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जिस तादुंला नदी का पानी पी रहे हैं उसकी धारा कहां से फूटी किसी को नहीं मालूम, पढि़ए पूरी खबर

जब से तांदुला बांध बना है तब से लेकर आज तक के इतिहास को देखें, तो इसकी मुख्य नदी से जल की धारा आखिर कहां है कोई नहीं जान सका है।

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नीरज उपाध्याय बालोद. नगर के 99 प्रतिशत लोग यही सोचते हैं, पर हम आपको जो बात बताएंगे वह घोर आश्चर्य की बात होगी। जब से तांदुला बांध बना है तब से लेकर आज तक के इतिहास को देखें, तो इसकी मुख्य नदी से जल की धारा आखिर कहां है कोई नहीं जान सका है। कुछ जानकार व इतिहासकारों को छोड़ दें, इस ओर पहल भी नहीं की है। इसकी धारा के विलुप्त होने का बड़़ा कारण केवल और केवल संबंधित विभाग की अनदेखी है। पत्रिका की टीम ने मामले की तह तक जाने के लिए तीन दिनों तक जांच-पड़ताल की। इतिहासकारों के साथ तांदुला जलाशय के तीन भाग की ओर और नदी के मुहाने तक की खाक छानी तब नदी के धार के विलुप्त होने का कारण पता चला।इसलिए तांदुला है जीवन रेखा

सहायक नदी होने के साथ दुर्ग-भिलाई, बेमेतरा जिले के लिए जीवन रेखा

नदी की लंबाई जिले में ५० किलोमीटर है। इसी नदी के पानी को बालोद जिले में तटबंध बनाकर संग्रह किया जाता है। बांध में संग्रह पानी को केनाल के माध्यम से डायवर्ट कर भिलाई इस्पात संयत्र में सप्लाई की जाती है। नदी से १३० गांव जुड़े हुए हैं। यह नदी उन गावों के लिए निस्तारी और सिंचाई के लिए सबसे बड़ा स्रोत है। शिवनाथ की सहायक नदी होने के साथ दुर्ग-भिलाई, जामुल, अहिवारा,धमधा, बेमेतरा जिले के लिए भी जीवन रेखा है।बालोद, बेमेतरा, और दुर्ग जिले के १२६० तालाबों को गर्मी में निस्तारी के लिए केनाल के माध्यम से भरा जाता है।

जानबूझकर विभाग मूंदे बैठा है आंख
जलाशय और तांदुला नदी का गहरा संबंध है। जिन नदियों के संगम में जलाशय बनाया गया है। उस नदी की धार आज भी आगे की ओर बहती रहती है, पर उसकी धार काफी पतली हो चुकी है, उसी धार की वजह से कम ही सही, पर तांदुला नदी में पानी रहता है। आज वह धार भी विलुप्ती की ओर है। इसका एक ही कारण कि उस धार को संरक्षित करने की ओर १०० साल बाद भी किसी ने प्रयास नहीं किया। शासन-प्रशासन हो या संबंधित जल संसाधन विभाग या तो मामले को नहीं जानता और जानता भी है तो जानबूझकर इसके जिम्मेदार अनदेखी कर रहे हैं।इससे नदी की स्थिति दयनीय होती जा रही है।

...ऐसे में पनपेंगे ही ऐसी परेशानी
जानकारों का कहना है नदी की मुख्य धार में कमी आने से नदी में जल का प्रवाह कम हो गया है। इस वजह से रूके हुए या कम पानी में ऐसे ही जल कुंभी या जल से संबंधित कई तरह के पौधे उग आते हैं। नदी की तली में गाद भी जमती जाती है। और यही तांदुला नदी के साथ हुआ है।

बिना रिकॉर्ड सैकड़ों एकड़ में खेत बना कर लिए कब्जे
आप जान लें कि तीन जिले को सहारा देने वाला तांदुला दो नदियों की धार संगम में जलाशय के पास तांदुला एवं जलाशय के मुहाने में बेजा कब्जा के कारण सूखा नाला नदी का अस्तित्व विलुप्त होने के कगार पर है, वहीं दूसरी ओर तांदुला नदी पर जलाशय बनने के बाद नदी के मुख्य मार्ग में सैकड़ों एकड़ भूमि में अवैध तरीके से लोग खेत बनाकर धान की खेती करने लगे हैं। इस कारण से जल मार्ग पूरी तरह अवरुद्ध हो गया है। जल मार्ग अवरुद्ध होने से नदी में जलकुंभी व गंदगी फैल रही है। विभागीय निष्क्रियता से नदी के भीतरी भाग में अतिक्रमण पनपने लगा है।

पानी सहेजने के तरीके अंग्रेजों से सीखें हम
इतिहासकार अरमान अश्क और रमेश कुमार शर्मा से मिली जानकारी के अनुसार तांदुला का मुख्य जल स्रोत दो नदियां क्रमश: सूखा नाला नदी व तांदुला नदी दक्षिण से उत्तर की ओर आगे बहती हुई दुर्ग जिले के शिवनाथ में मिलती है। इन्हीं दोनों नदियों को ब्रिटिश हुकूमत ने बालोद से ५ किलोमीटर की दूरी पर दो जलाशय के रूप में परिवर्तित किया था, दोनों ही नदी में पृथक-पृथक बण्ड बनाए गए हैं तथा दोनों जलाशय के बीच एक नहर बनाकर समान रूप से जल भरने का काम किया गया। दोनों ही नदी के मुख्य जलमार्ग सहित कृत्रिम नदी की भूमि में लोगों ने खेत बना लिए हैं जिससे पानी का बहाव बाधित होने लगा है और नदी के 'हाथीदाहरा 'तथा 'घोड़ादहराÓ जो कभी अथाह गहरा था अब यहां पानी की मात्रा बहुत कम हो गई है जिससे दोनों नदियों के संगम स्थल से ही नदी में जलकुंभी व गंदगी पनपने लगी है। नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है।

ऐसे में मैं नहीं दे पाउंगी साथ

आपको जानकारी दे दूं कि दो मुख्य नदियों के साथ एक कृत्रिम नदी का संगम स्थल घोड़ादाहरा से मैं तांदुला दक्षिण की ओर आगे बढ़ती हूं। जिस जगह पर संगम है उसी जगह पर वर्तमान में पानी शीशे की तरह साफ है। उसके बाद तीन किलोमीटर की स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है। जल कुंभी और गाद ने मेरी सांसों को रोक रहा है। ऐसे में ज्यादा समय तक साथ नहीं दे पाउंगी।