
पाकिस्तानी मीडिया का दावा: यह चुनाव मोदी के लिए नहीं है आसान !
नई दिल्ली। भारत में आगामी लोकसभा के लिए मतदान की प्रक्रिया जारी है। अभी तक तीन चरण के मतदान हो चुके हैं। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दल जमकर अपने विरोधियों पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच भारतीय चुनाव को लेकर जहां पूरी दुनिया नजर बनाए हुए है वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान भी टकटकी भरी नजर से देख रहा है। पाकिस्तानी मीडिया ने भारतीय चुनाव को लेकर अनुमान भी लगाया है और बताया है कि इस चुनाव में किस तरह से युवा मतदाता प्रभावित कर सकते हैं। पाकिस्तानी मीडिया ने इसके लिए कई दावे किए हैं और बताया है कि मोदी सरकार के लिए यह चुनाव आसान नहीं है। इसके लिए कई मानकों को आधार बनाया है जिसमें बेरोजगोरी सबसे बड़ा मुद्दा है।
बेरोजगारी को बताया 'राष्ट्रीय आपदा'
पाकिस्तानी मीडिया ने दावा किया है कि जिस तरह से 2014 में नरेंद्र मोदी ने क्लीन स्वीप करते हुए पूर्ण बहुमत हासिल किया था, वैसा माहौल इस बार नजर नहीं आ रहा है और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि युवाओं से जो भी वादे किए गए थे उसे पूरा नहीं किया गया। 2014 में नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि युवाओं को हर साल 2 करोड़ नौकरी दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब भारत में बेरोजगारी चरम पर पहुंच गया है, जो कि चुनावों में मोदी के लिए राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं है। पाक मीडिया ने यह बताया है कि 1970 के बाद से यह पहली बार है जब भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। भारत में 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम की है और वे सभी रोजगार के लिए परेशान हैं। पाक मीडिया ने यह भी कहा है कि विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए बेरोजगारी को राष्ट्रीय आपदा बताया है।
महिलाओं की कम होती भागीदारी
पाकि मीडिया ने यह दावा किया है कि मोदी सरकार के लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है कि लगातार महिलाओं की भागीदारी कम हुई है। वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए यह बताया है कि कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम हो गया है। 2005 में 38.7 प्रतिशत भागीदारी थी जो कि 2017 में घटकर 28.6 प्रतिशत हो गया है।
शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल
पाकिस्तान की मीडिया ने यह भी बताया है कि मोदी सरकार में देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ी गिरावट आई है। यह दावा किया है कि भारत में हर साल लाखों की संख्या में स्नातक के विद्यार्थी पास होकर विश्वविद्याल से बाहर निकल रहे हैं। लेकिन उनके पास रोजगार व नौकरी नहीं होता है। इसके साथ ही विश्वविद्याल व स्कूलों में पढ़ाई का स्तर काभी नीचे है। एक 14 साल का विद्यार्थी ग्रामीण इलाको में साधारण किताब भी नहीं पढ़ सकता है। 56 फीसदी विद्यार्थी किताब पढ़ने में असमर्थ हैं, जबकि लाखों बच्चे स्कूल तक पहुंच ही नहीं पाते हैं।
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Updated on:
24 Apr 2019 09:22 am
Published on:
24 Apr 2019 07:07 am
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