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अखिलेश यादव के समर्थन में उतरे बरेलवी उलमा, बोले- धर्म की आड़ में पैसा लेने वाले मौलवी और कथावाचक से बनाएं दूरी

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के कथावाचकों को लेकर दिए गए बयान का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव की बात सच्चाई से परे नहीं है।

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बरेली। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के कथावाचकों को लेकर दिए गए बयान का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव की बात सच्चाई से परे नहीं है।

रजवी ने कहा कि आमतौर पर वह अखिलेश यादव के बयानों से सहमत नहीं होते, लेकिन इस बार उन्होंने जो कहा है, वह बिल्कुल सच है। उन्होंने कहा कि आज कथावाचक, जलसा पढ़ने वाले मौलवी और शायर धर्म को व्यापार बना चुके हैं। ये बिना फीस के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाते।

पहले तय होती है फीस, फिर मिलती है तारीख

मौलाना रजवी ने कहा कि चाहे हिंदू कथावाचक हों, मुस्लिम मौलाना हों या फिर शायर ये सभी पहले फीस तय करते हैं, फिर कार्यक्रम की तारीख दी जाती है। इनके पास निजी सुरक्षा गार्ड होते हैं, जो पहले इनकी शर्तें तय करते हैं। धर्म के नाम पर यह सब कुछ धंधा बन चुका है। उन्होंने कहा कि 95 फीसदी लोग धर्म का लिबास ओढ़े हुए सिर्फ कमाई में लगे हैं। इनका मकसद समाज को दिशा देना नहीं, बल्कि पैसे कमाना है। समाज को ऐसे लोगों से सतर्क रहना चाहिए।

पांच फीसदी लोग कर रहे हैं सच्ची सेवा

मौलाना रजवी ने कहा कि समाज में अब भी 5 फीसदी ऐसे लोग हैं जो बिना किसी शुल्क के धार्मिक कार्यक्रमों में शरीक होते हैं। ऐसे लोगों को मंच दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “अच्छे और नि:स्वार्थ भाव से काम करने वाले लोगों को बुलाइए, ताकि धर्म का नाम लेकर चल रहे इस धंधे पर रोक लगे। उन्होंने तीखा हमला करते हुए कहा कि ये लोग केवल धर्म के नाम पर दिखावा करते हैं। इनके दावे खोखले हैं और ये समाज को गुमराह कर रहे हैं। इनके लिबास और चेहरे पर धर्म का लेबल है, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।

अखिलेश ने क्या कहा था?

दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इटावा में कथावाचकों के एक कार्यक्रम में कथित अव्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा था कि धीरेंद्र शास्त्री जैसे कथावाचक 50 लाख रुपये फीस लेते हैं। आम आदमी की इतनी औकात नहीं कि वह उन्हें घर पर कथा के लिए बुला सके।


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