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अगर सक्रिय होंगी शाला प्रबंध समितियां तो ही सुधरेंगे सरकारी स्कूलों के हालात

राज्य के करीब 65 हजार सरकारी स्कूलों में से ज्यादातर में अभिभावकों के प्रतिनिधि वाली शाला प्रबंध समिति एवं शाला प्रबंध एवं विकास समितियां महज रस्म अदायगी के रूप में ही संचालित हो रही हैं।

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बारां

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Mukesh Gaur

Aug 11, 2025

राज्य के करीब 65 हजार सरकारी स्कूलों में से ज्यादातर में अभिभावकों के प्रतिनिधि वाली शाला प्रबंध समिति एवं शाला प्रबंध एवं विकास समितियां महज रस्म अदायगी के रूप में ही संचालित हो रही हैं।

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अभिभावक समझें जिम्मेदारी : विद्यालयों के मूल्यांकन में कारगर साबित हो सकता है मैन्युअल

बारां. प्रदेश के सरकारी स्कूलों में जर्जर भवन, लचर शिक्षण व्यवस्था और आधारभूत सुविधाओं की कमी के लिए न केवल सरकारी तंत्र ही जिम्मेदार नहीं है, वरन अभिभावकों की अनदेखी भी बड़ी वजह है। राज्य के करीब 65 हजार सरकारी स्कूलों में से ज्यादातर में अभिभावकों के प्रतिनिधि वाली शाला प्रबंध समिति एवं शाला प्रबंध एवं विकास समितियां महज रस्म अदायगी के रूप में ही संचालित हो रही हैं। जहां ये समितियां सक्रिय हैं, वहां की तस्वीर कुछ अलग है। जानकारों का मानना है कि शाला प्रबंध समितियों की बैठकें नियमित हो और अभिभावक सक्रिय भूमिका निभाएं तो विद्यालयों के हालात सुधर सकते हैं।

54 सवालों से स्कूलों का पूरा चैकअप

प्राप्त जानकारी के अनुसार उदयपुर के महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मानव विकास एवं परिवार अध्ययन विभाग की ओर से पैरेंङ्क्षटग मैनुअल विकसित किया गया है। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. गायत्री तिवारी के निर्देशन में डॉ. स्नेेहा जैन व डॉ. ऊषादेवी की ओर से तैयार मैनुअल ऑफ पैरेंटल सेटिस्फेक्शन टूवार्डस प्री स्कूल एजुकेशन को भारतीय मनोविज्ञान संस्थान, आगरा की ओर से मान्यता दी गई है। जिसमें विद्यालय की लोकेशन, आधारभूत सुविधाएं, शिक्षक व शिक्षण विधियां व अभिभावकों की भागीदारी के आधार पर 54 सवालों के माध्यम से स्कूल की व्यवस्थाओं को परखा जा सकता है। इसके अनुसार शाला प्रबंध समितियों के सक्रिय होने पर स्कूलों के हालात सुधर सकते हैं।

नवाचार की अनूठी मिसाल पेश की

शिक्षक संघ रेस्टा के प्रदेश उपाध्यक्ष गजराज ङ्क्षसह ने बताया कि समय-समय पर पुनर्गठन, प्रशिक्षण व पुरस्कार योजना से शाला प्रबंध समितियों को मजबूत बनाया जाना चाहिए। स्कूल विकास में योगदान देने वाले भामाशाहों को भी उसका हिस्सा बनाना चाहिए। बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख अभिभावकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। पिपलोदी दुखान्तिका के बाद राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गाडरवाडा के स्टाफ ने कक्षा कक्ष के लिए 5 लाख रुपए जुटाए। उन्होंने बताया कि गाडरवाड़ा नूरजी गांव के ग्रामीणों ने पिपलोदी हादसे से सबक लेते हुए शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार की अनूठी मिसाल पेश की है। उन्होंने चलो विद्यालय बनाए अभियान के तहत कक्षा कक्ष निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभाई। राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गाडरवाडा नूरजी में लंबे समय से कक्षा कक्षों की कमी थी। जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने तत्काल विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक बुलाई और स्टाफ, अभिभावकों तथा भामाशाहों ने मिलकर तीन कक्षा कक्षों के निर्माण के लिए 5 लाख की राशि एकत्र की। यह पहल शिक्षा के प्रति ग्रामीणों की जागरूकता और एकता को दर्शाती है। विद्यालय स्टाफ और ग्रामीणों ने कहा कि अब इंतजार नहीं, समाधान खुद के स्तर पर निकालना जरूरी है ताकि बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो।

स्कूलों में संचालित शाला विकास व प्रबंधन समितिया यदि सक्रिय रुप से कार्य करते हुए ध्यान दे तो कई समस्याओं का निपटारा होने के साथ ही शाला विकास को भी नई दिशा मिल सकती है। स्कूलों में सामुहिक प्रयासो से ही बेहतर स्थितियां विकसित की जा सकती है।

गेंदालाल रेगर, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी, बारां


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