Lucknow Kites Festival दीपावली के बाद लखनऊ का आसमान सियासत के रंगों से रंग गया है। अब पतंगें सिर्फ खेल नहीं रहीं , वे नेताओं की पहचान बन गई हैं। मोदी, योगी और अखिलेश की तस्वीरों वाली पतंगें हवा में लहरा रही हैं, और हर डोर के साथ जनता की उम्मीदें, समर्थन और सियासी संदेश उड़ान भर रहे हैं।
Political Kites Soar Over Lucknow Skies: दीपावली के बाद लखनऊ का आसमान इन दिनों कुछ अनोखा नज़ारा पेश कर रहा है। हर साल की तरह इस बार भी रंग-बिरंगी पतंगें हवा में तैर रही हैं, मगर इस बार का पतंग उत्सव सिर्फ खेल तक सीमित नहीं रहा। इस बार की पतंगबाजी में सियासत की डोरें उलझी हैं, और हर पतंग पर राजनीति के रंग चढ़े हुए हैं। चौक से लेकर गोमती नगर, हजरतगंज से लेकर ठाकुरगंज, और आशियाना की ऊँची छतों तक, हर तरफ “यह काटा! वह काटा!” की गूंज सुनाई दे रही है। मगर जब कोई पतंग कटती है तो उसके साथ किसी पार्टी के नारे, किसी नेता की उम्मीदें और किसी समर्थक की खुशी या मायूसी भी हवा में तैर जाती है।
इस बार दुकानों में साधारण पतंगों की जगह कुछ नई किस्म की पतंगें छाई हुई हैं। इन पर छपे हैं देश के बड़े सियासी चेहरे-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव। किसी पतंग पर मोदी की मुस्कुराती तस्वीर के नीचे लिखा है, “अबकी बार विकास की उड़ान”, तो किसी पर अखिलेश यादव की साइकिल के साथ लिखा है -“फिर से ऊंची उड़ान”। वहीं, योगी आदित्यनाथ की भगवा पतंग पर उकेरा गया है, “डबल इंजन, डबल रफ़्तार”।
गोमतीनगर के पतंग विक्रेता असगर मियां बताते हैं, “इस बार धार्मिक या फिल्मी सितारों की पतंगें कम बिकीं। सबसे ज्यादा मांग नेताओं की तस्वीरों वाली पतंगों की रही। लोग मज़ाक में नहीं, बल्कि पूरे जोश से इन्हें खरीद रहे हैं , जैसे अपनी-अपनी पार्टी की पहचान आसमान में उड़ाना चाहते हों।
सूरज ढलते ही लखनऊ की छतों पर सियासी मुकाबले शुरू हो जाते हैं। एक तरफ लाल रंग की ‘साइकिल पतंग’ उड़ी तो दूसरी तरफ ‘कमल पतंग’ उसकी ओर लपकी। “यह काटा!” की आवाज़ के साथ शोर गूंजा - “हमारी पतंग सबसे ऊंची। हजरतगंज की एक छत पर पतंगबाजी कर रहे कॉलेज के छात्र अभिषेक तिवारी कहते हैं, “हम लोग हर साल पतंग उड़ाते हैं, लेकिन इस बार मज़ा कुछ और है। मोदी और अखिलेश की पतंगें उड़ा कर दोस्तों में मुकाबला चल रहा है। यह खेल है, लेकिन इसमें एक राजनीतिक जोश भी है। उधर ठाकुरगंज की गलियों में बच्चों ने योगी की भगवा पतंग उड़ाते हुए नारे लगाए , “जय श्रीराम, उड़ चली पतंग!” वहीं, पास ही कुछ युवाओं ने अखिलेश की पतंग को काटते हुए कहा- “हवा बदल रही है!”
लखनऊ की छतों का यह नज़ारा अब सोशल मीडिया पर भी छाया हुआ है। इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स (ट्विटर) पर “#PoliticalKite” और “#LucknowKiPatang” जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। एक तस्वीर में एक बच्चा मोदी की पतंग उड़ाते हुए लिखता है, “अबकी बार ऊंची उड़ान वाली पतंग”, जबकि दूसरी पोस्ट में अखिलेश की पतंग के साथ कैप्शन है - “साइकिल फिर हवा में”। राजनीतिक दलों के समर्थक भी इसे हल्के-फुल्के अंदाज़ में ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा -“कटी पतंग नहीं, बदलती हवा है- सियासत की दिशा यही दिखा रही है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह “पतंग राजनीति” महज़ एक खेल नहीं, बल्कि जनता के बदलते मूड का संकेत है। वरिष्ठ विश्लेषक डॉ. संजीव मिश्र कहते हैं, “जनता अब राजनीति को सिर्फ भाषणों में नहीं, बल्कि अपने दैनिक जीवन के प्रतीकों में भी उतार रही है। पतंग उड़ाना एक तरह से अपने नेता के प्रति समर्थन या उम्मीद का सार्वजनिक इज़हार बन गया है। वो आगे कहते हैं, “जब कोई पतंग ऊपर जाती है, लोग कहते हैं, ‘हमारी उड़ान ऊंची है’। यह नारा दरअसल उस विश्वास को दिखाता है जो जनता अपने नेता में देखना चाहती है। यह ‘सॉफ्ट सियासत’ का नया रूप है, जहां मुकाबला भी है और मनोरंजन भी।”
अमीनाबाद और चौक की पतंग मंडियों में इस बार भीड़ उमड़ रही है। दुकानदार बताते हैं कि मोदी, योगी और अखिलेश की पतंगों की बिक्री बाकी सभी से कई गुना ज़्यादा रही। पतंग विक्रेता रहमान भाई बताते हैं, “लोग इन पतंगों को घर सजाने के लिए भी खरीद रहे हैं। बच्चों में उत्साह है कि उनकी पतंग उनके पसंदीदा नेता की है। कुछ ग्राहक तो ऑर्डर देकर अपने पसंदीदा नेता की फोटो वाली पतंगें बनवा रहे हैं।” कुल मिलाकर, इस बार के पतंग पर्व ने व्यापारियों के चेहरों पर भी मुस्कान ला दी है।
दिलचस्प बात यह रही कि कुछ इलाकों में युवाओं ने राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बजाय “मैत्री उड़ान” का भी आयोजन किया। चौक के कुछ कॉलेज छात्रों ने अखिलेश और योगी की पतंगें एक साथ आसमान में उड़ाईं। उनका कहना था, “हमारी सोच अलग हो सकती है, लेकिन आसमान सबका एक है। यह दृश्य भीड़ से तालियां बटोर गया। यह मानो लखनऊ की उस गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलक थी, जिसमें मतभेद के बावजूद मेलजोल की मिठास बरकरार रहती है।
सियासी जोश के बीच प्रशासन ने भी जनता से अपील की है कि वे पतंगबाजी के दौरान धातु या मेटैलिक डोर का प्रयोग न करें। लखनऊ पुलिस और नगर निगम ने संयुक्त बयान जारी किया है कि लोग सुरक्षा का ध्यान रखें, बिजली के तारों के पास पतंग न उड़ाए, और बच्चों को निगरानी में रखें। हालांकि, प्रशासन की यह चेतावनी भी जोश में डूबी छतों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाई है। लोग नेताओं की पतंगों को हवा में उड़ाकर अपनी-अपनी पसंद और उम्मीदों को आसमान में टांक रहे हैं।
चुनावी मौसम भले अभी दूर हो, लेकिन लखनऊ का यह पतंग पर्व बता रहा है कि जनता के मन में राजनीति हर वक्त मौजूद रहती है, कभी गंभीर बहस के रूप में, तो कभी हंसी-मजाक और उत्सव के अंदाज़ में। एक बुजुर्ग पतंगबाज़ शकील अहमद मुस्कराते हुए कहते हैं, “बेटा, पहले आसमान में सिर्फ रंग उड़ते थे, अब विचार भी उड़ते हैं। हवा के साथ अब सियासत भी उड़ती है और डोर जनता के हाथ में है।”
लखनऊ के इस अनोखे नज़ारे ने यह साबित कर दिया है कि राजनीति अब सिर्फ मंचों और भाषणों की चीज़ नहीं रही। यह जनता के त्योहारों, खेलों और भावनाओं तक पहुँच चुकी है। दीपावली के बाद जब आसमान में ये पतंगें उड़ती हैं, तो वे सिर्फ रंग नहीं बिखेरतीं बल्कि जनता की उम्मीदों, समर्थन और व्यंग्य का प्रतीक बन जाती हैं और शायद यही कारण है कि इस बार का पतंग पर्व मानो कह रहा है,सियासत की डोरें अब जनता के हाथ में हैं, हवा का रुख ही तय करेगा कौन-सी पतंग टिकेगी आसमान में, और कौन बनेगी ‘कटी पतंग’।”