UPSC ESE 2025: बुलंदशहर के मानवेंद्र सिंह ने सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी को हराकर UPSC ESE 2025 में 112वीं रैंक हासिल की। जानिए आईआईटी पटना के इस छात्र की संघर्ष और सफलता की पूरी कहानी, जिसने पहले ही प्रयास में IES अफसर बनकर इतिहास रच दिया।
UPSC Success Story: अगर मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो बड़ी से बड़ी बीमारी भी आपका रास्ता नहीं रोक सकती। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले 24 साल के मानवेंद्र सिंह ने इसे सच साबित कर दिखाया। जन्म से 'सेरेब्रल पाल्सी' जैसी गंभीर बीमारी से जूझने के बावजूद उन्होंने यूपीएससी की इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा (ESE) 2025 में पहले प्रयास में ही देशभर में 112वीं रैंक हासिल की है। उनकी सफलता आज उन करोड़ों युवाओं के लिए मिसाल बन गई है जो छोटी-छोटी मुश्किलों से घबराकर हिम्मत हार जाते हैं।
मानवेंद्र के लिए यह सफर आसान नहीं रहा। जब वे महज 6 महीने के थे, तब उन्हें इस बीमारी का पता चला। उनके शरीर का दाहिना हिस्सा ठीक से काम नहीं करता था। बचपन में वे उंगलियों से पेंसिल तक नहीं पकड़ पाते थे और मुट्ठी बंद करके लिखते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने बाएं हाथ को ही इतना मजबूत बनाया कि उसी से अपनी किस्मत लिख दी। उनकी मां रेनू सिंह ने हर कदम पर उनका साथ दिया और उन्हें कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया। इलाज के लिए उनकी मां उन्हें देश के 50 से ज्यादा बड़े अस्पतालों में लेकर गईं। लंबे समय तक दिल्ली में चले इलाज के बाद उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ।
जब मानवेंद्र सिर्फ 17 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। पिता के जाने से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन मानवेंद्र ने हिम्मत जुटाई। मानवेंद्र की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 10वीं और 12वीं में टॉप किया। इसके बाद उन्होंने जेईई (JEE) परीक्षा के जरिए आईआईटी पटना में दाखिला लिया और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की। साल 2024 में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान UPSC की तैयारी में लगाया इस उम्मीद के साथ की उन्हें सफलता जरूर मिलेगी।
यूपीएससी की यह परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। इसमें लिखित परीक्षा के साथ इंटरव्यू भी होता है। मानवेंद्र ने अपनी शारीरिक दिक्कतों को पीछे छोड़ते हुए दिन-रात मेहनत की। नतीजा यह रहा कि पहले ही प्रयास में उनका चयन हो गया। आज वे भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (IES) के अधिकारी बन चुके हैं। उनकी मां रेनू सिंह कहती हैं कि यह केवल रिजल्ट नहीं है, बल्कि मानवेंद्र की कई सालों की मेहनत और कभी हार ना मानने वाली इच्छाशक्ति की जीत है।
मानवेंद्र की यह सफलता बताती है कि, अगर आपके इरादे मजबूत हों, तो आपकी कमजोरी ही आपकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है। मानवेंद्र की सफलता उन सभी युवाओं के लिए मिसाल है छोटी-छोटी परेशानियों से हार मान लेते हैं। मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, मेहनत करने वालों के लिए आसमान की कोई सीमा नहीं होती। आज पूरा देश मानवेंद्र की इसी हिम्मत और जज्बे को सलाम कर रहा है।