कोटा

अनूठी परंपरा: राजस्थान में यहां रावण को पैरों से रौंदकर मारते हैं पहलवान, बच्चे कुश्ती खेलकर मिट्टी में मिला देते हैं रावण का अहंकार

दशहरा पर शाम को दशहरा मैदान में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होता है तो सुबह किशोरपुरा और नांता क्षेत्र में जेठियों के अखाड़ों में पैरों तले मिट्टी रावण को रौंदकर मारने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है।

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Oct 02, 2025
फोटो: पत्रिका

Kota Ravan Unique Tradition: शिक्षा नगरी कोटा का दशहरा देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। विजयादशमी पर रावण पुतला वर्ल्ड रिकार्ड बनाने जा रहा है। इसके अलावा अखाड़ों में रावण को मारने की अनूठी परंपरा भी कोटा में निभाई जाती है।

दशहरा पर शाम को दशहरा मैदान में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होता है तो सुबह किशोरपुरा और नांता क्षेत्र में जेठियों के अखाड़ों में पैरों तले मिट्टी रावण को रौंदकर मारने की अनूठी परंपरा निभाई जाती है। इस दौरान समाज के युवाओं में उत्साह देखते ही बनता है।

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किशोरपुरा स्थित जेठी समाज का अखाड़ा कोटा रियासत के तत्कालीन शासक महाराव उम्मेद सिंह द्वितीय द्वारा 1850 के आसपास समाज को भेंटस्वरूप प्रदान किया गया था। यह अखाड़ा न केवल पहलवानी के लिए जाना जाता है, बल्कि समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का भी केन्द्र बना हुआ है।

नांता समाज के अध्यक्ष सोहन जेठी और किशोरपुरा समाज के सुनील जेठी बताते हैं कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसके पीछे लंबी कहानी है, बस इतना जरूर है कि जेठी समाज की पहचान पहलवानों के रूप में है। समाज के लोग मूलत: गुजरात निवासी हैं और आराध्य लिंबजा माता हैं। देवी के समक्ष दानव रावण का मान मर्दन किया जाता है।

ऐसे बनाते हैं रावण

नवरात्र से पहले अखाड़े की मिट्टी को एकत्रित कर प्रतीकात्मक रूप से रावण को आकार दिया जाता है। पहले नवरात्र पर अखाड़ों में देवी की पूजा-अर्चना व घट स्थापना की जाती है। ज्वारे उगाए जाते हैं। इसके बाद मंदिर के पट बंद कर देते हैं। अखाड़े की खिड़की से ही देवी दर्शन करते हैं, लेकिन नवरात्र के आयोजनों की धूम अखाड़े पर रहती है। नवरात्र में रात को गरबा कर माता की आराधना करते हैं।

देखते ही बनता उत्साह

दशमी पर समाज के लोग अखाड़े पर माताजी, हनुमानजी की पूजा-अर्चना करते हैं, फिर घंटी, झालर और नगाड़ों की थाप के साथ रावण से युद्ध के लिए बच्चे अखाड़े में उतरते हैं और रावण को पैरों तले रौंदकर मार देते हैं। जय श्रीराम के घोष करते हुए रावण का मान का मर्दन कर देते हैं। सोहन बताते हैं कि यह प्रतीकात्मक रूप से रावण का वध करने की परंपरा है लेकिन असल में अंहकारी कितना भी महान और बड़ा क्यों न हो, आखिर में नष्ट होकर मिट्टी में ही मिल जाना होता है। रावण वध के मूल में यही संदेश है। इसके बाद उसी अखाड़े में पारंपरिक कुश्ती का आयोजन होता है, जिसमें समाज के युवा अपनी कला और परंपरा का प्रदर्शन करते हैं।

खुशहाली के प्रतीक ज्वारे

रावण वध से पहले ज्वारों को निकालकर श्रद्धालुओं में वितरित करते हैं। अच्छे ज्वारे होना खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। समाज के पदाधिकारी के अनुसार, नांता स्थित जेठी समाज के अखाड़े में गुरुवार सुबह 9 बजे तथा किशोरपुरा स्थित अखाड़े में दोपहर 3 बजे रावण के पुतले का वध किया जाएगा। समाज के पहलवान पूजा-अर्चना के बाद पैरों तले रौंदकर रावण को मारेंगे।

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Updated on:
02 Oct 2025 02:57 pm
Published on:
02 Oct 2025 02:56 pm
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