
बांसवाड़ा. बांसवाड़ा जिले के नामकरण में बांस विशेष महत्व रखता है। यहां की जलवायु भी बांस के लिए अनुकूल है। बांस कई मायने में अहम है। उसकी पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका है और आमदनी का बड़ा जरिया भी है। फिर प्लास्टिक का मोह क्यों रखें। इसी को जेहन में उतारकर आमजनता को जागरूक करने के मकसद से बांसवाड़ा शहर के समाजसेवी व साहित्यकार भागवत कुंदन ने अपने घर मेंं बांस की ‘बस्ती’ बसा ली है। इसमें करीब 200 छोटे-छोटे बांस निर्मित वस्तुओं के नमूने रखे हुए हैं। ताकि जो भी देखे उसके मोहपाश में आए और पर्यावरण संरक्षण की राह पर चल पड़े।
भागवत ने अपनी ‘बस्ती’ में सोफे, टोकरी, कुर्सियां, स्टूल सहित अन्य वस्तुएं प्रदर्शित की हैं। साक्षरता, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण की दिशा में अर्से से काम कर रहे भागवत का बांस की सामग्रियों के उपयोग पर जोर देने के पीछे खास मकसद प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति दिलाना है। साथ ही उनका मत है कि बांस के उत्पाद से होने वाली आय से गरीबों की आजीविका सुचारू चल सकती है। इसके अलावा भागवत ने वनस्पति तेल पर भी शोध कार्य किया है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण है।
ये भी जानना होगा
रियासत काल में बांसवाड़ा के वन बांस से आच्छादित थे। बांस काटना वर्जित था। आजादी के बाद 1968 तक बांस का विदोहन ठेके प्रथा पर था, ऐसे में अधिकाधिक उपज लेने में दिलचस्पी ज्यादा रही। वर्ष 1972-73 में वन विभाग ने बांस के विदोहन का कार्य हाथ में लिया, लेकिन कार्य लालफीताशाही से आगे नहीं बढ़ा। धीरे-धीरे बांस के जंगल कम होते गए। इसके साथ बांस की मात्रा भी कम होती गई।
भू-स्वामी बांस जरूर लगाएं
भागवत कुंदन कहते हैं कि आम व्यक्ति की समझ में बांस एक लकड़ी है, लेकिन मेरा मानना है कि वैज्ञानिक भाषा में ये दुनिया की सबसे बड़ी घास है। बांस से जितनी वस्तुओं का निर्माण होता है उतना अन्य से नहीं होता हैं। ऐसे में भू स्वामी को इसका महत्व समझना होगा एवं बांस जरूर लगाने चाहिए। बांस से बहुमूल्य दवाई भी निकलती है। इसका अधिक से अधिक संदेश देने के लिए ही मैं अपने स्तर पर काम कर रहा हूं।
Published on:
30 Dec 2017 12:29 pm
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