अमेरिका ने पाकिस्तान को अपने डिफेंस और खुफिया बजट को नागरिक सरकार की निगरानी में रखने का निर्देश दिया है। Trump सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक स्लामाबाद को वित्तीय जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ये निर्देश दिए गए हैं।
यह बात जगजाहिर है कि पाकिस्तान (Pakistan) अपने डिफेंस और खुफिया बजट का एक बड़ा हिस्सा आतंकी गतविधि को जारी रखने के लिए करता है। ऐसे में वैश्विक जगत की नजर भी पाकिस्तान के हथकंडों पर रहती है। अब अमेरिका के ट्रंप (Trump) प्रशासन के विदेश विभाग ने पाकिस्तान को अपने डिफेंस और खुफिया बजट को संसदीय या नागरिक सरकार की निगरानी में रखने का निर्देश दिया है।
पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वाशिंगटन ने इस्लामाबाद को वित्तीय जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ये कदम उठाने का सुझाव दिया है। इसी सप्ताह जारी अमरीकी विदेश विभाग की 2025 राजकोषीय पारदर्शिता रिपोर्ट में यह सिफारिशें शामिल की गई हैं।
अमेरिकी सरकार का यह वार्षिक मूल्यांकन विभिन्न सरकारों के बजटीय खुलेपन की समीक्षा करता है, और इस बात पर केंद्रित होता है कि राज्य सार्वजनिक पैसे के प्रबंधन का प्रकाशन, लेखा-परीक्षण और व्यय कैसे करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, पाकिस्तान में सैन्य और खुफिया बजट पर्याप्त संसदीय या नागरिक सार्वजनिक निगरानी के अधीन नहीं थे।
राजकोषीय पारदर्शिता में सुधार के लिए पाकिस्तान जो कदम उठा सकता है, उनमें अपने कार्यकारी बजट प्रस्ताव को उचित समय के भीतर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना शामिल है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पाक सरकार ने उचित समय सीमा के भीतर अपना कार्यकारी बजट प्रस्ताव प्रकाशित नहीं किया। सरकार ने प्रमुख सरकारी उद्यमों के ऋण सहित ऋण दायित्वों पर केवल सीमित जानकारी ही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को अपने सार्वजनिक ऋण दायित्वों पर विस्तृत जानकारी का खुलासा करना होगा, जिसमें राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम भी शामिल हैं।
पाकिस्तान में सार्वजनिक धन के व्यय में पारदर्शिता के अभाव पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। सार्वजनिक व्यय में अनिमितताएं और उनसे आतंकवादी गतिविधियों के पोषण पर भी कई अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में चिंता जताई गई हैं। वैश्विक निगरानी संस्थाओं ने बार-बार पाकिस्तान के आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण तंत्र की कमजोरियों को चिन्हित किया है। फाइनेंशल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को अपनी "ग्रे सूची" से हटाए जाने के बाद भी उस पर कड़ी निगरानी रखने का आग्रह किया है।
अमेरिकी कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने पहले भी इस बात पर जोर दिया है कि पाकिस्तान अनेक इस्लामी चरमपंथी और आतंकवादी समूहों के लिए पनाहगाह बना हुआ है और इस्लामाबाद के अधिकारियों ने क्षेत्रीय संघर्षों के दौरान कई बार छद्म संगठनों को बर्दाश्त किया है या उनका समर्थन किया है।
आरोप लगाया गया है कि पाकिस्तान की सत्ता में मौजूद तत्वों ने रणनीतिक प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले आतंकवादी समूहों को बर्दाश्त किया है या कुछ मामलों में उनकी सहायता भी की है, जिससे आतंकवाद-रोधी चिंताएं लंबे समय से बनी हुई हैं। विशेष रूप से, भारत लगातार यह कहता रहा है कि पाकिस्तान में आतंकवाद को राज्य का समर्थन प्राप्त है और कश्मीर घाटी तथा व्यापक दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने के लिए ऐसे छद्म संगठनों का वित्त पोषण किया गया है।
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