स्वामी विवेकानंद तीन बार खेतड़ी आए। स्वामी विवेकानंद पहली बार 82 दिन खेतड़ी रुके, दूसरी बार 21 और तीसरी बार 9 दिन रुके। वे खेतड़ी को अपना दूसरा घर कहते थे। पढ़ें खास रिपोर्ट
स्वामी विवेकानन्द अमरीका के शिकागो में सनातन धर्म का परचम लहराकर दिसंबर 1897 में खेतड़ी लौटे थे। खेतड़ी आगमन पर आम व खास सभी ने उनका भव्य स्वागत किया था।
उस दिन राजा अजीत सिंह अपने मुंशी जगमोहन लाल के साथ स्वामीजी का स्वागत करने के लिए 12 मील दूर बबाई कस्बे में गए। उनके पहले ही स्वामी विवेकानंद बबाई पहुंच चुके थे।
राजा ने स्वामीजी के चरणों में एक स्वर्ण मोहर तथा चांदी के सिक्के प्रणामी के रूप में अर्पित किए। दोनों काफी समय तक वार्तालाप करते रहे। इसके बाद बग्घी में बैठाकर उन्हें खेतड़ी लाया गया।
खेतड़ी में पन्नासर तालाब पर स्वामीजी को विशेष आसन पर बैठाया गया। मन्दिर के मुख्य पुरोहित ने आकर आरती उतारी और चांदी के 4 रुपए भेंट किए।
मुंशी लक्ष्मीनारायण ने 2 रुपए, गणेश ने एक रुपया, बाबू जीवनदास ने एक रुपए सहित कुल कुल 132 रुपए एकत्रित कर स्वामी जी के सम्मान में अर्पित किए थे।
132 रुपए व स्वर्ण मोहर का जिक्र वैल्लुर मठ के संग्रहालय में अंकित है। बाद में मुंशी जगमोहन लाल ने खड़े होकर सब लोगों की ओर से स्वामीजी के सम्मान में अभिनन्दन पत्र पढ़ा।
स्वामी विवेकानंद ने खुद माना है कि उन्हें ज्ञान की प्रेरणा खेतड़ी से मिली। बताया जाता है कि जब स्वामीजी खेतड़ी आए तो राजा अजीत सिंह ने अमरहाल में संगीत का कार्यक्रम रखा। कार्यक्रम को देख स्वामीजी ने अपनी आंखें बंद कर ली।
इसी दौरान नर्तकी मैना बाई ने सूरदास का भजन प्रभुजी मोरे अवगुण चित्त ना धरो सुनाया तो वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसी वक्त मोह - माया, ऊंच-नीच का त्याग कर दिया। रामकृष्ण मिशन के जरिए शिक्षा व समाज सेवा की शुरुआत स्वामीजी ने खेतड़ी से ही की थी।
स्वामी विवेकानंद का खेतड़ी से दिल का रिश्ता था। डाॅ. जुल्फिकार की लिखी पुस्तक 'स्वामी विवेकानंद चिंतन एवं रामकृष्ण मिशन खेतड़ी' में उनकी मित्रता का उल्लेख है।
इसमें लिखा है 'कुछ पुरुषों का जन्म समय विशेष पर विशिष्ट कार्यों को संपन्न करने के लिए होता है। राजा अजीत सिंह व मैं एसी दो आत्माएं है, जो मानव कल्याण के महान कार्य करने के लिए उत्पन्न हुए हैं।'
स्वामी विवेकानंद 1891 से 1897 के बीच तीन बार खेतड़ी आए। स्वामी विवेकानंद पहली बार 82 दिन खेतड़ी रुके, दूसरी बार 21 और तीसरी बार 9 दिन रुके। स्वामी विवेकानंद खेतड़ी को अपना दूसरा घर कहते थे।
128 साल पहले खेतड़ी के पन्नासर तालाब पर स्वामी विवेकानंद का भव्य स्वागत किया गया था। उस समय मंदिर के महल से सभा- मण्डप तक लाल दरी बिछाई गई थी और उनके सम्मान में अभिनंदन पत्र पढ़ा गया था। पूरे खेतड़ी में देसी घी के दीप प्रज्जवलित किए गए थे।