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सोशल मीडिया पर आक्रामक हुई पार्टियां पर क्या बिहार के वोटर को रिझाने में हो पाएंगी कामयाब?

बिहार विधानसभा चुनाव में 2020 तक जहां राजनीतिक पार्टियां डिजिटल कैंपेन को बस एक सहायक माध्यम मानती थीं, वहीं 2025 आते-आते सोशल मीडिया मुख्य मैदान बन चुका है।

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Aug 27, 2025
बिहार में इस साल नवंबर में चुनाव होंगे। (फोटो सोर्स : AI)

बिहार विधानसभा चुनाव का रणक्षेत्र इस बार सिर्फ सड़कों, सभाओं और रैलियों तक नहीं सिमटा है बल्कि फेसबुक, एक्स और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी जोरदार जंग छिड़ी हुई है। 2020 तक जहां राजनीतिक पार्टियां डिजिटल कैंपेन को बस एक सहायक माध्यम मानती थीं, वहीं 2025 आते-आते सोशल मीडिया मुख्य मैदान बन चुका है। इस मैदान पर कांग्रेस काफी सबसे आक्रामक खिलाड़ी बनकर उभरी है, जो हर दिन औसतन 50 से ज्यादा वीडियो-मीम्स पोस्ट कर रही है। इसके बाद आरजेडी, बीजेपी और जदयू का नंबर आता है। हालांकि मतदान में दलों की सोशल मीडिया रणनीति मतदाता का मूड बदल पाने में कितना कामयाब होती है, यह बड़ा सवाल है?

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राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी

पारंपरिक तौर पर देखा जाए तो सोशल मीडिया पर बीजेपी और नरेंद्र मोदी का दबदबा सबसे मजबूत माना जाता रहा है। मोदी के भाषण, उनके क्लिप्स और डिजिटल प्रचार तंत्र ने पिछले एक दशक में हर चुनावी समर में पार्टी को भारी बढ़त दिलाई। लेकिन बिहार चुनावों के ऐलान से पहले तस्वीर थोड़ी अलग दिख रही है। राहुल गांधी इस बार अपनी वोटर अधिकार यात्रा और परीक्षा-पेपर लीक, बेरोजगारी व चुनावी धांधली जैसे मुद्दों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बेहद आक्रामक ढंग से उठा रहे हैं। कांग्रेस का कंटेंट हर दिन 50+ पोस्ट के आंकड़े को छू रहा है, जबकि बीजेपी, JDU और RJD इतनी मात्रा में सामग्री नहीं डाल पा रहे। मोदी और अमित शाह के भाषणों के क्लिप्स, बीजेपी के एआई-जनरेटेड वीडियो और जंगलराज बनाम विकास नैरेटिव सोशल मीडिया पर जरूर मौजूद हैं, मगर उनकी फ्रिक्वेंसी उतनी तेज नहीं है।

एआई बना रहा है चुनावी प्रचार को हाई-टेक

बिहार की राजनीतिक लड़ाई में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से जहां बीजेपी एआई से बने वीडियो, जिनमें 1990 के दशक के जंगलराज की तस्वीरों को आज के इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास से जोड़ रही है। वहीं जदयू नीतीश कुमार के 20 साल के शासन को स्थिरता बनाम अव्यवस्था के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है।

प्रशांत किशोर की जनसुराज भी आक्रामक

इसके उल्ट आरजेडी तेजस्वी यादव को बेरोजगारी के मुद्दे पर सबसे आक्रामक चेहरा बनाने, पुराने भाषणों और विरोधाभासी क्लिप्स को काट-छांटकर एआई से रीमिक्स करने का प्रयास कर रही है। प्रशांत किशोर की जन सुराज तो पूरी तरह पर्सनैलिटी-सेंट्रिक कैंपेन चला रही है, जिसमें पीके की पदयात्रा, भाषण और नीतीश-तेजस्वी-मोदी से तुलना वाले वीडियो छाए हैं।

कांग्रेस का अंदाज अलग

लेकिन यहां कांग्रेस सबसे अलग नजर आती है। एआई का प्रयोग भले ही हर पार्टी कर रही हो, मगर पोस्टिंग की फ्रीक्वेंसी और आक्रामकता के मामले में कांग्रेस सबसे आगे है।

आंकड़े बताते हैं बदलता समीकरण

अगर फॉलोवर्स और एंगेजमेंट पर नजर डालें तो तस्वीर दिलचस्प है :

आरजेडी : कुल 24 लाख फॉलोवर्स (फेसबुक + एक्स) के साथ सबसे बड़ी डिजिटल ताकत वाली पार्टी।
जन सुराज : 21 लाख फॉलोवर्स सिर्फ फेसबुक पर और 2 लाख एक्स पर।
बीजेपी बिहार : लगभग 18 लाख फॉलोवर्स हैं।
जदयू : करीब 12 लाख फॉलोवर्स है सोशल मीडिया पर।
कांग्रेस बिहार : 9 लाख फॉलोवर्स (FB + X)।

राहुल चुनावी धांधली पर कर रहे चोट

राहुल गांधी बेरोजगारी, पेपर लीक और चुनावी धांधली जैसे युवाओं से जुड़े मुद्दों को लगातार उछाल रहे हैं। ये वही क्लास है जो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा सक्रिय है। उनकी यात्रा के छोटे-छोटे वीडियो, सड़क पर युवाओं से बातचीत और सरकार से तीखे सवाल डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रहे हैं।

मोदी-शाह राष्ट्रीय इमेज कर रहे पेश

इसके मुकाबले मोदी-शाह का प्रचार अधिकतर नेशनल इमेज पर आधारित है, जहां विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर और स्थिर सरकार आकर्षण है। लेकिन बिहार का चुनाव राज्यीय मुद्दों पर ज्यादा टिका है।

क्या बीजेपी पिछड़ रही है?

बीजेपी की मशीनरी अब भी मजबूत है, लेकिन कांग्रेस जिस आक्रामकता से रोजाना 50 से ज्यादा पोस्ट डाल रही है, उसमें बीजेपी, आरजेडी और जेडीयू सब पीछे नजर आते हैं। बीजेपी और जेडीयू के कंटेंट की संख्या 15–20 पोस्ट प्रतिदिन से आगे नहीं बढ़ पा रही, जबकि आरजेडी भी औसतन 25–30 पोस्ट पर अटकी हुई है।

चुनाव पर क्या पड़ेगा असर

राजनीतिक विश्लेषक ओम प्रकाश अश्क बताते हैं कि एआई के आने से बिहार के मतदाता पर खास फर्क नहीं पड़ने वाला। वह वीडियो पोस्ट या मीम्स को सिर्फ मनोरंजन के तौर पर लेते हैं। चुनाव पहले भी जातीय समीकरण पर लड़े गए हैं और अब भी वैसा ही होगा। AI की मदद से हर पार्टी अपनी तारीफ और सामने वाले को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही है। लेकिन बिहार के मतदाता का इससे मूड बदलने वाला नहीं है।

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