Guru Purnima 2025 date: आषाढ़ पूर्णिमा भारत में हर साल गुरु पूर्णिमा और महर्षि वेद व्यास जयंती या व्यास पूजा के रूप में मनाई जाती है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की पूजा अर्चना करते हैं। प्रेमानंद जी महाराज से जानते हैं कैसे मनाएं गुरु पूर्णिमा (How To Celebrate Guru Purnima From Premanand Ji Maharaj)
Guru Purnima connection with Lord Gautam Buddha: हिंदू मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही महाकाव्य महाभारत के रचयिता वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसी कारण इस तिथि को गुरु पूर्णिमा और व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास की जयंती मनाई जाती है और आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु की पूजा अर्चना की जाती है। आइये जानते हैं कब है गुरु पूर्णिमा 2025 (When Is Guru Purnima 2025 Date)
आषाढ़ पूर्णिमा का प्रारंभः 10 जुलाई 2025 को सुबह 01:36 बजे
आषाढ़ पूर्णिमा तिथि का समापनः 11 जुलाई 2025 को सुबह 02:06 बजे
गुरु पूर्णिमा 2025: गुरुवार, 10 जुलाई 2025
गुरु पूर्णिमा को बौद्ध समुदाय भी उत्साह से मनाता है। इस दिन बौद्ध समुदाय भगवान गौतम बुद्ध के सम्मान में खुशियां मनाता है है। मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध ने वाराणसी के सारनाथ नामक स्थान पर अपना प्रथम उपदेश दिया था।
गुरु पूर्णिमा पर गुरु के पास जा सकते हैं तो उनके दर्शन करना चाहिए वर्ना घर पर ही पूजा करें।
1.इसके लिए प्रातःकाल स्नान पूजा आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. फिर व्यास जी के चित्र को सुगंधित फूल या माला चढ़ाकर, गुरु के चित्र को सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला अर्पित करें।
3. इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर कुछ दक्षिणा यथासामर्थ्य धन के रूप में भेंट करें और आशीर्वाद लें। बाद में इस दक्षिणा को किसी जरूरतमंद को दान कर दें।
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के दर्शन करना चाहिए। दर्शन मात्र से ही सेवा हो जाती है। पत्र, पुष्प, फल चढ़ाएं, उनका आशीर्वाद लें। गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए। पादुका और चित्र की रोज पूजा करते हैं, एक दिन साक्षात दर्शन करना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा गुरु से मंत्र लेने का श्रेष्ठ दिन होता है। इस दिन गुरुजनों की सेवा करने का बहुत महत्व है। इसलिए श्रद्धापूर्वक इस पर्व को मनाना चाहिए।
गुरुः ब्रह्मा गुरुः विष्णु, गुरुदेवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमःः