वाराणसी

Shardiya Navratri 2024: देश का सबसे प्राचीन मंदिर, जहां नवरात्र के पहले दिन साक्षात दर्शन देती हैं मां शैलपुत्री

Shardiya Navratri 2024: यूपी के वाराणसी में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर है। मंदिर के सेवादार पंडित बच्चेलाल के अनुसार यहां पर मां शैलपुत्री का जन्म हुआ था।

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Oct 02, 2024
Shardiya Navratri 2024: देश का सबसे प्राचीन मंदिर, जहां नवरात्र के पहले दिन साक्षात दर्शन देती हैं मां शैलपुत्री

Shardiya Navratri 2024: काशी…जहां खुद शिव विराजमान रहते हैं। वहां से आदिशक्ति कैसे दूर हो सकती हैं। इसी का उदाहरण है काशी में बना माता शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर। मां के प्रति आस्‍था ऐसी कि हर बार नवरात्रि के पहले दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि यहां नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री खुद भक्तों को दर्शन देती हैं। इसी आस्‍था के चलते वाराणसी सिटी स्टेशन से चार किलोमीटर दूर स्थित मां शैलपुत्री के मंदिर में नवरात्र के पहले दिन आस्था का सैलाब उमड़ता है। इस बार शारदीय नवरात्रि का पहला दिन 03 अक्टूबर यानी गुरुवार को पड़ रहा है। मां के दर्शन पाने के लिए मंदिर में बुधवार रात से ही भीड़ जुटनी शुरू हो गई है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत पुराना है माता का मंदिर

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मां शैलपुत्री मंदिर बेहद प्राचीन है और यह इतना पुराना मंदिर है कि यहां पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि मंदिर को कब व किसने स्थापित किया। मंदिर के सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महराज ने बताया कि राजा शैलराज के यहां पर माता शैलपुत्री का जन्म हुआ था उनके जन्म के समय नारद जी वहां पर पहुंचे थे और कहा था कि यह पुत्री बहुत गुणवान है और भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाली होगी। इसके बाद जब माता शैलपुत्री बड़ी हुई तो वह भ्रमण पर निकल गयी। मन में शिव के प्रति आस्था थी इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंची।

यहां पर वरुणा नदी के किनारे की जगह उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद माता शैलपुत्री यही पर तप करने लगी। कुछ दिन बाद पिता भी यहां आये तो देखा कि उनकी पुत्री आसन लगाकर तप कर ही है इसके बाद राजा शैलराज भी वही पर आसन लगा कर पत करने लगे। बाद में पिता व पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में नीचे पिता राजा शैलराज शिवलिंग के रुप में विराजामन है जबकि उसी गर्र्भगृह में माता शैलपुत्री उपर के स्थान में विराजमान है। उन्होंने बताया कि मा शैलपुत्री ने फिर से पार्वती के रुप में जन्म लिया था और फिर उनका महादेव से विवाह हुआ था।

देश में नहीं होगा ऐसा मंदिर

सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महाराज का दावा है कि दुनिया में अन्य कही पर ऐसा मंदिर नहीं होगा। माता यहां पर खुद विराजमान हैं, जबकि अन्य कही पर माता के विराजमान होने की बात सामने नहीं आयी है। उन्होंने कहा कि बालावस्था में ही माता तप करने के लिए बैठ गयी थीं। इसलिए अन्य कही जाने की संभावना नहीं हो सकती है। दोनों नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री माता पार्वती और दुर्गा के नौ रूप का दर्शन देती हैं। जो भक्त नवरात्रि के पहले दिन मां का दर्शन कर लेता है, उसे आदि शक्ति के सभी रूपों का दर्शन मिल जाता है।

रात में विशेष आरती के साथ शुरू हो जाता है माता का दर्शन

नवरात्रि गुरुवार 03 अक्टूबर से आरंभ हो रही है। बुधवार रात दो बजे विशेष आरती के बाद मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे। इसके बाद माता के दर्शन का सिलसिला शुरू होकर गुरुवार रात 12 बजे तक जारी रहेगा। माता के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं और कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। माता को भक्त लाल फूल, चुनरी व नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं।

सुहागिन यहां पर सुहाग के सामान भी चढ़ाती है। धार्मिक मान्यताओं की मानें तो किसी के दांपत्य जीवन में परेशानी है तो यहां पर दर्शन करने से उसकी सारी परेशानी दूर हो जाती है। इसके अतिरिक्त माता अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करने के साथ उनकी मुराद पूरी करती है। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है और माता क दाएं हाथ में त्रिशूल व बाएं हाथ में कमल रहता है।

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