Heat Wave Alert: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) हीट वेव से निपटने की तैयारियों में जुटा है। एनडीएमए ने सभी राज्यों को एक परामर्श जारी किया है, जिसमें हीट वेव का सामना करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया गया है।
Climate Change: जलवायु परिवर्तन के कारण हीट वेव (Heat Wave) अब भीषण होती जा रही है और लंबे समय तक चलने लगी है। इस बार भी गर्मी की भीषणता बढ़ने वाली है। हीट वेव से निपटने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) तैयारी कर रहा है। एनडीएमए ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी की है और हीट वेव से निपटने के लिए एक्शन प्लान बनाने को कहा है। इस तरह के प्लान हर वर्ष बनते हैं, इसके बावजूद लोगों की जान जाती हैं। आइए देखते हैं आखिर इन योजनाओं में क्या खामियां रह जाती हैं।
2020 से 2022 के बीच देश में हीट स्ट्रोक के कारण होने वाली मौतों में वृद्धि हुई और संख्या 530 से 730 हो गई। एनडीएमए के अनुसार, 2024 के हीट स्ट्रोक से मौत के मामलों में 269 संदिग्ध थे तो 161 मामलों में ही पुष्टि हो पाई थी। गैर-लाभकारी संगठन हीटवॉच ने 2024 की रिपोर्ट में कहा कि मार्च और जून के बीच, 17 राज्यों में हीट स्ट्रोक से 733 मौतें हुईं। 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में हीटस्ट्रोक से 33 मतदान कर्मियों की भी मौत हुई थी।
हीट एक्शन प्लान (HAP) गर्मी से जुड़ी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और भीषण गर्मी से निपटने की तैयारी की योजना है। इसमें आबादी पर अत्यधिक गर्मी के दुष्प्रभावों को कम करने की तैयारी, सूचना-साझा करने और समन्वय बढ़ाने के लिए तत्काल और दीर्घकालिक कार्रवाई शामिल होती है। जुलाई 2024 में सरकार ने लोकसभा में बताया था कि एनडीएमए राज्य प्राधिकरणों के सहयोग से हीटवेव की स्थिति से प्रभावित 23 राज्यों में एचएपी लागू कर रहा है।
नई दिल्ली स्थित शोध संगठन सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव (HFC) के एक अध्ययन के अनुसार, हीट एक्शन प्लान में देश में अत्यधिक गर्मी के जोखिमों से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों का अभाव है। इसके अलावा जहां योजनाएं बनीं, वहां भी उन्हें प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया।
एसएफसी ने अध्ययन के लिए बेंगलूरु, दिल्ली, फरीदाबाद, ग्वालियर, कोटा, लुधियाना, मेरठ, मुंबई और सूरत को चुना और हीट एक्शन प्लान लागू करने के लिए जिम्मेदार शहर, जिला और राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ 88 साक्षात्कार किए। उन्होंने आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य, शहर नियोजन, श्रम विभागों के साथ-साथ शहर और जिला प्रशासकों के प्रतिनिधियों का भी साक्षात्कार लिया।
शोध में पाया गया कि दीर्घकालिक योजनाओं का या तो पूरी तरह अभाव था, या उन्हें खराब तरीके से लागू किया गया था। घरेलू या व्यावसायिक स्तर पर कूलिंग, जॉब लॉस के लिए बीमा कवर, अग्नि प्रबंधन सेवाओं का विस्तार और वितरण सुरक्षा में सुधार के लिए बिजली ग्रिड रेट्रोफिट जैसे दीर्घकालिक उपाय सभी शहरों में गायब थे।
विश्लेषण के अनुसार, शहरों ने छाया व हरित आवरण का तो विस्तार किया पर उन क्षेत्रों और आबादी पर ध्यान नहीं दिया, जहां गर्मी का खतरा सबसे अधिक रहता है। इसके अलावा दीर्घकालिक रणनीतियां बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य प्रणाली पर केंद्रित थीं, न कि रोकथाम पर। दीर्घकालिक योजना लागू करने के लिए अधिक धनराशि की जरूरत भी बताई गई।