सितारों की दास्तां एक वक्त पर, यानी सत्तर और अस्सी के दौर में कोहरे में लिपटी, जादुई रहस्य का जामा पहने और चटपटी बातों की चाशनी में डूब कर पाठकों तक पहुंचती थी। लीजिए एक बानगी, उस दौर की। ये लेख वरिष्ठ पत्रकार और पॉडकास्टर जयंती रंगनाथन ने लिखा है।
फिल्मी दुनिया के वो पीले पन्ने…
Journalist Devyani Chaubal: हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक दौर वो था, जब सितारे, पत्रकार और उनके चहेते सब आपस में घुल-मिल कर रहते थे। उन दिनों न सोशल मीडिया था ना सितारों के मैनेजरों का दबदबा। फिल्म सितारों को पब्लिसिटी के लिए पूरी तरह फिल्म पत्रकारों पर निर्भर रहना पड़ता था। पत्रकारों को हक था सितारों से कभी भी मिलने का, कहीं भी पहुंचने का। बिना पैपाराजी के भी पत्रकारों की अच्छी-खासी चलती थी।
और अब? पत्रकार ना अपनी मर्जी से सितारों से मिल सकते हैं, ना उनके घर जा सकते हैं ना इंटरव्यू ले सकते हैं। सितारे तब बात करते हैं जब उनकी फिल्म रिलीज को तैयार होती है। उतनी ही बात करते हैं, जितनी उनका मैनेजर उनसे कहने को कहता है। मैनेजर पहले ही पत्रकारों को चेतावनी दे देते हैं, आपके पास सिर्फ 15 मिनट हैं, वो भी अकेले के नहीं। आपकी तरह पांच और पत्रकार बैठेंगे सितारे के साथ। आप ये-ये सवाल नहीं पूछेंगे। सिर्फ फिल्म और उनके काम से संबंधित सवाल करेंगे। सितारे आपके गॉसिप और दूसरे सवालों का जवाब नहीं देंगे, उठ कर चले जाएंगे।
फिल्म सितारों की निजी जिंदगी में पैपराजी का इतना दाखिला हो गया है कि वे दिन-रात गाड़ियों में उनका पीछा करते रहते हैं, एक एक्सक्लूसिव तस्वीर के लिए। इसके लिए कभी उनके घर के आगे पेड़ में उलटा लटक कर तस्वीरें खींचते हैं, तो कभी सितारों के घर के सामने वाले घर में कैमरा लिए घंटों खड़े रहते हैं।
रील्स और सोशल मीडिया के दौर में गॉसिप के नाम पर फिल्मी दीवानों को ये तस्वीरें परोसी जा रही हैं। पॉडकास्ट और दूसरे टीवी इंटरव्यू में सितारे बताते हैं अपने से जुड़ी बातें। उतना ही, जितना वो बताना चाहते हैं। आप इस गफलत में ना आएं कि वे जो कह रहे हैं, वो सही है। दरअसल, वो वही कहते हैं जिसमें उनका फायदा है। सितारों की दास्तां एक वक्त पर, यानी सत्तर और अस्सी के दौर में कोहरे में लिपटी, जादुई रहस्य का जामा पहने और चटपटी बातों की चाशनी में डूब कर पाठकों तक पहुंचती थी। लीजिए एक बानगी, उस दौर की।
सत्तर और अस्सी का दौर मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में पीत पत्रकारिता का माना जाता था। इसकी शुरुआत हुई थी एक प्रसिद्ध अंग्रेजी फिल्म पत्रिका से। जिसके शुरुआती पन्ने मटमैले पीले से होते थे, जिन पर छपा होता था एक से बढ़ कर एक चौंकाने वाली खबरें। सितारों के अफेयर, उनके घर के अंदर की बातें, उनकी हवस और ऊटपटांग हसरतों के किस्से। इन खबरों को लिखने में सबसे आगे थीं देवी नाम से प्रसिद्ध गॉसिप पत्रकार देवयानी चौबाल। देवयानी खुद एक खूबसूरत हस्ती थीं, गोरी, लंबी, कद्दावर शख्सीयत। अपनी जवानी में वे खुद एक हीरोइन या मॉडल से कम नहीं लगती थीं। देवयानी के परिवार में पुलिस कमिश्नर भी थे और दूसरे बड़े अधिकारी भी। इन सबके बीच पता नहीं कैसे देवयानी को फिल्मों का चस्का चढ़ गया। वो कॉलेज में ही थीं कि दिलीप कुमार की 1958 में आई फिल्म मधुमती देख कर उन्हें दिल दे बैठी। तय कर लिया कि उन्हें काम तो उन्हीं के साथ करना है। दिलीप कुमार से मिलने का कोई जरिया नहीं था। सो देवयानी ने उस समय का फिल्मी अखबार स्क्रीन जॉइन कर लिया। यहां आ कर उन्हें और दूसरों को भी इस बात का अहसास हुआ कि वो जिस तरह की पत्रकारिता करना चाहती हैं, उसके लिए गॉसिप से रगी-पगी कोई पत्रिका चाहिए।
देवयानी ने जल्द ही स्क्रीन छोड़ कर स्टार एंड स्टाइल नाम फिल्मी पत्रिका जॉइन कर ली। वहां वो देवी नाम से हर महीने फिल्मी गॉसिप का स्तंभ लिखने लगीं, फ्रेंकली स्पीकिंग नाम से। उस स्तंभ में वो सितारों के बारे में खूब चटकारे ले कर गॉसिप लिखतीं, विष वमन करतीं, इतना कि सितारे उनके नाम से भी घबराते थे। देवयानी चौबल का जलवा इतना था कि राज कपूर से ले कर राजेश खन्ना तक सब उनके मुरीद थे। फिल्मी पार्टियों में अकसर देवयानी हाथ में जाम लिए दरवाजे के पास कुर्सी लगा कर बैठा करतीं। हर आने-जाने वाला कलाकार उन्हें सलाम ठोंकता, उनकी खैरियत पूछता। जिसने नहीं पूछा, अगले कॉलम में देवयानी ठीक से उनका बाजा बजा देती।
देवयानी ने दिलीप कुमार से मिलने की कोशिश की, उनका इंटरव्यू लेने के लिए। पर जब दिलीप साहब ने इंकार कर दिया तो देवयानी ने अपने स्तंभ में उनके बारे में उल्टा-सीधा लिख दिया। यह बात भी मशहूर है कि दिलीप साहब ने 1982 में जब दुनिया से छिपा कर हैदराबाद की अस्मा रहमान से निकाह रचाया तो इसका खुलासा देवयानी ने अपने स्तंभ में कर दिया। गौरतलब है कि तब तक इस बात की जानकारी दिलीप साहब की पत्नी सायरा बानो को भी नहीं थी। इस तरह दिलीप कुमार की जिंदगी में भूचाल लाने के बाद देवयानी ने अपना बदला पूरा किया। ऐसी हरकत देवयानी धर्मेंद्र के साथ भी कर चुकी थीं। उनका हेमा मालिनी के साथ अफेयर शुरू ही हुआ था। दोनों नहीं चाहते थे कि उनके परिवार को इस बात का पता चले। देवयानी ने अपने स्तंभ में इस बात का खुलासा कर दिया। धर्मेंद्र इतने नाराज हुए कि हाथ में पिस्तौल ले कर देवयानी को रेस कोर्स में दौड़ा दिया। उनके डर से लगभग आधे दिन देवयानी टॉयलेट में छिपी रहीं।
यह बात भी देवयानी ने ही अपने अंतिम इंटरव्यू में मुझे बताई थी कि राज कपूर अकसर उन्हें अपने चेंबूर वाले बंगले या सन एंड सेंड होटल में बुला कर लंच या डिनर करवाते और कहते कि मुझे इंडस्ट्री की गॉसिप बताओ। देवयानी ने बताया था कि राज कपूर को गॉसिप सुनने का बेहद शौक था। बल्कि वो जिस भी नायिका के साथ काम करना चाहते, देवयानी से ही कह कर उनके अफेयर के बारे में पता करवाते। राज कपूर ने देवयानी से कभी यह नहीं कहा कि वो उनके और नर्गिस के बारे में कुछ ना लिखे। राज कपूर को अपने बारे में गॉसिप की खबरें आने से कोई फर्क नहीं पड़ता था। हालांकि देवयानी को इस बात की खलिश रही कि उनकी वजह से राज कपूर की पत्नी कृष्णा अपने बच्चों के साथ घर छोड़ कर होटल में रहने आ गईं। हालांकि उस समय वजह नर्गिस नहीं, वैजयंती माला थीं।
देवयानी की दुनिया में कुछ स्टार ऐसे भी थे, जो उनका इस्तेमाल करते थे आगे बढ़ने के लिए। देवयानी ने बताया था कि राजेश खन्ना जब इंडस्ट्री में आए, तो थोड़े असुरक्षित थे। उस समय उन्होंने खुद आगे बढ़ कर देवयानी से दोस्ती की और उनसे कहा कि वो अपनी पत्रिका में उनके बारे में अच्छी बातें लिखें, उनके काम की तारीफें करें। राजेश खन्ना को ले कर देवयानी के मन में कोमल भावनाएं भी थी, उन्हें लंबे समय तक लगता था कि राजेश खन्ना उनसे शादी करेंगे। राजेश खन्ना ने देवयानी को काफी समय तक अपने इश्क में उलझाए रखा, उन्हें इस भ्रम में रखा कि वो उनके कितने करीब है। लेकिन जब राजेश खन्ना ने अपनी गर्ल फ्रेंड अंजू महेंद्रू को छोड़ कर अपने से आधी उम्र की डिंपल कपाड़िया से शादी कर ली, तब देवयानी का भ्रम टूट गया।
देवयानी ने उसके बाद राजेश खन्ना के विरुद्ध भी बहुत कुछ लिखा। यहां तक लिखा कि काका उर्फ राजेश खन्ना को कैंसर हो गया है। उनके पास एक भी फिल्में नहीं हैं। एक वक्त ऐसा भी आया, जब वो देवयानी बीमार पड़ीं तो एक पत्रकार से डिंपल ने कहा कि वो सिर्फ बीमार क्यों पड़ रही हैं, इससे अच्छा होता कि मर ही जातीं हम सबकी बद्दुआ लेकर।
देवयानी का जलवा धीरे-धीरे कम होता गया। फिल्म इंडस्ट्री में शुरु हुए पीत पत्रकारिता का कलेवर बदलता गया। गॉसिप कहने वाले कई हो गए। सितारे खुद अपने बारे में गॉसिप उछालने लगे। वो समय ही कुछ ऐसा था जब सितारों की असुरक्षा चरम पर थी। फिल्म इंडस्ट्री में बहुत कुछ अनियोजित सा था। फिर बाहर से आई कंपनियों, और पीआर मैनेजरों ने सबकी सोच ही बदल दी। देवयानी अपने अंतिम समय में बहुत बीमार थीं। उनके भीतर कितना कुछ था, जो उन्होंने मुझे तीन-चार लंबे इंटरव्यू में बताया था। वो पैरेलाइज्ड थीं। बस चेहरा उनका दमकता, वो भी घर में काम करने वाली सहायिका की वजह से। कोलोन की खुशबू के इर्द-गिर्द चादर में लिपर्टी देवयानी ने मायूसी से कहा था, फिल्म इंडस्ट्री मेरी जान थी। मैंने सितारे बनाए और उनकी कहानी लोगों तक पहुंचाई। पर फिल्म इंडस्ट्री ने कभी मेरा आभार नहीं माना। मैं अकेली मर रही हूं, पैसे नहीं हैं मेरे पास। बस यादें हैं। गॉसिप की यादें।
इस इंटरव्यू के एक सप्ताह बाद ही गॉसिप क्वीन ने अंतिम सांस ले ली। आज के दौर में कोई उन्हें याद नहीं करेगा, अब रील की दुनिया में वही खबरें परोसी जाती हैं, जो सितारे चाहते हैं। आपको असली गॉसिप नहीं मिलेगा सुनने को।