झालावाड़ स्कूल हादसा: कार्तिक की अर्थी देखकर बहनों की चीखें गूंज उठीं, रो-रोकर सिर्फ एक ही बात बोल रही थी "अब किसको बांधेंगे राखी…?" इस सवाल ने वहां मौजूद हर शख्स का दिल चीर दिया।
Only Brother Died Before Rakshabandhan: झालावाड़ जिले के मनोहर थाना उपखंड के पीपलोदी गांव में शुक्रवार को स्कूल की छत गिरने से दिल दहला देने वाला हादसा हो गया। मासूम बच्चों को क्या पता था कि जिस स्कूल में वे पढ़ने गए हैं, वही उनकी मौत का कारण बन जाएगा। हादसे में 7 मासूम बच्चों की जान चली गई और कई घायल हो गए। गांव में रक्षाबंधन के ठीक 15 दिन पहले मातम छा गया। चीख-पुकार, रुदन और चित्कार ने गांव की हर गली को सन्नाटे में डुबो दिया।
मृतक कार्तिक (8 वर्ष), हरकचंद लोधा का बेटा था। उसकी बुआ संजू बाई ने बताया कि वह चार बहनों में इकलौता था और सबसे छोटा भी। बड़ी बहन आरती कक्षा 7 और मनीषा कक्षा 6 में पढ़ती हैं, जो इस हादसे में घायल हो गईं। बाकी दो बहनें प्रियंका और रामकन्या पास के गांव आंवलहेड़ा में पढ़ाई करती हैं। कार्तिक की अर्थी देखकर बहनों की चीखें गूंज उठीं, रो-रोकर सिर्फ एक ही बात बोल रही थी "अब किसको बांधेंगे राखी…?" इस सवाल ने वहां मौजूद हर शख्स का दिल चीर दिया।
शनिवार सुबह 5 बजे, मनोहर थाना अस्पताल से मृतक बच्चों के शव परिजनों को सौंपे गए। शवों को अलग-अलग गाड़ियों से गांव तक पहुंचाया गया। जैसे ही शव गांव पहुंचे, वहां कोहराम मच गया। पहले से ही अर्थियां सजाई जा चुकी थीं। गांव के ही शमशान घाट तक शवों को भारी पुलिस सुरक्षा में ले जाया गया। दो सगे भाई-बहन, कान्हा और मीना, को एक ही अर्थी पर ले जाया गया। एक साथ पांच चिताओं पर छह मासूमों का अंतिम संस्कार किया गया। जैसे ही पिता ने मुखाग्नि दी, लोगों का दुःख फूट पड़ा। वहां मौजूद हर आंख नम हो गई।
छात्राओं वर्षा, राजकिरंता और रीना ने बताया कि स्कूल की दीवारों पर पेड़ उगते रहते थे। उन्हें काट भी दिया जाता था, लेकिन दोबारा उग आते थे। हादसे से पहले भी उन्होंने शिक्षकों को इसकी जानकारी दी थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि स्कूल की मरम्मत केवल लीपापोती करके की गई थी। सरपंच को भी इस बारे में अवगत कराया गया था, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
ग्रामीणों ने बताया कि हादसे के बाद पूरे गांव में चूल्हा नहीं जला। लोगों में रोष है। एक परिवार का इकलौता चिराग बुझ गया, वहीं एक और परिवार की दोनों संतानें काल के गाल में समा गईं।