31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Tija Pora Tihar 2025: छत्तीसगढ़ में आज पोरा तिहार, रंग-बिरंगे मिट्टी के बैलों से सजा बाजार

Tija Pora Tihar 2025: पोला उत्सव मनाने के लिए ग्राम कोरदा के युवाओं के द्वारा एक सप्ताह पहले से ही तैयारी की जा रही है। इस उत्सव मेले में ग्राम कोरदा समेत आसपास गांव के लोग व बड़ी संया में महिलाएं जुटतीं हैं।

2 min read
Google source verification
Tija Pora Tihar 2025: छत्तीसगढ़ में आज पोरा तिहार, रंग-बिरंगे मिट्टी के बैलों से सजा बाजार

रंग-बिरंगे मिट्टी के बैलों से सजा बाजार (Photo Patrika)

Tija Pora Tihar 2025: छत्तीसगढ़ इतिहास के मामले में एक ऐसा गांव जो बलौदाबाजार जिला के लवन तहसील के अंतर्गत ग्राम कोरदा में 128 वर्षों से पोला पर्व महोत्सव मनाने का अनोखी परपरा है, जो आज भी कायम है। पोला उत्सव मनाने के लिए ग्राम कोरदा के युवाओं के द्वारा एक सप्ताह पहले से ही तैयारी की जा रही है। इस उत्सव मेले में ग्राम कोरदा समेत आसपास गांव के लोग व बड़ी संया में महिलाएं जुटतीं हैं। क्योंकि यहां रुपए-पैसे से कुछ नहीं मिलता, केवल रोटी के बदले कागज या मिट्टी से बने खिलौना ही मिलता है।

इसलिए यह परंपरा बलौदाबाजार जिले में प्रसिद्ध है। जिसमें शामिल होने के लिए आसपास क्षेत्र से जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं। पोला पर्व के दिन दोपहर 2 बजे से चलने वाली पोला पर्व शाम 7 बजे तक चलती रहती है। इस एक दिवसीय पोला मेला में लगी खिलौने के दुकानों से सिर्फ महिलाएं पकवान से खिलौने खरीदते हैं। पोला के दिन कोरदा गांव की महिलाएं और लडकियां अपने घर छोड़कर तालाब पार में अपनी बनाई हुई 6 फीट लबा चौडा घर घुंदिया में पुडी, बडा, भजिया, ठेठरी, खुरमी पकवान लेकर बैठी रहती हैं। जैसे ही बाजार सज जाता है फिर पकवान से महिलाएं खिलौना लेने के लिए निकलती हैं और रोटी के हिसाब से खिलौने को खरीदती हैं।

नवापारा-राजिम. छत्तीसगढ़ की परंपरा और संस्कृति का प्रतीक पोरा पर्व इस बार भी पूरे उत्साह और उल्लास से मनाया जा रहा है। नगर के कुहारपारा, बड़े बाजार और सुभाषचंद्र बोस चौक में रंग-बिरंगे मिट्टी के बैल और चुकिया-पोरा खरीदने के लिए खरीदारों की भीड़ उमड़ पड़ी। महिलाएं, बच्चियां और बुजुर्ग सबकी भागीदारी ने बाजार की रौनक बढ़ा दी।

त्योहार की तैयारी में जहां दुकानदार दिनभर व्यस्त रहे, वहीं खरीदार भी अपनी पसंद के चुकिया-पोरा और मिट्टी के बैल चुनते नजर आए। खासकर बालिकाएं उत्साह से अपनी पसंद के खिलौने व पूजन सामग्री खरीदती रहीं। यह पर्व कृषि, पशुपालन और गृहस्थ जीवन के महत्व को रेखांकित करता है।

पोरा के माध्यम से बच्चे और खासकर बालिकाएं गृहस्थी की शिक्षा प्राप्त करती हैं। वहीं बैलों के प्रति समान और पशु प्रेम की परंपरा भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ रही है ।

दाम बढ़े, मांग भी बढ़ी

इस बार मिट्टी के बैलों की जोड़ी 100, 250 से 300 रुपए तक बिकी, वहीं चुकिया-पोरा 100 रुपये में उपलब्ध रहा। कुहारपारा में लकड़ी का बैल 70 रुपए प्रति नग बिका। मूर्तिकार टीकम चक्रधारी ने बताया कि मिट्टी और रंग के दामों में बढ़ोतरी से कीमतें बढ़ी हैं, लेकिन खरीदारों का उत्साह कम नहीं हुआ। इस बार बड़े़ आकार के बैलों की विशेष मांग रही।