
भोपाल। हिन्दु धर्म में कुछ परम्पराएं हैं, जो सदियों पुरानी जरूर हैं, लेकिन वर्तमान में भी नियमित रूप से इन परम्पराओं का पालन किया जाता है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि ये परम्पराएं नाम की नहीं बल्कि बड़े काम की है। इनके पीछे साइंस का ऐसा लॉजिक छिपा है, जिसे वर्तमान पीढ़ी को जानना बेहद जरूरी है। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे ही रीति-रिवाज और परम्पराएं जिनके ढेरों फायदे हैं। बात चाहे पैर छूने की हो, भगवान के सामने हाथ जोडऩे की हो, तिलक लगाने या फिर महिलाओं के शृंगार के तौर-तरीकों की, इन परम्पराओं का महत्व जानकर आप भी सोचेंगे ऐसा भी हो सकता है...।
हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति का अभिवादन हाथ जोड़कर या पैर छूकर किया जाता है। इसके अलावा भी ऐसी कई परंपराएं हैं, जिनका सदियों से पालन किया जाता रहा है। आज भी भारतीय लोगों में ये संस्कार देखने को मिलते हैं। लेकिन आपको बता दें कि आज के मॉडर्न जमाने में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन परम्पराओं के महत्व को अतार्किक बताकर नकारने का प्रयास भी करते हैं। जबकि इन संस्कारों के पीछे कई साइंटिफिक फैक्ट हैं, जो इन्हें अपनाने वालों को एक आधार देते हैं...यहां जानिए हर संस्कार का एक वैज्ञानिक महत्व...
नमस्ते करना
किसी आदरणीय व्यक्ति का अभिवादन करने के लिए भारतीय लोग नमस्ते करते हैं। वैसे तो कोविड के समय ने लोगों को नमस्ते का महत्व भी समझा दिया है, लेकिन इसका वैज्ञानिक तथ्य कहता है कि वास्तव में जब हम नमस्ते करने के लिए हाथ जोड़ते हैं तो हमारी उंगलियां एक-दूसरे को स्पर्श करती हैं। इस दौरान एक्यूप्रेशर से हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किसी तरह के संक्रमण का भी खतरा नहीं रहता। वहीं हाथ मिलाने से एक-दूसरे के हाथों में मौजूद बैक्टीरिया की आवाजाही का खतरा बढ़ता है।
तिलक लगाना
पूजा-पाठ के दौरान या किसी शुभ मौके पर मस्तक पर तिलक लगाया जाता है। तिलक लगाने के पीछे का वैज्ञानिक तथ्य बताता है कि हमारे मस्तक के बीचोंबीच आज्ञाचक्र होता है। यही स्थान पीनियल ग्रन्थि का होता है। जब उस स्थान पर तिलक लगाया जाता है तो, पीनियल ग्रन्थि का उद्दीपन होता है। इससे शरीर के सूक्ष्म और स्थूल अवयन जागृत होते हैं। मस्तक पर तिलक लगाने से बीटाएंडोरफिन और सेराटोनिन नामक रसायनों का स्राव संतुलित होता है। इससे मस्तिष्क शांत होता है। एकाग्रता बढ़ती है। यहां तक कि यह गुस्सा और तनाव को भी कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा यह सकारात्मक सोच को बढ़ाता है।
जमीन पर बैठकर खाना खाना
आजकल बेशक डाइनिंग टेबल पर भोजन करने का चलन है। लेकिन ज्यादातर घरों में आज भी लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं। जमीन पर पालथी लगाकर बैठा जाता है फिर भोजन किया जाता है। इस संस्कार का वैज्ञानिक लॉजिक कहता है कि वास्तव में पालथी लगाकर बैठना एक योग क्रिया है। इससे हमारा डायजेशन सिस्टम दुरुस्त होता है। साथ ही साथ बैठकर भोजन करने से आपसी प्रेम बना रहता है।
पैर छूना
किसी बड़े का आशीर्वाद पाने के लिए भारतीय लोग चरणों को स्पर्श करते हैं। वास्तव में पैर छूने से दिमाग से निकलने वाली सकारात्मक एनर्जी हाथों और सामने वाले के पैरों से होते हुए एक चक्कर पूरा कर लेती है। इससे नकारात्मकता दूर होती है। अहंकार मिटता है और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रेम, समर्पण का भाव जागता है। यही भाव हमारे व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है।
मांग में सिंदूर भरना
शादी के बाद महिलाएं मांग में सिंदूर भरती हैं। इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक तथ्य है। वह कहता है कि सिंदूर को सिर के जिस हिस्से पर लगाया जाता है, वो बहुत ही कोमल होता है. इस स्थान को 'ब्रह्मरंध्र' कहते हैं। सिंदूर में पारा होता है, जो एक दवा की तरह काम करता है और महिलाओं का ब्लडप्रेशर नियंत्रण में रखने में मददगार माना जाता है। ये तनाव और अनिद्रा की समस्या को नियंत्रित करता है। साथ ही यौन उत्तेजना को बढ़ाता है। यही वजह है कि कुंवारी लड़कियों और विधवा महिलाओं के सिंदूर लगाने पर पाबंदी होती है।
चूडिय़ां पहनना
महिलाएं हाथों में चूडिय़ां धारण करती हैं, इसका भी वैज्ञानिक तथ्य है। यह बताता है कि चूड़ी हाथ में घर्षण करती है जिससे हाथों का रक्त संचार बढ़ता है। हाथों में चूड़ी पहनना सांस के रोग और दिल की बीमारी की आशंकाओं को घटाता है। चूड़ी पहनने से मानसिक संतुलन बना रहता है, तभी महिलाएं अपने काम को पूरी निष्ठा के साथ करती हैं। विज्ञान कहता है कि चूडिय़ों का घर्षण ऊर्जा बनाए रखता है। इससे थकान दूर रहती है। विज्ञान का मानना है कि कांच की चूडिय़ों के टकराने से निकलने वाली ध्वनि से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। वहीं कलाई के नीचे से लेकर 6 इंच तक में जो एक्यूपंचर पॉइंट्स होते हैं, इनके समान रूप से दबने पर शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।
कान छेदन संस्कार
वैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि जिस जगह कान छिदवाया जाता है, वहां पर दो बहुत जरूरी एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स मौजूद होते हैं। पहला मास्टर सेंसोरियल और दूसरा मास्टर सेरेब्रल जो सुनने की क्षमता को बढ़ाते हैं। इस बारे में एक्यूपंक्चर में कहा गया है कि जब कान छिदवाए जाते हैं तो इसका दबाव ओसीडी पर पड़ता है, जिसके कारण घबराहट कम होती है और कई तरह की मानसिक बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। कान छिदवाने से दिमाग के कई हिस्से सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए जब बच्चे के दिमाग का विकास हो रहा हो तभी, बच्चे का कान छिदवा देना चाहिए। कान छिदवाने से हमारी आंखों की रोशनी सही रहती है, इसके अलावा यह हमारी ब्रेन पावर को बढ़ाने का काम भी करता है। कानों के निचले हिस्से का संबंध भूख लगने से भी होता है। कान छिदवाने से पाचन क्रिया दुरुस्त बनी रहती है और मोटापा कम होता है। मान्यता है कि कान छिदवाने से लकवा की बीमारी नहीं होती है।
शंख बजाना
शंखनाद यानी शंख बजाना धार्मिक रूप से आध्यात्मिक रूप से शुभ माना गया है। इसीलिए पूजा-पाठ के अलावा विवाह, विजय के उत्सव, राज्याभिषेक, हवन और किसी के आगमन के समय आमतौर पर शंख बजाया जाता है। लेकिन शंख बजाने के कई वैज्ञानिक तथ्य भी हैं जो बताते हैं कि शंख बजाने से हम स्वस्थ रहते हैं। कई रोगों के कीटाणु भी दूर हो जाते हैं। शंखनाद में प्रदूषण को दूर करने की अद्भुत क्षमता होती है। शंख की आवाज जहां तक जाती है, वहां तक कई रोगों के कीटाणु खत्म हो जाते हैं या फिर वे निष्क्रिय हो जाते हैं। शंख की ध्वनि कई रोगों में लाभदायक है। शंख की ध्वनि लगातार सुनना हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है। इससे हार्ट अटैक की संभावनाएं कम होती हैं। शंखनाद पर हुए कई शोधों का यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इसकी तरंगें बैक्टेरिया नष्ट करने के लिए एक तरह से श्रेष्ठ और सस्ती औषधि है। इससे हैजा, मलेरिया के कीटाणु भी नष्ट होते हैं। शंख ध्वनि से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। मानसिक तनाव, ब्लडप्रेशर, मधुमेह, नाक, कान और पाचन से संबंधित रोगों में रक्षा होती है। पूजा-पाठ के बाद शंख में भरा जल श्रद्धालुओं पर छिड़का जाता है और उसे हम पीते भी हैं। इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होती है। वहीं इसमें गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम के तत्व भी होते हैं।
Updated on:
26 Dec 2022 07:17 pm
Published on:
26 Dec 2022 07:16 pm
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