Corporate Culture: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट पर एक पोस्ट काफी वायरल हो रही है। इसमें यूजर ने अपनी कंपनी के वर्क कल्चर पर सवाल उठाए हैं।
मेट्रो शहरों में कांच की चमचमाती ऊंची-ऊंची इमारतों के अंदर की दुनिया कितनी बेनूर, झूठी और खोखली है, इसकी मिसालें हमें समय-समय पर मिल ही जाती हैं। अनुचित व्यवहार, टारगेट प्रेशर और काम के लंबे घंटे अब कॉरपोरेट लाइफ की आम बात बन चुके हैं। वर्क लाइफ बैलेंस और कॉरपोरेट गवर्नेंस के नाम पर मैनेजमेंट की ओर से सिर्फ बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं, जबकि असलियत कहीं ज्यादा भयावाह होती है। यकीन नहीं होता तो ये सच्ची घटना सुनिए, तब आप इस बात का अंदाजा लगा सकेंगे कि कंपनियां कैसे कर्मचारियों के साथ धोखा करती हैं।
रेडिट पर एक हालिया पोस्ट ने कॉर्पोरेट पाखंड को बेनकाब किया। इस पोस्ट में बताया गया कि एक कंपनी का CEO कर्मचारियों के साथ अपनी बातचीत में अक्सर "पारिवारिक मूल्यों" पर उपदेश देता था। रेडिट पोस्ट के अनुसार, कंपनी का CEO हर मीटिंग का अंत एक ही बात पर खत्म करता था, "याद रखें, हम यहां सिर्फ सहकर्मी नहीं, बल्कि एक परिवार हैं।" तीन साल तक, कंपनी अपनी पारिवारिक संस्कृति का ढोल पीटती रही। कभी टीम पिकनिक तो कभी बर्थडे पार्टी मनाकर टीम के बीच ये मैसेज देने की कोशिश की जाती कि देखो हम तो आपको अपना परिवार मानते हैं। लेकिन जब वाकई एक कर्मचारी पर संकट आया और उसको मदद की जरूरत पड़ी, तो उस कंपनी के HR और CEO ने जो किया वो आपको अंदर तक गुस्से से भर देगा।
कंपनी की एक कर्मचारी 8 साल से काम कर रही थी। उसे हमेशा से ही बेस्ट परफॉर्मर बताया जाता रहा था। उसके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, उसका घर आग में जल गया। हालांकि, उसके पास बीमा था, लेकिन उसे मिलने में वक्त लगता है। उसे तुरंत कहीं और रहने का जुगाड़ करना था। उसने सोचा कि उसकी कंपनी तो टीम को परिवार मानती है, इसलिए जरूर मदद मिल जाएगी। उस कर्मचारी ने कंपनी से कुछ एडवांस की मांग की और छोटा सा शॉर्ट टर्म लोन देने की गुजारिश की। लेकिन वो कर्मचारी अंदर तक हिल गई जब उसे HR ने एक टका सा जवाब दिया कि ये कंपनी की पॉलिसी में नहीं है। उस कर्मचारी ने इसे लेकर CEO से मिलने की कोशिश की, क्योंकि उसे लगा कि शायद वो परिवार पर आई इस परेशानी को समझेंगे। लेकिन CEO ने मिलने से ही इनकार कर दिया। उस कर्मचारी का फैमिली वैल्यू को लेकर फैलाया गया भ्रम टूट गया।
जब ये बात उसकी टीम को पता चली, तो उन्होंने उसकी मदद करने की ठानी। 12 टीम मेंबर्स ने मिलकर कुल 3,000 डॉलर जमा किए। इस बात का पता जब उसी CEO को चला तो उसने एक ई-मेल लिखा, जिसमें उसने टीम मेंबर्स की ओर से कर्मचारी की मदद करने के लिए इकट्ठा किए गए पैसों को लेकर सराहना की, साथ में वही घिसा पिटा फैमिली वैल्यू वाली लाइन चिपका दी। मगर, विडंबना यह है कि तब भी उसने उस कर्मचारी की मदद के लिए कुछ नहीं दिया। इससे साबित हुआ कि फैमिली का ढोंग सिर्फ तभी तक है, जब तक कि मुसीबत नहीं है, जैसे ही मुसीबत आई, न फैमिली और न वैल्यू।
समय की पहिया घूमा, कुछ हफ्तों के बाद उसी CEO ने फैमिली वैल्यू का हवाला देते हुए अपने स्टाफ से गुजारिश की, कि वे वीकेंड्स पर भी काम करें, लेकिन बिना ओवरटाइम भुगतान के, क्योंकि जब जरूरत होती है तो परिवार ही आगे आता है। उस कर्मचारी ने जिसने हाल ही में अपना घर खोया था, अब बारी उसकी थी, कर्मचारी ये कहते हुए कि उसकी पहले से कुछ प्रतिबद्धताएं है, इसलिए वो ऐसा नहीं कर सकेगी और उसने वीकेंड्स में काम नहीं किया, तब उसको ये कहा गया कि वो टीम प्लेयर नहीं है।
इस बात से आहत उस कर्मचारी ने तुरंत ही इस्तीफा दे दिया और उसके बाद तीन अन्य लोगों ने भी नौकरी छोड़ दी। जिन्होंने अपने एग्जिट इंटरव्यू में कंपनी की फैमिली वैल्यू को एक पारिवारिक पाखंड बताया। कोई भी संजीदा कंपनी होती तो शायद इस बात पर विचार करती, लेकिन इस कंपनी के प्रबंधन ने तय किया कि उन्हें "सांस्कृतिक सामंजस्य के लिए बेहतर स्क्रीनिंग" की ज़रूरत थी।
इस घटना ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कमेंट्स की बाढ़ ला दी। एक रेडिट यूजर ने लिखा कि इस तरह की कंपनियां "परिवार" का ज़िक्र सिर्फ तभी करती हैं, जब इससे उन्हें फ़ायदा होता है। जब कर्मचारियों को मदद की जरूरत होती है, तो वे गायब हो जाती हैं। रेडिट पर शेयर की गई पोस्ट एक और चेतावनी बन गई है कि कॉर्पोरेट संस्कृति में, "हम एक परिवार हैं" कभी-कभी एकतरफा वफादारी में बदल जाता है। जहां कर्मचारियों से तो उम्मीद की जाती है कि वो अपना सबकुछ छोड़कर सिर्फ कंपनी के लिए काम करें, लेकिन जब बात कर्मचारी की मदद पर आती है तो उनकी भाषणबाजी, दयालुता गायब हो जाती है।