त्योहार

जन्माष्टमी पर पढ़ें श्रीकृष्ण जन्म की कहानी

Shri Krishna Janma ki katha: हर साल भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। इसलिए इस दिन श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर आइये पढ़ें श्रीकृष्ण जन्म की कथा ..

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Aug 20, 2024
जन्माष्टमी पर पढ़ें श्रीकृष्ण जन्म की कथा

श्रीकृष्ण जन्म की कथा

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा के अनुसार द्वापर युग में यूप के मथुरा शहर में भोजवंशी राजा उग्रसेन राज्य करते थे। उसका बेटा कंस आतातायी था, कुछ समय बाद उग्रसेन के बेटे कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और कैद कर लिया। इसके बाद कंस मथुरा का राजा बन गया। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। कंस अपनी बहन से बहुत प्यार करता था।

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लेकिन एक समय कंस अपनी बहन देवकी को बहनोई के साथ ससुराल पहुंचाने जा रहा था। तभी आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए आगे बढ़ा, तभी देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?'

कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागार में डाल दिया। वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था। उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी।

भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को मध्य रात्रि रोहिणी नक्षत्र में जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।

तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में पहुंचा देना और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर देना। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागार के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।'

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागार के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।

अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है। उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, लेकिन वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' यह है कृष्ण जन्म की कथा।

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