्ध करूंगी।
अपने गायन के लिए विष्णु प्रभाकर पुरस्कार से सम्मानित गायिका चिन्मयी की कविताओं का संग्रह आ चुका है, अपनी कही के नाम से। इस संग्रह में उनकी एक कविता है, हर मौसम का रंग पहन लूं, क्या बसंत क्या सावन, जितना चाहे उतना भीगें, बारिशें पी जाऊं, जो भी चाहे बन जाऊं। पानी, राख, हवा।
बाल कविताओं के एल्बम बैक टू बचपन के बाद जल्द ही अपने साथी कंपोजर और प्रोड्यूसर जोएल मुखर्जी के साथ जावेद अख्तर की लिखी नज्म को भी अपनी आवाज देने जा रही हैं। चिन्मयी के गाने यूट्यूब और स्पॉटीफाई में सुना जा सकता है।