Saiyaara: बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म 'सैयारा' तो आपने देखी ही होगी। युवा वर्ग में इसका काफी क्रेज भी देखने को मिल रहा है।ऐसे में फिल्म के सीन तो आपको याद ही होंगे। ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे इंसान की याददाश्त को मिटा देती है।
Saiyaara Movie Memory Loss: बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म 'सैयारा' तो आपने देखी ही होगी। युवा वर्ग में इसका काफी क्रेज भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में फिल्म के सीन तो आपको याद ही होंगे। जिसमें वाणी बत्रा यानी एक्ट्रेस (अनीत पड्डा) की याददाश्त कमजोर हो जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो धीरे-धीरे इंसान की याददाश्त को मिटा देती है, उसके स्वभाव को बदल देती है और इंसान को खुद से ही अजनबी हो जाता है।
दरअसल चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसी बीमारी सिर्फ इमेजिनेशन नहीं है। बल्कि इसके जहर हमारे आसपास की ही हवा में मौजूद है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक स्टडी में यह पाया गया है कि PM2.5 असल में वो सूक्ष्म कण हैं जो गाड़ियों के धुएं, फैक्ट्रियों और जंगलों में लगी आग जैसी चीजों से हवा में घुलते हैं, और फिर बिना दिखे, हमारे शरीर को अंदर से नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं। ये कण इतने बारीक होते हैं कि वे बॉडी की सेफ्टी लाइन को पार करके खून के रास्ते दिमाग तक जा पहुंचते हैं।
ये कण दिमाग में जलन और दबाव जैसा असर डालते हैं, जो धीरे-धीरे वहां की नसों और कोशिकाओं को कमजोर करने लगता है। रिसर्च की मानें तो हवा में PM2.5 जैसे 10 माइक्रोग्राम जहरीले कणों के बढ़ने पर दिमाग कमजोर होने और याददाश्त खोने (डिमेंशिया) का खतरा करीब 17% बढ़ सकता है। ये खतरा सिर्फ बुजुर्गों के लिए नहीं है, एक्सपर्ट्स का कहना है कि दिमाग पर असर तो कई साल पहले ही शुरू हो जाता है, जब इंसान बाहर से बिलकुल ठीक-ठाक दिखता है।
अल्जाइमर और डिमेंशिया दोनों ही दिमाग से जुड़ी बीमारियां हैं, लेकिन दोनों काफी अलग है। डिमेंशिया जो याददाश्त, सोचने की क्षमता और व्यवहार में आने वाले बदलावों के कारण होता है. वहीं अल्जाइमर डिमेंशिया का सबसे आम और गंभीर रूप है, जो उम्र बढ़ने के साथ धीरे-धीरे दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। इसका अब तक कोई इलाज नहीं है। हर अल्जाइमर मरीज को डिमेंशिया होता है, लेकिन हर डिमेंशिया मरीज को अल्जाइमर नहीं होता।
दिल्ली, लखनऊ, कोलकाता और मुंबई जैसे बड़े शहरों में, जहां एयर क्वालिटी लगातार खराब श्रेणी में रहती है, वहां रहने वाले लोगों को अब इस खतरे को हल्के में नहीं लेना चाहिए। ये सिर्फ सांस की दिक्कत की बात नहीं है। ये दिमाग तक असर करने वाली बीमारी है। अब सवाल ये है कि क्या सैयारा जैसी फिल्म सिर्फ एक बनाई गई कहानी थी? या फिर वो हमारे आने वाले कल की एक डरावनी झलक थी, जो अब धीरे-धीरे हकीकत बनती जा रही है।
अगर आप इस गंभीर बीमारी से बचना चाहते हैं तो आप अभी से ही सतर्क हो जाएं। मास्क पहनें, AQI जांचें, घर में हवा को साफ रखें, और जरूरत हो तो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।