Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि केवल बिल्डर और बैंक ही नहीं, बल्कि कुछ सरकारी अधिकारी भी इस खेल में शामिल हो सकते हैं।
Supreme Court: घर खरीदने के नाम पर लोगों को चूना लगाने वाले बिल्डरों और बैंकों के गठजोड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कड़ा रुख दिखाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को 6 और मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को एफआईआर दर्ज करने और जांच शुरू करने की अनुमति दे दी। ये मामले केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित नहीं हैं, बल्कि मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज जैसे शहरों से जुड़े हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि केवल बिल्डर और बैंक ही नहीं, बल्कि कुछ सरकारी अधिकारी भी इस खेल में शामिल हो सकते हैं। अदालत ने सीबीआई को इन मामलों की तेजी से जांच करने और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आम नागरिकों की मेहनत की कमाई को इस तरह से हड़पना गंभीर अपराध है और इसमें किसी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
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यह विवाद बिल्डरों की सबवेंशन स्कीम से जुड़ा है। इस स्कीम में फ्लैट खरीदारों को यह भरोसा दिया जाता है कि जब तक उन्हें घर का कब्जा नहीं मिल जाता, तब तक उन्हें ईएमआई नहीं चुकानी होगी। इस दौरान बैंक सीधे बिल्डर को भुगतान करता है और बिल्डर को यह जिम्मेदारी दी जाती है कि वह ईएमआई का बोझ खरीदार पर न डाले। लेकिन हकीकत में कई बिल्डरों ने इस नियम का खुला उल्लंघन किया। उन्होंने बीच में ईएमआई देना बंद कर दिया, जिसके बाद बैंक सीधे घर खरीदारों से किस्त की मांग करने लगे। अचानक बढ़े इस आर्थिक बोझ से हजारों खरीदार मुश्किल में फंस गए। दिल्ली-एनसीआर के लगभग 1,200 से अधिक घर खरीदारों ने इस धोखाधड़ी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बिल्डर और बैंक मिलकर योजनाबद्ध तरीके से ग्राहकों को जाल में फंसाते हैं और फिर उन पर कर्ज का बोझ डालते हैं।
सीबीआई ने अदालत को जानकारी दी कि शुरुआती जांच में न केवल एनसीआर, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह की गड़बड़ियां सामने आई हैं। मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, मोहाली और प्रयागराज जैसे शहरों में भी बिल्डरों और बैंकों के बीच अवैध गठजोड़ पाया गया है। सीबीआई का कहना है कि कई प्रोजेक्ट्स में ग्राहकों से वादे किए गए, लेकिन न तो घर समय पर मिले और न ही वित्तीय नियमों का पालन किया गया। घर खरीदने वालों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के इन आदेशों से उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। कई खरीदार सालों से अपने मकान का इंतजार कर रहे हैं और साथ ही बैंक का कर्ज भी चुका रहे हैं।
यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है। इससे पहले 22 जुलाई को कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के बिल्डरों के खिलाफ 22 मामलों में सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी थी। उन मामलों में भी यह सामने आया था कि बैंकों और बिल्डरों की मिलीभगत से हजारों परिवारों को आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान किया गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, सीबीआई के मुकदमे में मुख्य आरोपी बिल्डर बनाए जाएंगे, क्योंकि उन्होंने सबवेंशन स्कीम के नियमों का उल्लंघन किया। बिल्डरों ने समय पर ईएमआई चुकाना पर बंद दिया। इसके साथ ही खरीदारों को घर भी नहीं दिया। इसके अलावा इस मामले में बैंक अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होगी, क्योंकि खरीदारों को सही जानकारी दिए बिना बैंकों ने बिल्डरों को लोन दे दिया। इसके बाद लोन की ईएमआई नहीं मिलने पर सीधे खरीदारों से वसूली शुरू कर दी। इसमें उन अधिकारियों पर भी एक्शन हो सकता है, जिन्होंने नियमों की अनदेखी करते हुए बिल्डरों का साथ दिया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई छह राज्यों के मामलों की जांच करेगी। इसमें बिल्डरों और बैंकों के बीच हुए समझौते की जांच होगी। इसके बाद खरीदारों से वसूले गए पैसे और बैंकों द्वारा बिल्डरों को किए गए भुगतान का ऑडिट किया जाएगा। इसमें यह देखा जाएगा कि किस स्तर पर नियमों का उल्लंघन किया गया है? साथ ही ग्राहकों के साथ कैसे धोखाधड़ी की गई? अगर सीबीआई को धोखाधड़ी के पर्याप्त सबूत मिलते हैं तो बिल्डरों की गिरफ्तारी हो सकती है। इसके बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होगी और मुकदमा चलेगा। इस मामले में दोषी मिलने पर कोर्ट बिल्डरों को जेल भेज सकती है। साथ ही जुर्माना और प्रॉपर्टी अटैच की कार्रवाई हो सकती है। इसके अलावा अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरे कराने के लिए किसी नई एजेंसी को जिम्मेदारी दी जा सकती है।