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केपी शर्मा ओली को फिर से मिली नेपाल की गद्दी, आज लेंगे प्रधानमंत्री पद की शपथ

नेपाल में विपक्षी दल तीन दिन में नहीं हासिल कर पाया विश्वासमत मत, आज केपी शर्मा ओली लेंगे पीएम पद की शपथ

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Dheeraj Sharma

May 14, 2021

KP Sharma Oli

KP Sharma Oli

नई दिल्ली। भारत के पड़ोसी देश नेपाल ( Nepal ) में लंबे चले सियासी घटनाक्रम के बाद आखिरकार केपी शर्मा ओली ( KP Sharma Oli ) के दोबारा प्रधानमंत्री बनने पर मुहर लग गई। केपी शर्मा ओली को एक बार फिर नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त हो गए हैं।

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भण्डारी ने नेपाल की संविधान के तहत सबसे बड़े दल के नेता होने के कारण ओली को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया है। शुक्रवार की दोपहर करीब 2.30 बजे केपी शर्मा ओली का शपथग्रहण समारोह होगा।

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नेपाल की संसद में विश्वास मत हारने के बाद राष्ट्रपति ने गठबन्धन की सरकार बनाने के लिए केपी शर्मा ओली को तीन दिन का समय दिया था, हालांकि नेपाल की विपक्षी पार्टियों की तमाम कोशिश के बावजूद बहुमत जुटाने में नाकाम रहे।

इस आधार पर राष्ट्रपति ने किया नियुक्त
दरअसल गठबन्धन की सरकार के लिए तय समय सीमा खत्म होने के साथ ही राष्ट्रपति विद्या भण्डारी ने संविधान की धारा 76 (3) के तहत सबसे बड़े दल के रूप में नियुक्त किया है।

राष्ट्रपति के फैसले के बाद केपी ओली शुक्रवार 14 मई को की दोपहर को शपथ ग्रहण समारोह के दौरान एक बार फिर प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे।

अभी कम नहीं हुई चुनौती
प्रधानमंत्री पद पर मुहर लगने के बाद भी केपी ओली की चुनौती कम नहीं हुई है, केपी शर्मा को सदन में विश्वास का मत हासिल करने के लिए 30 दिनों का समय दिया जाएगा। इस वक्त में उन्हें विश्वास मत हासिल करना होगा।

विपक्षी दलों को निराशा
केपी शर्मा ओली के खिलाफ विपक्षी दलों ने जमकर मोर्चाबंदी की, हालांकि वे इसमें सफल नहीं हो पाए। तीन दिन पहले ही संसद में विपक्षी ओली के खिलाफ बहुमत जुटाने में नाकाम रहा। तमाम दलों ने मिलकर ओली के 93 के मुकाबले 124 मत तो हासिल किए लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से 12 वोट दूर रहे गए। तीन दिन की मशक्कत के बावजूद उनको इसमें सफलता नहीं मिली।

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ऐसे विपक्ष की बढ़ी मुश्किल
ओली के खिलाफ लामबंदी में विपक्ष के सामने जो मुश्किल आई वो थी, नेपाली कांग्रेस, माओवादी और जनता समाजवादी पार्टी को एकजुट कर पाना। जानकारों की मानें तो ये तीनों पार्टियां एकजुट रहती तो ओली के खिलाफ बहुमत आसानी से जुट सकता था। लेकिन ओली के बिछाए जाल में विपक्षी पार्टियां इस कदर उलझ गई कि वो ना तो विपक्षी एकता ही बचाने में कामयाब हो पाईं और ना ओली को सत्ता से बेदखल ही कर पाईं।