BRZ batCoV Virus: वैज्ञानिकों ने ब्राजील के चमगादड़ों में नया वायरस BRZ batCoV खोजा है, जो COVID-19 जैसे जेनेटिक फीचर रखता है। रिसर्च के अनुसार, यह वायरस प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है, जिससे पता चलता है कि ऐसे वायरस लैब में नहीं बल्कि प्रकृति में बन सकते हैं।
BRZ batCoV Virus: हाल ही में कुछ वैज्ञानिकों ने ब्राजील के चमगादड़ों में एक नया वायरस खोजा है, जिसका नाम BRZ बैटकोव (batCoV) रखा गया है। यह वायरस कोरोना फैलाने वाले SARS-CoV-2 से काफी मिलता जुलता है। यह वायरस एक खास प्रजाति के चमगादड़ में मिला है, जिसे मूंछों वाला चमगादड़ (moustached bat) कहा जाता है और यह लैटिन अमेरिका के कई हिस्सों में पाया जाता है। रिसर्चर्स का कहना है कि ये वायरस शायद लंबे समय से प्रकृति में मौजूद था, लेकिन कम सैंपलिंग और वन्यजीव निगरानी की कमी की वजह से इसे अब तक पकड़ा नहीं जा सका।
यह स्टडी हाल ही में BioRxiv जर्नल में प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि BRZ batCoV में एक ऐसा जेनेटिक हिस्सा (genetic element) मिला है जो SARS-CoV-2 जैसा है। इसका मतलब यह है कि कोरोना जैसे वायरस प्रकृति में खुद ही विकसित हो सकते हैं, उन्हें लैब में बनाने की जरूरत नहीं होती। सबसे खास बात यह है कि इस नए वायरस में एक फ्यूरिन क्लीवेज साइट (furin cleavage site) मिला है। यही वह हिस्सा है जो कोरोना वायरस को मानव कोशिकाओं (human cells) में घुसने में मदद करता है। पहले कुछ लोगों का मानना था कि यह हिस्सा लैब में बनाया गया होगा, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने साफ कहा है कि ऐसा फीचर प्राकृतिक रूप से भी बन सकता है।
जापान की ओसाका यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. कोसूके ताकादा का कहना है कि यह खोज दिखाती है कि वायरस समय के साथ प्राकृतिक रूप से बदलते रहते हैं। लंदन की किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर स्टुअर्ट नील ने बताया कि फ्यूरिन साइट जैसी संरचनाएं कई वायरस में पाई जाती हैं और ये विकास (evolution) के दौरान खुद उभर सकती हैं। वहीं, ग्लासगो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड रॉबर्टसन ने कहा कि कुछ हिस्से वायरस के जेनेटिक कोड में इतने mutable (तेजी से बदलने वाले) होते हैं कि इस तरह के फीचर बार-बार अलग-अलग वायरस में दिख सकते हैं।
यह वायरस अभी केवल ब्राज़ील के Maranhao और Sao Paulo राज्यों के 70 चमगादड़ों के इंटेस्टाइनल (आंत) सैंपल में पाया गया है। वैज्ञानिकों ने साफ कहा है कि अभी तक इसका कोई सबूत नहीं मिला है कि यह इंसानों या अन्य जानवरों को संक्रमित कर सकता है। असल में यह वायरस फिजिकली नहीं मिला, बल्कि इसका पता जीन सिक्वेंसिंग (genetic sequencing) के जरिए लगाया गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज बताती है कि हमें दुनिया भर में चमगादड़ों और अन्य वन्यजीवों की नियमित निगरानी (wildlife surveillance) करनी चाहिए। अब तक ज्यादातर कोरोना जैसे वायरस पर शोध एशिया, अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में हुआ है, लेकिन दक्षिण अमेरिका जैसे क्षेत्रों में बहुत कम रिसर्च हुई है। डॉ. ताकादा का कहना है कि यह खोज दिखाती है कि वायरस सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में चुपचाप घूम रहे हैं। ऐसे वायरस को समय रहते पहचानना जरूरी है ताकि भविष्य में किसी नई महामारी को रोका जा सके।