आजादी की पहली लड़ाई में 1857 में बरेली समेत पूरा रुहेलखंड क्रांति की आग में सुलग गया था। नवाब खान बहादुर खान के साथ पं. शोभाराम समेत अन्य क्रांतिकारियों ने ब्रितानिया हुकुमत की नींव हिला दी थी और बरेली को कुछ समय के लिए आजादी दिला दी थी। करीब 10 माह पांच दिन तक बरेली अंग्रेजी हुकुमत से मुक्त रहा। लेकिन अंग्रेजों ने एक बार फिर 6 मई 1858 को शहर में प्रवेश करने के साथ ही क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया था।
गिरफ्तार किए गए क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया जिसके बाद 24 फरवरी 1860 को खान बहादुर खान को पुरानी कोतवाली में फांसी दी गई जबकि 257 क्रांतिकारियों को इस बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था। क्रांति की अमिट छाप इस बरगद की हर शाख और पत्ते पर उकर आई थी। आज वह पेड़ तो नहीं रहा लेकिन उसकी जड़ों में खड़ा शहीद स्तंभ उस क्रांति की याद दिलाता है।