Ranthambore National Park: सुल्ताना का बेटा टी-2512 सीमा लांघकर मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क तक जा पहुंचा है।
सवाईमाधोपुर। रणथम्भौर के जंगलों में बाघों की बढ़ती संख्या अब नई टेरिटरी की तलाश में है। इसी कड़ी में सुल्ताना का बेटा टी-2512 सीमा लांघकर मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क तक जा पहुंचा है। जहां देश का पहला चीता प्रोजेक्ट संचालित हो रहा है। बाघ के इस मूवमेंट ने वन विभाग की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि बाघ और चीते का आमना-सामना चीतों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। बाघ की उम्र करीब तीन वर्ष है।
यह कोई पहला मौका नहीं है, जब रणथम्भौर से कोई बाघ मध्यप्रदेश के जंगलों तक पहुंचा हो। इससे पहले भी कई बाघ-बाघिन यहां तक जा चुके हैं। रणथम्भौर का बाघ टी-38 करीब आठ साल तक कूनो में रहने के बाद 2020-21 में रणथम्भौर लौट आया था। रणथम्भौर से एमपी पहुंचे बाघों में टी-38 (बाघिन टी-13 की संतान), टी-72, टी-47 (मोहन), टी-132 और टी-136 शामिल हैं।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार राजस्थान के रणथम्भौर से लेकर एमपी के कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य तक नेचुरल टाइगर कॉरिडोर है। रणथम्भौर से निकलकर चंबल के किनारे-किनारे होते हुए बीहड़ों के सहारे अधिकतर बाघ-बाघिन एमपी के कूनो तक पहुंच जाते हैं। रणथम्भौर से कूनों की दूरी करीब सौ किमी है।
कूनो में देश का पहला चीता प्रोजेक्ट संचालित है। यहां नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों को बसाया जा रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञों की माने तो आमतौर पर बाघ और चीते एक साथ कम ही रहते हैं। चीतों की तुलना में बाघ अधिक शक्तिशाली होते हैं। ऐसे में चीतों का रहना मुश्किल होता है।
यह सही है कि रणथम्भौर से निकलकर एक बाघ कूनों की सीमा में पहुंच गया है। फिलहाल इसका मूवमेंट एमपी में ही है। इस संबंध में हमने कूनो के वन अधिकारियों को भी अवगत करा दिया है।
-मानस सिंह, उप वन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाईमाधोपुर।