MP News: मध्य प्रदेश-राजस्थान में रहने वाला एक ऐसा समाज है जो 733 साल से रक्षाबंधन नहीं मनाता है। इसकी कहानी आक्रांता के हमले और उससे लड़ने वाले वीर योद्धाओं से जुड़ी है।
Raksha Bandhan (पियूष भावसार की रिपोर्ट): भाई-बहन के प्रगाढ़ स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दू धर्म में सभी समाज और वर्ग द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता हैं, लेकिन हिन्दू धर्म का एक वर्ग श्री आदि गौड़ पालीवाल ब्राह्मण विगत 733 वर्ष से आज तक इस त्योहार को नहीं मनाता है। इस पावन पर्व को नहीं मनाने के पीछे भी भावुक कर देने वाली घटना होना बताया जाता हैं।
मध्य प्रदेश के शाजापुर में पालीवाल समाज के युवा प्रदेश अध्यक्ष ललित पालीवाल ने बताया पूर्वजों से जो कथा सुनी है उसके अनुसार राजस्थान के पाली मारवाड़ में पालीवाल ब्राह्मण (Paliwal Brahmin) 6वीं सदी से रह रहे थे। पाली नगर में पालीवालों की आबादी करीब एक लाख थी। सभी ब्राह्मण समृद्ध व संपन्न थे। बताया जाता है कि वहां बाहर से आने वाले प्रत्येक ब्राह्मण को एक ईंट व एक रुपए का सहयोग कर उसे भी संपन्न बनाते थे।
इनकी संपन्नता व समृद्धि के चर्चे पूरे भारत में थे। पाली के आसपास रहने वाले आदिवासी लुटेरे उनको लूटते थे। इस कारण इनके समाज के मुखिया ने तत्कालीन राठौड़ वंश के राजा सीहा को पाली नगर का शासन संभालने और उनकी रक्षा की जिम्मेदारी लेने का कहने पर सीहा राठौड़ ने पाली का शासक बन व पाली नगर के पालीवालों की रक्षा का दायित्व लिया।
तत्कालीन आक्रांता और जलालुद्दीन खिलजी जो शमशुद्दीन को मारकर फिरोजशाह द्वितीय के नाम से दिल्ली का शासक बना, उसने भी पाली की समृद्धि व संपन्नता की बात सुनी। इस पर मारवाड़ में आक्रमण के दौरान उसने विक्रम संवत 1348 ईस्वी सन 1291-1292 के लगभग अपनी सेना के साथ पाली को लूटने के लिए आक्रमण कर दिया। राठौड़ वंश के शासक सीहा के पुत्र आस्थान ने खिलजी सेना से युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की।
इससे पहले राव सीहा भी इनकी रक्षा के लिए बलिदान हुए। खिलजी सेना ने युद्ध के समय पाली नगर पर चारों तरफ से आक्रमण कर परकोटे को घेर लिया। यहां रहने वाले इन लोगों पर अत्याचार किए। पानी के एकमात्र विशाल तालाब में गौवंश का वध कर उसमें डाल देने के कारण पानी अपवित्र हो गया। गौवंश प्रेमी पालीवाल ब्राह्मणों ने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए अपने आपको भी युद्ध में झोंक दिया। इसमें युद्ध के दौरान हजारों की संख्या में पालीवाल ब्राह्मण शहीद हुए।
रक्षाबंधन श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही युद्ध करते हुए हजारों ब्राह्मण वीरगति हुए व धर्म नगरी रक्त रंजित होकर अपवित्र हो गई। महिलाएं बहुताधिक संख्या में विधवा हुई। बताया जाता हैं कि युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए ब्राह्मण की करीब 9 मन जनेऊ व विधवाओं के पास स्थित हाथी दांत का करीब 34 मन चूड़ा अपवित्र होने से बचाने के लिए परकोटे में स्थित बावड़ी में डालकर बंद कर दिया गया। जो स्थल वर्तमान पाली शहर स्थित 'धोला चौतरा' के नाम से विख्यात व पूजनीय स्थल हैं।
युवा प्रदेश अध्यक्ष ललित पालीवाल ने बताया कि पालीवाल ब्राह्मण जो युद्ध में जीवित बचे उन्होंने रक्षाबंधन के ही दिन अपने जातिय स्वाभिमान, धर्म रक्षार्थ पाली नगर को छोडना उचित समझा। श्रावणी पूर्णिमा की रात को सभी बचे हुए ब्राह्मणों ने संकल्प कर पाली नगर का एकसाथ परित्याग कर दिया और पूरे भारत में फैल गए। उसी दिन से पाली के रहने वाले ब्राह्मण ही पालीवाल ब्राह्मण कहलाएं।
पालीवालों के साथ जो भी जातियां जैन, महाजन, नाई, दर्जी, कुम्हार आदि पाली रहते थे वह भी पाली छोडकर अलग-अलग जगह बस गए और वे भी पालीवाल लिखने लगे। रक्षाबंधन के दिन अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करते हुए आज भी पूरे भारत में रक्षाबंधन का त्योहार पालीवाल जाति के लोग नहीं मनाते हैं। वर्तमान में ये पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन के दिन को 'पालीवाल एकता दिवस' के रूप में मनाते हैं।
पालीवाल दिवस को चिरस्थायी बनाने के लिए वर्तमान में पाली नगर में ही बड़े स्तर पर पालीवाल धाम विकसित किया जा रहा है, ताकि वर्तमान पीढ़ी पूर्वजों के बलिदान को हमेशा याद रखते हुए उनके इतिहास पर गर्व कर सके। पालीवाल ब्राह्मण समाज द्वारा पाली नगर में पुराने बाजार स्थित 'धौला चौतरा' को भी विकसित किया गया है। प्रतिवर्ष रक्षाबंधन के दिन धौला चौतरा पर संपूर्ण भारत से पालीवाल समाज के लोग आकर पूर्वजों के बलिदान को याद करते हुए पुष्पांजलि देते हैं।