पृथ्वीराज कपूर के चचेरे भाई और जाने-माने कैरेक्टर आर्टिस्ट कमल कपूर के भाई रविंद्र कपूर, जिन्होंने चार दशक से भी ज्यादा बॉलीवुड इंडस्ट्री में काम किया फिर भी उन्हें कभी पहचान नहीं मिली?
Unsung Actor Of Bollywood: बॉलीवुड में जब भी ‘कपूर खानदान’ का जिक्र होता है, तो जहन में चमकते सितारों की लंबी कतार सामने आ जाती है। पृथ्वीराज कपूर की विरासत से लेकर रणबीर कपूर की स्टारडम तक, इस परिवार ने हिंदी सिनेमा को ऐसी पहचान दी है जिस पर पूरी इंडस्ट्री गर्व करती है। लेकिन इसी चमक-दमक के पीछे एक ऐसा नाम भी छिपा है, जिसने करीब 40 साल तक बॉलीवुड में काम किया, फिर भी वह कभी शोहरत की ऊंचाइयों तक नहीं पहुंच पाया।
जी हां, हम बात कर रहे हैं रविंद्र कपूर की जो पृथ्वीराज कपूर के चचेरे भाई और मशहूर कैरेक्टर आर्टिस्ट कमल कपूर के भाई हैं, जिनकी मेहनत, लगन और लंबा फिल्मी सफर होने के बावजूद पहचान गुमनामी में ही सिमट कर रह गई। आखिर क्या वजह रही कि कपूर खानदान का यह सितारा रोशनी में आने से पहले ही फीका पड़ गया? यही है वह अनसुनी कहानी, जो कम ही लोगों को पता है।
आज ही के दिन, 15 दिसंबर 1940 को जन्मे रविंद्र कपूर का नाम भले ही कपूर परिवार से जुड़ा हो, लेकिन उनकी जिंदगी आसान नहीं रही। लोग मानते हैं कि फिल्मी परिवार में जन्म लेने वालों को काम आसानी से मिल जाता है, मगर रविंद्र कपूर के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।
उन्होंने महज 13 साल की उम्र में 1953 की फिल्म ‘ठोकर’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। इसके बाद 1957 में आई फिल्म ‘पैसा’ में भी वह नजर आए, लेकिन रोल इतने छोटे थे कि दर्शक उन्हें पहचान तो लेते थे, पर नाम नहीं जान पाते थे।
हिंदी फिल्मों में मौके कम मिलने के कारण रविंद्र कपूर ने पंजाबी सिनेमा का रुख किया। यही फैसला उनके लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। साल 1960 में आई पंजाबी फिल्म ‘चंबे दी कली’ सुपरहिट रही और इसी फिल्म ने उन्हें असली पहचान दिलाई। इस फिल्म के बाद उन्हें सम्मान भी मिले और उनका नाम चर्चा में आया। सफलता मिलने के बाद रविंद्र कपूर ने दोबारा हिंदी सिनेमा (बॉलीवुड) में वापसी की। उन्होंने ‘यादों की बारात’, ‘आया सावन झूम के’ और ‘कारवां’ जैसी बड़ी और सुपरहिट फिल्मों में काम किया। खास तौर पर फिल्म ‘कारवां’ में जितेंद्र के दोस्त के रूप में उनका किरदार दर्शकों को खूब पसंद आया। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि कई बार उनके किरदारों का नाम क्रेडिट लिस्ट में भी शामिल नहीं किया गया। कुछ फिल्मों में तो उनका रोल इतना छोटा था कि किरदार का नाम तक नहीं होता था। यही वजह रही कि दर्शक उन्हें देखकर कहते थे कि अरे, ये तो वही हैं… लेकिन नाम क्या है?
रविंद्र कपूर लगातार फिल्मों में काम करते रहे। लगभग हर साल उनकी कोई न कोई फिल्म रिलीज होती थी, लेकिन ज्यादातर बार उन्हें सपोर्टिंग रोल ही मिले। 1970 और 1980 के दशक में उन्होंने कई बड़ी और चर्चित फिल्मों में अभिनय किया, जैसे ‘मंजिल मंजिल’, ‘द बर्निंग ट्रेन’ और ‘कयामत से कयामत तक’।
ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, लेकिन इसके बावजूद रविंद्र कपूर का नाम कभी सुर्खियों में नहीं आया। दर्शक उन्हें पहचानते थे, मगर स्टार की तरह उनकी चर्चा नहीं होती थी। हैरानी की बात यह भी रही कि कपूर खानदान से होने के बावजूद उन्हें राज कपूर की मशहूर कंपनी आरके फिल्म्स में कभी काम करने का मौका नहीं मिला। शायद यही वजह रही कि वे पूरी जिंदगी एक काबिल लेकिन गुमनाम अभिनेता बने रहे। रविंद्र कपूर के करियर में बड़े अवॉर्ड या सम्मान तो नहीं आए, लेकिन फिल्मों में उनका योगदान कम नहीं था। उन्होंने करीब 1980 तक लगातार काम किया और अपने सहज अभिनय से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई। उनकी आखिरी फिल्म ‘बेनाम बादशाह’ (1991) थी। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे फिल्मी दुनिया से दूरी बना ली। 3 मार्च 2011 को 70 साल की उम्र में रविंद्र कपूर का निधन हो गया। भले ही उन्हें स्टारडम नहीं मिला, लेकिन वे उन कलाकारों में से थे, जिनका काम आज भी फिल्मों के जरिए जिंदा है।