5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

माता सती की नाभि यहां गिरी थी! तब कहीं जाकर काली नदी के तट पर बना ये शक्तिपीठ

Navratri Special: 108 सिद्ध पीठों में से एक यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है...

7 min read
Google source verification

image

Deepesh Tiwari

Oct 02, 2019

navratri_vishesh.jpg

,,

साल में शक्ति की उपासना के चार प्रमुख पर्वों में से एक शारदीय नवरात्रि का माना जाता है। जो इन दिनों चल रहा है। इन 9 दिवसीय पर्व में एक चैत्र नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि भी आती हैं।

ऐसे में देवी मां की उपासना के तहत भक्त देवी मां के मंदिरों में दर्शनों को जाते हैं। वहीं इन दिनों में देवी मां के शक्ति पीठों का दर्शन अत्यंत खास माना जाता है।

ऐसे में आज हम आपको उत्तरांचल में स्थित देवी मां के एक ऐसे शक्ति पीठ के बारे में बता रहे हैं। जिसे महाकाली की पीठ माना जाता है। वहीं यहां सती माता की नाभि गिरने का भी स्थान माना गया है। इसके साथ ही आज हम आपको बताएंगे कि आखिर इन शक्ति पीठों के अस्तित्व में आने की कहानी क्या है।

अत्यंत चमत्कारी इस शक्ति पीठ ( Purnagiri Mandir ) के संबंध में कहा जाता है कि अभी कुछ वर्षों पूर्व तक शाम होते ही यहां रूकना मना होता था, वहीं शाम के समय यहां से आने वाला सुमधुर संगीत बहुत कम व उन सिद्ध लोगों को ही सुनाई देता था जो यहां शाम के समय मौजूद रह जाते थे। लेकिन उनके लिए भी इस संगीत के स्थान तक पहुंचा मुमकिन न के बराबर था।

MUST READ : बस इस दिन करें ये काम और पाएं देवी मां से मनचाहा वरदान!

अत्यंत चमत्कारी व सिद्ध है पूर्णागिरी माता का मंदिर..
दरअसल पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फीट की ऊंचाई पर है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था।

प्रतिवर्ष इस शक्तिपीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहां आते हैं। यह स्थान नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चंपावत जनपद के टनकपुर से मात्र 17 किलोमीटर की दूरी पर है। "मां वैष्णो देवी" जम्मू के दरबार की तरह पूर्णागिरी दरबार में हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

अत्यन्त दुरुह और खतरनाक रास्ता...
यहां पहुंचने का रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है। क्षणिक लापरवाही अनन्त गहराई में धकेलकर जीवन समाप्त कर सकती है। नीचे काली नदी का कल-कल करता पानी स्थान की दुरुहता से हृदय में कम्पन पैदा कर देता है।

MUST READ : नवरात्रि में श्रीरामरक्षास्तोत्र के पाठ से होगी हर मनोकामना पूरी!

देवराज इन्द्र ने की थी तपस्या यहां...
वहीं मंदिर के रास्ते में टुन्नास नामक स्थान पड़ता है, यहां पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की, ऐसी भी जनश्रुती है। यहां ऊंची चोटी पर गाढ़े गए त्रिशुल आदि ही शक्ति के उस स्थान को इंगित करते हैं जहां सती का नाभि प्रवेश गिरा था।

पूर्णगिरी क्षेत्र की महिमा और उसके सौन्दर्य से एटकिन्सन भी बहुत अधिक प्रभावित था उसने लिखा है "पूर्णागिरी के मनोरम दृष्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा अवर्णनीय है, प्रकृति ने जिस सर्वव्यापी वन सम्पदा के अधिर्वक्य से इस पर्वत शिखर पर स्वयं को अभिव्यक्त किया है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का कोई भी क्षेत्र शायद ही इसकी समता कर सके, किन्तु केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना पथ आलोकित कर सके हैं।"

MUST READ : MP के इन देवी मंदिरों में आज भी सामने दिखते हैं चमत्कार!

नवरात्रियों पर आते हैं लाखों भक्त
यहां हर नवरात्रि पर भक्तों के आने का सिलसिला जारी रहता है। सामान्यत: केवल नवरात्र में ही नहीं बल्कि हर मौसम में भक्त यहां आते हैं। वहीं शरद ॠतु की नवरात्रियों के स्थान पर यहां मेले का आनंद चैत्र की नवरात्रियों में ही अधिक लिया जा सकता है, क्योंकि वीरान रास्ता व इसमें पडऩे वाले छोटे-छोटे गधेरे मार्ग की जगह-जगह दुरुह बना देते हैं।

चैत्र की नवरात्रियों में लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर यहाँ आते हैं। अपूर्व भीड़ के कारण यहाँ दर्शनार्थियों का ऐसा तांता लगता है कि दर्शन करने के लिए भी लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। मेला बैसाख माह के अन्त तक चलता है।

बाघ भी आता था यहां
बुजुर्गों के अनुसार कुछ वर्ष पहले तक यहां शाम होते ही एक बाघ(माता की सवारी) आ जाता था, जो माता के मंदिर के पास ही सुबह तक रूकता। इस कारण पूर्व में लोग शाम होते ही यह स्थान खाली कर देते। अभी भी रात में यहां जाना वर्जित माना जाता है। मान्यता है कि यहां रात के समय केवल देवता ही आते हैं।

यहां वृक्ष नहीं काटे जाते
यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है, नेपाल इसके बगल में है। जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते। टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढऩे के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहां पहुंचते हैं।

ऐसे समझें यहां की कथा
इस देवी दरबार की गणना भारत की शक्तिपीठों में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया।

सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई। सती की जली हुई देह लेकर भगवान शिव शंकर आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव शंकर के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से सती के शरीर के अंग पृथक-पृथक कर दिए।

सती का नाभि: जहां-जहां पर सती के अंग गिरे वहां पर शक्तिपीठ स्थापित हो गये। पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा वहां पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।

ऐसे पहुंचे माता के दरबार, यह रखें तैयारी
पूर्णागिरी मैया का यह धाम टनकपुर(उत्तरांचल) में ही स्थित है। यहां पहुंचने के लिए टनकपुर नजदीक का रेलवे स्टेशन है। इसके अलावा बरेली से टनकपुर के लिए तमाम बसें उपलब्ध रहती हैं।

टनकपुर टेक्सी स्टैंड से पूर्णागिरी धाम के लिए दिन भर टैक्सी, बसों की सेवा उपलब्ध रहती है। टनकपुर से पूर्णागिरी धाम की दूरी 22 किलोमीटर है।

शक्ति पीठ में दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की संख्या वर्ष भर में 25 लाख से अधिक होती है। यहां आने के लिये आप सड़क या रेल के द्वारा पहुंच सकते है। वायु मार्ग से आने के लिए यहां का निकटतम हवाई अडड़ा पन्तनगर है। यहाँ सर्दी के मौसम में गरम कपड़े जरूरी हैं और तो और ग्रीष्म ऋतु मे हल्के ऊनी कपडों की जरूरत पड़ सकती है।


ऐसे समझें मां पूर्णागिरि का महातम्य...
चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण चंपावत जिले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है।

तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर मां पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है।

इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं किंतु चैत्र मास की नवरात्र में यहां मां के दर्शन का इसका विशेष महत्व बढ जाता है। मां पूर्णागिरि का शैल शिखर अनेक पौराणिक गाथाओं को अपने अतीत में समेटे हुए है।

पौराणिक गाथाओं एवं शिव पुराण रुद्र संहिता के अनुसार मां सती का नाभि अंग अन्नपूर्णा शिखर पर गिरा जो पूर्णागिरि के नाम से विख्यात् हुआ तथा देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि,कालिका गिरि,हमला गिरि व पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ।

देवी भागवत और स्कंद पुराण तथा चूणामणिज्ञानाणव आदि ग्रंथों में इस प्राचीन सिद्धपीठ का भी वर्णन है जहां एक चकोर इस सिद्ध पीठ की तीन बार परिक्रमा कर राज सिंहासन पर बैठा। यहां छोटे बच्चों का मुंडन कराना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

माता के बारे में कई गाथाएं और किन्दवंतिया प्रचलित है। कुछ लोगों की मान्यता है माता पूर्णागिरी का दरबार विश्व के 51 शक्ति पीठों में एक है अत: इस दरबार का अपना अलग महत्व है तभी यहां की जाने वाली मनौती अधूरी नहीं जाती। कुछ लोग बताते हैं पूर्णागिरी का इतिहास जानने से कई रहस्यमय तथ्यों की जानकारी मिलती है।

देवी शक्ति पीठ: जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां हुआ शक्तिपीठों का निर्माण - Story of Shaktipeeth Construction ...

शक्ति पीठों के संबंध में मान्यता है कि जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां हुआ शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। दरअसल देवी पुराण के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया।

माता सती को नारद से यह बात पता चली की उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है। उन्होंने शिवजी के मना करने पर भी जि़द की और अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए हरिद्वार चली गई। वहां जाने पर जब उन्हें पता चला कि यज्ञ में शिवजी को छोड़कर सारे देवताओं को आमंत्रित किया गया है।

तब उन्होंने अपने पिता से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कही। वे बातें माता सती से सहन नहीं हुई और उन्होंने अग्रिकुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी। जब ये समाचार शिवजी तक पहुंचा तो वे बहुत क्रोधित हुए उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने उनके कहने पर दक्ष का सिर काट दिया।

शिव को इस वियोग से निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता के देह को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। कहा जाता है कि जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण किया गया। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है।

वहीं, देवी भागवत में 108 देवी गीता में 72 व तंत्रचूड़ामणि में 52 शक्ति पीठ बताए गए हैं। विभाजन के बाद भारत में कुल 42 शक्ति पीठ रह गए हैं, बाकि विदेश में स्थित हैं।

MUST READ :
शारदीय नवरात्रि 2019: हाथी पर सवार होकर आईं मां दुर्गे

MUST READ :

नवरात्रि: हर दुःख को दूर करती हैं ये देवी मां! न्याय के लिए विराजी हैं 1000 फीट ऊंचे पर्वत पर...

MUST READ :

शारदीय नवरात्रि Special : पाप और बाधाएं नष्ट करने व आयु-यश में वृद्धि के लिए ऐसे करें देवी मां की पूजा

MUST READ :

अक्टूबर 2019 में नौ दिन पड़ रहे हैं सर्वार्थ सिद्धि योग, जानें शुभ मुहूर्त 2019

MUST READ :

शारदीय नवरात्रि 2019 का 5वां व 6वां दिन: समस्त इच्छाएं पूर्ति के साथ ही मोक्ष सहित चारों फलों की प्राप्ति के लिए देवी मां की करें अराधना