10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Brihaspati Chalisa : बृहस्पति चालीसा के नियमित पाठ से मिल सकता है दुनिया का हर सुख, चमत्कारी हैं लाभ

Brihaspati Chalisa : श्री बृहस्पति देव चालीसा गुरु बृहस्पति की महिमा बताती है। इसके नियमित पाठ से बुद्धि, ज्ञान, सुख, शांति और जीवन में चहुंमुखी उन्नति मिलती है। साथ ही मनचाही इच्छा पूरी होमे की मान्यता है। इस लेख में हमने आपको बृहस्पति चालीसा के साथ ही उसके हिंदी अर्थ और लाभ को भी समझाया है।

2 min read
Google source verification
Brihaspati Chalisa

Brihaspati Chalisa : बृहस्पति चालीसा (फोटो सोर्स: AI image@Gemini)

Brihaspati Chalisa in Hindi: गुरुवार के दिन बृहस्पति चालीसा का नियमित पाठ आपकी मनचाही इच्छा पूरा कर सकता है। इसके लिए आपको विधि-विधान, विश्वास और पूर्ण भक्ति-भाव से इसका पाठ करना चाहिए। इस लेख में आपको गुरु बृहस्पति चालीसा का आसान हिंदी अर्थ और उसके लाभ के बारे में बताने वाले हैं। साथ ही संपूर्ण बृहस्पति चालीसा भी यहां दी गई है।

श्री बृहस्पति देव चालीसा का सरल अर्थ

इस चालीसा में गुरु बृहस्पति देव की अद्भुत महिमा बताई गई है। वे ज्ञान, बुद्धि, धर्म और सत्य के प्रतीक हैं। गुरु बृहस्पति अज्ञान को दूर कर सही मार्ग पर चलाते हैं। उनका जीवन त्याग, तप और सेवा से भरा रहा। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए तप किया और समाज को सही दिशा दी। जो श्रद्धा से उनका ध्यान करते हैं, उसे शांति, सुख, बुद्धि और सफलता मिलती है। चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मन निर्मल होता है। रामचरितमानस के अनुसार, निर्मल मन से ही भगवान को पाया जा सकता है।

श्री बृहस्पति देव चालीसा

दोहा

प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।
श्री गणेश शारद सहित, बसों ह्रदय में आन॥
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान।
दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान॥

चौपाई

जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर॥
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता।भारत भू के प्रेम प्रेनता॥
जब जब हुई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी॥
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥
उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धरम की रक्षा॥
अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तानचंद पिता कर नामा॥
शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाए॥
रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख॥
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥
जन्म वृतन्त सुनायए नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना॥
नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥
ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित॥
एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥
चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी॥
पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥
अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का॥
युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी॥
अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥
त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आए नारायण॥
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा॥
हृदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥
एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता॥
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर॥
रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥
अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया॥
वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥
पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे॥
चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥
चिन्तन करत मंत्र जब गाएं। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलाएं॥
मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भूत-पिशाचा॥
प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन॥
निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥
पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा॥
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥
श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा॥
जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥