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600 साल पुराने इस बालाजी मंदिर में भगवान के चरण छूने आती है सूरज की पहली किरण, यहां 27 से शुरू होगा मेला, जलेगा टीपूर

प्रसिद्ध श्रीराम बालाजी मेले का 27 से होगा आगाज..., मंदिर में होगी पूजा-अर्चना

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रामपायली के प्रसिद्ध श्रीराम बालाजी मेले का आगाज 27 नवंबर से होगा। इस दिन रात्रि में श्रीराम बालाजी मंदिर में टीपूर जलाया जाएगा। विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाएगी। इसके बाद मेले का शुभारंभ किया जाएगा। इस वर्ष मेले पर आचार संहिता का ग्रहण लगा हुआ है। जिसके चलते यह आयोजन मेला आयोजन समिति के माध्यम से किया जाएगा।

श्रीराम बालाजी मंदिर भगवान श्रीराम के वनगमन की कई ऐतिहासिक धरोहरों और मान्यताओं को समेटे हुए है। यहां प्रभु श्रीराम के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। देश के नक्शे में भी यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी अलग पहचान बना रहा है। जानकारी के अनुसार मंदिर के पास कार्तिक मास की पूर्णिमा में प्रतिवर्ष जनपद स्तर से सात दिनों का भव्य मेला लगता आया है। इस वर्ष 26 नवंबर से मेले की शुरूआत की जानी थी। लेकिन मेला आयोजन में आचार संहिता का ग्रहण लगता नजर आ रहा है। जनपद सीईओ ने नोटिफिकेशन जारी कर आचार संहिता का हवाला देते हुए मेला नहीं लगाए जाने की सूचना दी है। इसके बाद से मेला आयोजन समिति और श्रद्धालुओं में नाराजगी के भाव देखे जा रहे हैं। हालांकि, समिति पदाधिकारी प्रयासरत है कि जनपद स्तर से भले ही कोई सहयोग न मिले लेकिन समिति अपने स्तर से मेला का आयोजन करें। जिसकी शुरुआत 27 नवंबर से की जाएगी।

600 साल पुराना मंदिर

यहां के श्रीराम बालाजी मंदिर का निर्माण करीब 600 वर्ष पूर्व भंडारा जिले के तत्कालीन मराठा भोषले ने नदी किनारे एक किले के रुप में वैज्ञानिक ढंग से कराया था। मंदिर में ऐसे झरोखों का निर्माण है, जिससे सुर्योदय के समय सुरज की पहली किरण भगवान श्रीराम बालाजी के चरणों में पड़ती है। भारत के प्राचीन इतिहास में इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। यहां के लोगों का मानना है कि मंदिर इतना सिद्ध स्थल है कि स्वयं भगवान सूर्यदेव भी उदय होने पर सबसे पहले प्रभु श्रीराम के चरण स्पर्श करते हैं।

मूर्तियों में प्रत्यक्ष दर्शन

श्रीराम मंदिर में प्रमुख सिद्ध मूर्ती बालाजी एवं सीताजी की है। भगवान राम की मूर्ति वनवासी रुप में है। सिर पर जूट और वामांग में सीता का भयभीत संकुचित स्वरूप है। राम भगवान का बाया हाथ विराट राक्षक को देखकर भयभीत सीता के सिर पर उन्हें अभय देते हुए हैं, जो भक्तों कों भगवान राम और सीता के प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं।

स्वप्न में दिखी मूर्ति

स्थानीय बुजुर्गो के अनुसार भगवान राम की वनवासी वेशभूषा वाली यह प्रतिमा करीब चार सौ वर्ष पूर्व चंदन नदी के ढोह से किसी व्यक्ति को स्वप्न में दिखाई देने से प्राप्त हुई थी। मूर्ति को निकालकर नदी की टेकरी पर नीम के वृक्ष के नीचे टिका दिया गया और राजा भोषले ने मंदिर का जीर्णोद्वार कर मूर्ति की स्थापना की। सन 1877 में तत्कालीन तहसीलदार स्व. शिवराज सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोद्वार कराया। यह भूमि दशरु पटेल से गांव खरीदकर रामचंद्र स्वामी देवास्थान ट्रस्ट की स्थापना की गई।

लगंडे हनुमान जी

पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्व मुखी लंगड़े हनुमान जी की मूर्ति का एक पांव जमींन और दूसरा पांव जमींन के अंदर होने से स्पष्ट दिखाई नहीं देता है। वर्षो पूर्व एक समिति ने हनुमान जी की मूर्ति हटाकर मंदिर में स्थापित करने की कोशिश की थी। तब करीब पचास फिट से अधिक का गड्ढा खोदा गया, लेकिन पांव का दूसरो छोर नहीं मिल सका। तब हनुमान जी ने स्वप्न में आकर बताया कि मूर्ति नदी किनारे ही रहने दो यदि मंदिर ही बनवाना है तो मूर्ति के पास बनवाओं। मान्यता है कि हनुमान जी का एक पांव पातल लोक तक गया है। यहां पहुंचने वाले भक्त इन मूर्तियों की कहानियां सुनकर भक्ति भाव से ओत प्रोत हो जाते हैं।

स्वयं प्रगट शिवलिंग

इसी प्रकार लोगों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली शिवलिंग के दर्शन करने भी दूर-दूर से श्रृद्धालु पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग स्वयं प्रगट हुई है। हजारों वर्ष पूर्व एक बुढिय़ा के आंगन में रेत की शिवलिंग बनती थी। लेकिन बुढिय़ा उसे कचरा समझकर झाड़ दिया करती थी। कई बार झाडऩे के बाद भी शिवलिंग नहीं हटी और स्थापित हो गई।

इनका कहना है

* रामपायली मेला जिले के साथ ही अन्य राज्यों के श्रद्धालुओं की भावनाओं से जुड़ा है। हालाकि आचार संहिता को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है। मेला समिति बिना जनपद के सहयोग लिए मेला आयोजन को लेकर रूपरेखा तैयार क रही है।

- लोकेश तिवारी, मेला आयोजन समिति सदस्य

* आचार संहिता का हर हाल में पालन करना जरूरी है। इस कारण इस बार जनपद स्तर से मेला आयोजन की मंजूरी नहीं दी जा सकती है।

- डॉ. गिरीश मिश्रा, कलेक्टर

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