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संकष्टी चतुर्थी 2021: भगवान गणेश की पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत का महत्व

संकष्टी चतुर्थी 2021 का दिन भगवान गणपति को समर्पित है। इस दिन व्रत और प्रथम पूज्य श्री गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

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Sankashti Chaturthi 2021

Sankashti Chaturthi 2021

नई दिल्ली। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इस बार शुक्रवार 30 अप्रैल 2021 को संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है। संकष्टी चतुर्थी का दिन भगवान गणपति को समर्पित है। मान्यता है कि भगवान गणेश की प्रथम पूजा से सभी काम निर्विघ्न संपन्न होते हैं। रोजाना देव गणपति की पूजा से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। विशेष तिथियों और त्यौहारों पर गणपति की आराधना से धन-धान्य से घर संपन्न रहता है। इस दिन व्रत और प्रथम पूज्य श्री गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है। जिससे सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। आइए जानते है संकष्ट चतुर्थी का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि...

संकष्टी चतुर्थी 2021 शुभ मुहूर्त :—
— विकट संकष्टी चतुर्थी : 30 अप्रैल 2021, शुक्रवार को
— विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन चन्द्रोदय का समय : 10:48 रात
— चतुर्थी तिथि के दौरान कोई चन्द्रोदय नहीं है
— चतुर्थी तिथि प्रारम्भ : 29 अप्रैल 2021 को रात 10:09 बजे
— चतुर्थी तिथि समाप्त : 30 अप्रैल 2021 को शाम 07:09 बजे

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पूजन विधि :—
— सर्वप्रथम सुबह स्नान कर साफ और धुले हुए कपड़े पहनें। पूजा के लिए भगवान गणेश की प्रतिमा को ईशानकोण में चौकी पर स्थापित करें। चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा पहले बिछा लें।
— भगवान गणेश जी के सामने हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें और फिर उन्हें जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। अक्षत और फूल लेकर ओम ‘गं गणपतये नम:’ मंत्र का उच्चारण करे हुए भगवान को प्रणाम करें।
— इसके बाद एक थाली या केले का पत्ता लें। इस पर आपको एक रोली से त्रिकोण बनाना है। त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें। इसी के साथ बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च को रखें। पूजन उपरांत चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें। पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।

संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व:—
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता और प्रथम पूजय देव के रूप में जाना जाता है। किसी भी कार्य को करने से पूर्व सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन किया जाता है। शास्त्रों में गणपति को विघ्नहर्ता की संज्ञा दी गई है। ये अपने भक्तों की सभी आपदाओं का संहार करते हैं और उनके जीवन में विघ्न –बाधा को दूर कर मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की आराधना करने से निसंतान दंपतियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा करने से पाप ग्रह केतु और बुध ग्रह की अशुभता भी दूर होती है।