
मुलायम सिंह यादव
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति का बड़ा नाम। मुलायम ही थे जिन्होंने पूर्वांचल में कांग्रेस के वर्चश्व को समाप्त कर इस सपा का गढ़ बनाया। खुद तो तीन बार मुख्यमंत्री बने ही अपने पुत्र अखिलेश यादव को भी मुख्यमंत्री बनाया। मुलायम सिंह अक्सर कहते थे कि इटावा अगर दिल है तो आजमगढ़ धड़कन। मुख्यमंत्री रहते हुए आजमगढ़ के विकास के लिए उन्होंने कमिश्नरी बनाने सहित कई महत्वपूर्ण काम किया। यहां के लोगों नें भी उन्हें सिर आंखों पर बैठाया लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ऐसा कौन सा दर्द है जिसने सांसद बनने के बाद उन्हें आजमगढ़ से दूर कर दिया। वैसे यह दर्द भी उन्हें अपनों ने ही दिया था जिसके बारे में हम आज चर्चा करेंगे।
मुलायम सिंह का राजनीतिक सफर
मुलायम सिंह यादव पहली बार 1967 में विधायक चुने गए थे। आपातकाल के दौरान वे 19 महीने तक जेल में रहे। पहली बार वह 1977 में राज्य मंत्री बनाये गए। इसके बाद 1980 लोकदल के अध्यक्ष और 1989 में पहली बार यूपी के सीएम बने। 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद मुलायम सिंह यादव चंद्रशेखर के जनता दल (सोशलिस्ट) से जुड़े और मुख्यमंत्री बने रहे। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया और 1993 में बसपा से गठबंधन कर सरकार बनाई। फिर वे 2003 में मुख्यमंत्री बने। इसके पूर्व मुलायम सिंह 1996 से 1998 तक देश के रक्षामंत्री भी रहे। 2012 में सपा को पूर्ण बहुमत मिला तो उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश को यूपी का सीएम बनाया। 2014 में आजमगढ़ से सांसद चुने गए। इसके बाद 2019 में मैनपुरी से सांसद बने।
आजमगढ़ से था गहरा लगाव
मुलायम सिंह यादव को आजमगढ़ से गहरा लगाव था। वे कहते थे कि अगर इटावा दिल है तो आजमगढ़ धड़कन। आजमगढ़ ने भी कभी उन्हें निराश नहीं किया। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो हमेंशा सपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वर्ष 2007 में बसपा को छह और सपा को मात्र चार सीट मिली थी लेकिन वर्ष 2012 के चुनाव में सपा ने यहां रिकार्ड 9 सीटों पर जीत हासिल की थी। आजमगढ़ को कमिश्नरी बनाने का श्रेय मुलायम सिंह यादव को जाता है। इसके अलावा मुलायम सिंह ने महिला अस्पताल, विकास भवन सहित कई योजनाएं आजमगढ़ को दी।
2014 में लगा था मुलायम के खिलाफ नारा
एक दौर में बाहुबली रमाकांत यादव मुलायम सिंह के सबसे करीबी नेता हुआ करते थे लेकिन रमाकांत वर्ष 2014 का चुनाव बीजेपी के टिकट पर मुलायम सिंह यादव के खिलाफ लड़े। जब मुलायम सिंह यादव नामाकंन के लिए आजमगढ़ पहुंचे तो रमाकांत यादव के समर्थकों ने उनके काफिले के सामने मुलायम सिंह वापस जाओ लाठी लेकर भैस चराओ सहित कई नारे लगाए थे। जिससे मुलायम सिंह भारी आहत हुए थे।
वर्ष 2014 के चुनाव में मुलायम को लगा था झटका
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम आजमगढ़ सदर सीट से मैदान में उतरे थे। उनके खिलाफ भाजपा से रमाकांत यादव और बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली थी। मुलायम को भरोसा था कि उन्हें बड़ी जीत मिलेगी। कारण कि समाजवादी कुनबे के साथ ही प्रदेश के मंत्री और विधायक भी चुनाव में लगा दिए गए थे लेकिन मुलायम सिंह मात्र 63 हजार वोटों से चुनाव जीते। यह मुलामय की सबसे करीबी जीत थी। जबकि इतने ही मतों से लालगंज सीट से बीजेपी की नीलम सरोज भी जीती थी। हार जीत के कम अंतर के लिए मुलायम ने गुटबाजी को जिम्मेदार ठहराया था।
कुनबा न होता तो हार जाता चुनाव
वर्ष 2014 में मुलायम सिंह को आजमगढ़ सीट पर जीत जरूर मिली थी लेकिन वे काफी आहत दिखे थे और उन्होंने पार्टी की मीटिंग में कह दिया था कि यहां के नेताओं ने तो मुझे हरा ही दिया था। इतना बड़ा कुनबा न होता और लोग चुनाव में न लगते तो चुनाव हार जाता। मुलायम का यह बयान खूब चर्चा में रहा था। साथ ही पार्टी की गुटबंदी भी खुलकर सामने आ गयी थी।
फिर जनता के बीच नहीं लौटे मुलायम
वर्ष 2014 में मुलायम आजमगढ़ के सांसद चुने गए थे लेकिन उनके मन में हार जीत के अंतर को लेकर जो पीड़ा थी वह कम नहीं हुई। यही वजह थी कि मुलायम अगले पांच साल तक कभी किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिए और ना ही संसदीय क्षेत्र के लोगों का कभी दुख दर्द जानने की कोशिश की। सांसद रहते मुलायम ने आजमगढ़ की दो यात्रा की। एक बार वे चीनी मिल के शिलान्यास के समय आये फिर उसके लोकापर्ण में।
गुमशुदगी के लगे थे पोस्टर
सांसद रहते मुलायम की आजमगढ़ से दूरी को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया था। भाजपा के लोगों ने मुलायम सिंह का पोस्टर लगाने के साथ ही लालटेन लेकर तलाश की थी। इस मामले में भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गयी थी।
Published on:
22 Nov 2021 01:54 pm
बड़ी खबरें
View Allआजमगढ़
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
