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Shani Chalisa In Hindi: शनि चालीसा के पाठ से खत्म हो सकती है शनि की ढय्या और साढ़े साती, ये हैं अद्भुत लाभ

Shani Chalisa In Hindi: शनि चालीसा का पाठ जीवन के कष्टों, शनि दोष और साढ़े साती के प्रभाव को कम करने का सबसे आसान उपाय है। इस लेख में हम आपको, शनि चालीसा के पाठ से होने वाले 5 चमत्कारी लाभ और पूजा विधि बताने वाले हैं। माना जाता है कि शनि देव रंक को भी राजा बना देते हैं।

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भारत

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Adarsh Thakur

Dec 12, 2025

Shani Chalisa In Hindi

Shani Chalisa In Hindi: शनि चालीसा हिंदी अर्थ और लाभ। (Photo Credit: Gemini)

Shani Chalisa Ke Labh: शनि चालीसा का पाठ जीवन के कष्टों, शनि दोष और साढ़े साती के प्रभाव को कम करने का सबसे आसान तरीका होता है। इस लेख में हम आपको, शनि चालीसा के पाठ से होने वाले 5 चमत्कारी लाभ बताने वाले हैं। माना जाता है कि, विधि और श्रद्धापूर्वक पूजा करने से शनि देव रंक को भी राजा बना देते हैं।

शनि चालीसा के लाभ

  • जो व्यक्ति नियमित रूप से शनि चालीसा का पाठ करता है, उसे शनि की महादशा, साढ़े साती और ढैया नहीं सताता।
  • शनि देव की कृपा से शत्रुओं का बल कमजोर हो जाता है और भक्त निर्भय होकर जीत पाता है।
  • मान्यता है कि, शनि देव प्रसन्न होने पर भिखारी (रंक) को भी क्षण भर में राजा (धनवान) बना देते हैं।
  • शनि देव अपने भक्तों के सभी दुख, दरिद्रता और संकटों को दूर कर उनका भाग्य बना देते हैं।
  • मान्यता है कि जो भक्त 40 दिन तक श्रद्धापूर्वक शनि चालीसा का पाठ करता है, उसे मोक्ष मिलता है।शनि चालीसादोहाजय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥

परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥

पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥

पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥

बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥

रावण की गति-मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥

दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥

हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥

विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥

तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥

तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥

कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥

शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥

वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥

जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥

गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥

तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥

समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥

जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
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