Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम तलाक मामले में स्पष्ट किया कि डाक कवर पर “Intimation Not Received” लिखा होना नोटिस लेने से इनकार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए कहा कि नोटिस की तामील से जुड़े मामलों में CPC के आदेश V नियम 19 का सख्ती से पालन जरूरी है और पत्नी की अपील स्वीकार की।
Supreme Court: देश की सर्वोच्च न्यायालय में एक तलाक का ऐसा मामला पहुंचा था, जिसमें शादी के बाद पति तलाक ले लिया था, लेकिन पत्नी इस बात से बेखबर थी। इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया और पति को फटकार लगाते हुए पत्नी द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते साफ कर दिया कि डाक कवर पर “सूचना देने पर प्राप्त नहीं हुआ” (Intimation Not Received) की टिप्पणी को पक्षकार द्वारा नोटिस लेने से इनकार (Refusal) करना नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि कथित इनकार के मामलों में सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश V नियम 19 का कड़ाई से पालन अनिवार्य है।
ला ट्रेंड के अनुसार, मध्य प्रदेश के रहने वाले एक जोड़े की शादी 2002 में हुई थी और उनका एक बेटा है। पहले दोनों का गृहस्थ जीवन ठीक था, लेकिन बाद में दोनों के बीच अनबन होने लगी। जिसके बाद पति ने 2009 में तलाक के लिए कोर्ट में केस दायर किया। पत्नी के अनुसार, नोटिस के बाद दोनों के बीच समझौता हो गया था और वे साथ रह रहे थे। लेकिन कोर्ट ने पत्नी की गैरहाजिरी में (एक पक्षीय तौर पर) 30 नवंबर 2009 को तलाक तलाक का आदेश दे दिया। पत्नी को इस आदेश की जानकारी करीब 10 साल बाद 2019 में एक कानूनी नोटिस से हुई। पत्नी ने कहा कि उसे कभी सही तरीके से कोर्ट का नोटिस नहीं मिला, इसलिए उसने एकपक्षीय आदेश को रद्द करने की मांग की। ट्रायल कोर्ट ने उसकी बात मानी और आदेश रद्द कर दी। लेकिन इसके बाद पति ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट चला गया। हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी को नोटिस भेजा गया था और उसने लेने से इनकार किया था, इसलिए इतने साल बाद वह अनभिज्ञता का बहाना नहीं बना सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत माना। कोर्ट ने कहा कि नोटिस की सही तामील हुई या नहीं, इसकी जांच करते समय CPC के आदेश V नियम 19 का पालन ज़रूरी था, जिसे हाईकोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की अपील स्वीकार की और हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डाक कवर पर की गई टिप्पणी से यह साफ है कि नोटिस सीधे पत्नी को दिया ही नहीं गया था। डाक कर्मचारी ने सिर्फ उसके पते पर एक सूचना छोड़ी थी कि वह डाकघर से पत्र ले जाए। इसे यह नहीं माना जा सकता कि पत्नी ने नोटिस लेने से इनकार किया था। इसलिए, सिर्फ इस आधार पर यह कहना कि नोटिस की सही तामील हो गई थी, गलत है और पत्नी को कार्यवाही की जानकारी न होने की बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की प्रक्रियात्मक चूक की ओर भी इशारा किया। यद्यपि ट्रायल कोर्ट ने कोर्ट की प्रक्रिया (बेलीफ) के माध्यम से भी नोटिस का आदेश दिया था, लेकिन निचली अदालतों के आदेशों में बेलीफ की रिपोर्ट का कोई जिक्र नहीं था।