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अंत तक मोर्चे पर डटे रहे, राइफल की ट्रिगर पर थी अंगुली… ऐसे थे वीर राणा

MP News: अशोकनगर की माटी से एक ऐसा सपूत निकला, जिसने इस देश की मिट्टी को अपने लहू से सींच दिया। नाम था सेकंड लेफ्टिनेंट कुंवर शशींद्र सिंह राणा। 6 सितंबर 1965 को भारत-पाक युद्ध में माहौल भयानक था। राणा ने दुश्मनों को धकेलते हुए अपनी टुकड़ी को मोर्चे पर डटे रहने को प्रेरित किया।

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Second Lieutenant Kunwar Shashindra Singh Rana

सेकंड लेफ्टिनेंट कुंवर शशींद्र सिंह राणा अशोकनगर (फोटो सोर्स : पत्रिका)

MP News:अशोकनगर की माटी से एक ऐसा सपूत निकला, जिसने इस देश की मिट्टी को अपने लहू से सींच दिया। नाम था सेकंड लेफ्टिनेंट कुंवर शशींद्र सिंह राणा। 6 सितंबर 1965 को भारत-पाक युद्ध में माहौल भयानक था। राणा ने दुश्मनों को धकेलते हुए अपनी टुकड़ी को मोर्चे पर डटे रहने को प्रेरित किया। खुद को आगे रख साथियों की जान बचाई। दुश्मन कई गुना नुकसान में चला गया, लेकिन इसकी कीमत उन्होंने खुद चुकाई। एक गोली सीना चीरते हुई निकल गई अंतिम समय भी उनकी अंगुली राइफल के ट्रिगर पर थी।

1965 का भारत और पाकिस्तान युद्ध

1965 में जम्मू-कश्मीर के अखनूर-जोरिया सेक्टर में हालात तनावपूर्ण थे। दुश्मन घुसपैठ की कोशिश कर रहा था। नाज़ुक समय में तैनात थे सेकंड लेफ्टिनेंट कुंवर शशींद्रसिंह राणा। एक ऐसा नाम, जो ना डरता था और ना झुकता था। राणा के पास दो ही विकल्प थे। या तो पीछे हटें या डटकर मुकाबला करें। उन्होंने तीसरा रास्ता चुना... वीरता का।

वे मिट गए, ताकि हम बचे रहें

देश ने उनके अदम्य साहस को सलाम किया। भारत सरकार ने मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया। यह भारतीय सेना का तीसरा सबसे बड़ा युद्धकालीन सम्मान है। जब हम तिरंगा फहराएं, राष्ट्रगान गाएं तो कुछ पल रुककर याद करें सेकंड लेफ्टिनेंट कुंवर शशींद्रसिंह राणा को। अशोकनगर की माटी का यह लाल, जो मिट गया देश के लिए ताकि हम बचे रहें।