
बालोद . छत्तीसगढ़ सामाजिक, सांस्कृतिक परंपराओं से भरा हुआ है। कुछ किलोमीटर में एक से दूसरे ब्लॉक तक पहुंचते तक भाषा और बोली बदल जाती है। लोग वहीं का रहन-सहन और माहौल के अनुसार परंपरा और संस्कृति को सहेजे हुए हैं। पर आज के डिजिटल युग में इन स्थितियों में कमी आने लगी है। लोग अपनी ही संस्कृति और परंपराओं की उपेक्षा करने लगे हैं। पर प्रदेश में आज भी ऐसे बुजुर्ग कलाकार हैं जो अपनी संस्कृति, अपनी कला और परंपरा को सहेजने में पीछे नहीं हटे हैं।
संस्कृति को बचाए रखने कर रहे हैं संघर्ष
दिखावे के समय में लोग कुछ भी कहें पर जमीन से जुड़े हमारे बुजुर्ग कलाकार संस्कृति को बचाए रखने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। कोई साथ दे, या न दे पर हर परिस्थितियों में दशकों से वे अपनी धुन में पारंपरिक गीत, नृत्य और वाद्ययंत्रों से छाप छोड़ रहे हैं। पर उनके बाद क्या की स्थिति बन रही है, कहा जाए ये विधा विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुका है। मामले में शासन-प्रसाशन के पास भी अब तक कोई योजना नहीं है, जिसके आधार पर नए कलाकार विधा सीखने सामने आए।
प्रदेश में इस विधा को संजोए रखने रामाधार दे रहे संदेश
ऐसा ही प्रदेश में एक ही अकेले कलाकार हैं जो चंदैनी गोंदा को अपने जीवनकाल तक संजोए रखने का संकल्प लिए हुए मंचों पर अपनी प्रस्तुति दे रहे हैं, पर उनके बाद इस विधा को कौन संभालेगा, इस सवाल पर रामाधार साहू मौन हो जाते हैं, क्योंकि विधा को सीखने, संजोने के लिए तीन दशक बाद भी कोई सामने नहीं आया है।
मेरे बाद कौन? मुझे अंदर से कचोट रही है : रामाधार
माना जा सकता है कि प्रदेश की पारंपरिक लोक विधा चंदैनी गोंदा पर संकट की स्थिति निर्मित हो गई है क्योंकि इसकी प्रस्तुति देने वाले प्रदेश का एक अकेला कलाकार रामाधार साहू अब उम्र के अंतिम पड़ाव में हैं। रामधार के अलावा प्रदेश में और कोई लोक विधा चंदैनी की प्रस्तुति नहीं देता। इन स्थितियों से रामाधार ने चिंता जताई है कि छत्तीसगढ़ की पारंपरिक लोक विधा चंदैनी की प्रस्तुति देने वाला और कोई कलाकार आज तक सामने नहीं आया है, ऐसे में अब मेरे मौत के बाद इसे कौन संभालेगा यह चिंता कचोट रही है। यह बातें प्रदेश के लोक विधा चंदैनी गोंदा के प्रसिद्ध व इकलौते कलाकार रामधार साहू ने पत्रिका से चर्चा में कही।
देशभर में पहुंचाई छत्तीसगढ़ की विधा चंदैनी
कलाकार 58 वर्षीय रामाधार साल जो जिले के ग्राम कचांदुर के रहने वाले है।इस कलाकार ने प्रदेश की लोक विधा चंदैनी की प्रस्तुति भारत देश के लगभग हर जिले में प्रस्तुति दे चुके हैं, जिसमें से प्रमुख दिल्ली, कोलकाता, मद्रास, कुल्लू मनाली, राजस्थान, ओडीसा, मुंबई सहित और भी राज्यों व स्थानों में सैकड़ों मंच पर प्रस्तुति देकर प्रदेश की लोक विधा को जन-जन तक पहुंचाने का प्रायस किया। विधा में योगदान के लिए प्रदेश सरकार सहित विभिन्न संस्थाओं ने इन्हें सम्मानित किए हैं। मामले में लोगों ने कहा है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति व परंपरा को बचाने के लिए शासन-प्रशासन भी किसी योजना के तहत काम करे, तो नई युवा पीढ़ी इस विधा को सीखने के लिए सामने आएंगे।
लोरी और चंदा की प्रेम कथा है चंदैनी गोंदा
कलाकार रामाधार साहू ने बताया कि चंदैनी गोंदा विधा लोरी व चंदा की एक प्रेम कथा है, जिनकी प्रस्तुति गीत, नृत्य और प्रहसन से मंच पर पेश किया जाता है। इसमें पूरी तरह लोरी और चंदा की प्रेम कथा को प्रस्तुत की जाती है। यह कहानी छत्तीसगढ़ के आरंग के पास ग्राम खौरी में सदियों पुराने लोरी-चंदा की प्रेम कथा है। इतिहास के अनुसार इसमें लोरी राउत जाति का था और चंदा महारानी थी। लोरी की बांसुरी की आवाज सुनकर चंदा मोहित हो जाती है। उसके बाद दोनों के बीच प्रेम की कहानी शुरू हो जाती है। बताया जाता है कि उसके बाद घरवाले चंदा का बाल विवाह करने वाले थे। रामधार साहू ने बताया वह इस प्रेम कथा की प्रस्तुति से लोगों को बाल विवाह न करने जागरूक करते हैं।
आठवीं की पढ़ाई के दौरान 1980 से मंच पर
रामधार साहू ने बताया वे बचपन में गरीबी के कारण ज्यादा पढ़ नहीं पाए और केवल कक्षा आठवीं के बाद से पढ़ाई छोड़ दी और कला के क्षेत्र में आ गए। उन्होंने बताया 1980 से चंदैनी की प्रस्तुति दे रहे हैं, उस समय वे 20 साल के थे। वह अब तक तीन हजार मंचों में अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं, पर इतने सालों में और कोई चंदैनी गोंदा की कला सीखन रूचि नहीं दिखाई। इसी बात से चिंतित हंै कि उनके जाने के बाद कौन इस प्रेम कथा को जीवित रखेगा?
युवाओं से अपील संस्कृति व परंपरा को न भूलें
रामाधार ने आज की युवा पीढ़ी की स्थितियों पर चिंता जताई है। कहा वर्तमान परिवेश ने युवाओं को भटका रहा है। आज की स्थिति में युवा वर्ग तेजी से फूहड़ता की ओर बढ़ रहा है। वे अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। उन्होंने कहा सिनेमाई चटक रंगों व फैशन में इतना न भटकें कि कोई अपनी संस्कृति को भूल जाएं। युवा अपनी लुप्त होती संस्कृति को सहेजें, इससे अपने में संस्कार जगेगा, धैर्य की बढ़ोतरी होगी।
Updated on:
29 Jan 2018 11:22 am
Published on:
29 Jan 2018 07:30 am
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