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बांध की तरह है चातुर्मास

प्रवचन मंडप का उद्घाटन

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बांध की तरह है चातुर्मास

बेंगलूरु. सीमंधर शांति सूरी जैन ट्रस्ट वीवीपुरम के तत्वावधान में आचार्य चंद्रभूषण सूरी की निश्रा में प्रवचन मंडप का उद्घाटन सोनेगरा परिवार ने किया। आचार्य ने कहा कि साधु साध्वी नदी की तरह बहते हैं। नदी का फायदा लेने के लिए बांध बांधा जाता है।

उस तरह चातुर्मास भी एक बांध की तरह है। नदी से खेतों का सींचन होता है साधु साध्वी हृदय भूमियों में जिनवाणी द्वारा धर्म सींचन करते हैं। ट्रस्ट मंडल द्वारा सरस्वती देवी झुम्मरलाल समदडिया परिवार, दिनेश कुमार सुशील कुमार सोनेगरा परिवार का बहुमान किया गया। सुमतिनाथ जैन संघ मैसूरु के अध्यक्ष अशोक दांतेवाडिय़ा, ट्रस्टी हंसराज पगारिया, विमलचंद नगराज, मंगलचंद, मांगीलाल, डाहयालाल, हीराचंद कांटाणी आदि ने आचार्य के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।


पारसमणि के समान है जैन विद्या: मधुस्मिता
बेंगलूरु. विजयनगर स्थित अर्हम भवन में साध्वी मधुस्मिता के सान्निध्य में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा एवं समण संस्कृति संकाय द्वारा जैन विद्या सप्ताह का शुभारंभ हुआ। प्रारंभ में बहनों ने मंगलाचरण किया। मनीषा घोषल एवं छत्तर मालू ने संकाय से जुड़कर होने वाले अपने विकास के भावों को अभिव्यक्ति दी। साध्वी मधुस्मिता ने कहा कि जैन विद्या पारसमणि के समान है, जिसका स्पर्श पाकर लोहे की तलवार जैसी तीक्ष्ण धारदार आत्मा सोने जैसी नरम, सरल और शुद्धात्मा बन जाती है। साध्वी ने श्रावकों में से 51 उपासक तैयार रहने का आह्वान किया। सभाध्यक्ष बंसीलाल पितलिया, मंत्री कमल तातेड़, पूर्वाध्यक्ष धनराज टांटिया, केंद्र व्यावस्थापिका बरखा पुगलिया आदि उपस्थित थे। संचालन सह व्यावस्थापिका ममता मांडोत ने किया।

पाप को नष्ट करती है शुभ योग वाली साधना
बेंगलूरु. विजयनगर स्थानक में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि जैन धर्म विवेक प्रधान धर्म है। यहां धर्म के व्याख्याकार प्रत्ेक साधना को, चाहे वह लघु हो, चाहे महान, चाहे छोटी हो, चाहे बड़ी, उन्हें वे विवेक की कसौटी पर कसकर देखते हैं। उन्होंने कहा कि जिस साधना में विवेक है, वह सम्यक साधना है। शुभ योग वाली साधना है और अविवेक अशुभ योग वाली साधना है।

शुभ योग वाली साधना पाप को नष्ट करती है। वहां अशुभ योग वाली साधना पाप को बढ़ाती है। जन्म मरण के कुचक्र में फंसाती है। साध्वी ने कहा कि कार्य चाहे कोई भी हो पर यतनापूर्वक करने से पाप कार्य का बंध नहीं होता। साध्वी ऋजुता ने कहा कि व्यक्ति को सत्संग में आना चाहिए। सत्संग वह ज्ञान गंगा है, जिसमें डुबकी लगाकर वह व्यक्ति ज्ञानवान बन जाता है। सत्संग में आने से व्यक्ति के आचार विचार शुद्ध होते हैं।