अपनी बहादुरी के चलते कई मैडल प्राप्त किए थे
बदायूं जिले की बिसौली तहसील के रहने वाले हरिओम पाल सिंह की पत्नी गुड्डी देवी बताती हैं कि हरिओम को मैदानी इलाके अच्छे नहीं लगते थे। वह 9 पैरा स्पेशल फोर्सेज के जवान थे। हरिओम पाल सिंह कहते थे कि मैदान में आकर मैं मोटा हो जाता हूं और एक जवान को मोटा नहीं होना चाहिए। इसलिए उन्होंने पहाड़ों पर और शियाचिन जैसे जबरदस्त बर्फीले इलाके में सरहदों की हिफाजत करते हुए अपनी ज्यादातर ड्यूटी पूरी की। हरिओम पाल सिंह 19 दिसम्बर 1986 को फौज में भर्ती हुए थे। हरिओम पाल सिंह एक शानदार फौजी थे। उन्होंने तीन युद्ध लड़े आॅपरेशन रक्षक, आॅपरेशन मेघदूत और अपने अंतिम युद्ध आॅपरेशन विजय। 01 जुलाई 1999 में आॅपरेशन विजय के दौरान वे शहीद हो गए। ड्यूटी के दौरान उन्हें कई मैडल मिले थे, लेकिन स्पेशल सर्विस मैडल उन्हें मरणोपरांत मिला।
बदायूं जिले की बिसौली तहसील के रहने वाले हरिओम पाल सिंह की पत्नी गुड्डी देवी बताती हैं कि हरिओम को मैदानी इलाके अच्छे नहीं लगते थे। वह 9 पैरा स्पेशल फोर्सेज के जवान थे। हरिओम पाल सिंह कहते थे कि मैदान में आकर मैं मोटा हो जाता हूं और एक जवान को मोटा नहीं होना चाहिए। इसलिए उन्होंने पहाड़ों पर और शियाचिन जैसे जबरदस्त बर्फीले इलाके में सरहदों की हिफाजत करते हुए अपनी ज्यादातर ड्यूटी पूरी की। हरिओम पाल सिंह 19 दिसम्बर 1986 को फौज में भर्ती हुए थे। हरिओम पाल सिंह एक शानदार फौजी थे। उन्होंने तीन युद्ध लड़े आॅपरेशन रक्षक, आॅपरेशन मेघदूत और अपने अंतिम युद्ध आॅपरेशन विजय। 01 जुलाई 1999 में आॅपरेशन विजय के दौरान वे शहीद हो गए। ड्यूटी के दौरान उन्हें कई मैडल मिले थे, लेकिन स्पेशल सर्विस मैडल उन्हें मरणोपरांत मिला।
युद्ध से पहले घर आए थे हरिओम
गुड्डी देवी ने बताया कि हरिओम सिंह कारगिल युद्ध से पूर्व छुट्टियां बिताने बदायूं जिले के बिसौली के गांव इटौआ अपने परिवार और गांव के लोगों से मिलने आए थे, लेकिन अचानक कंपनी कमांडर की तरफ से फरमान आने के बाद उन्हें कारगिल युद्ध में जाना पड़ा। आदेश मिलते ही वह 26 जून 1999 को ड्यूटी पर रवाना हो गए। इसके बाद परिवार के लोगों से उनकी कभी कोई बात नहीं हो सकी। फिर 2 जुलाई को उनके शहीद होने की खबर पहुंची जिससे पूरा परिवार टूट गया। लेकिन भारत सरकार ने शहीद के परिवार को घर चलाने के लिए उनके बरेली के डीडीपुरम में पेट्रोल पंप दिया है जिसे उनकी पत्नी गुड्डी देवी और बेटा प्रताप संचालित करते हैं।
गुड्डी देवी ने बताया कि हरिओम सिंह कारगिल युद्ध से पूर्व छुट्टियां बिताने बदायूं जिले के बिसौली के गांव इटौआ अपने परिवार और गांव के लोगों से मिलने आए थे, लेकिन अचानक कंपनी कमांडर की तरफ से फरमान आने के बाद उन्हें कारगिल युद्ध में जाना पड़ा। आदेश मिलते ही वह 26 जून 1999 को ड्यूटी पर रवाना हो गए। इसके बाद परिवार के लोगों से उनकी कभी कोई बात नहीं हो सकी। फिर 2 जुलाई को उनके शहीद होने की खबर पहुंची जिससे पूरा परिवार टूट गया। लेकिन भारत सरकार ने शहीद के परिवार को घर चलाने के लिए उनके बरेली के डीडीपुरम में पेट्रोल पंप दिया है जिसे उनकी पत्नी गुड्डी देवी और बेटा प्रताप संचालित करते हैं।
यादों के सहारे गुजर रही परिवारकी जिंदगी
शहीद हरिओम की पत्नी गुड्डी देवी और बेटा प्रताप सिंह अब उनकी यादों के सहारे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। बेटे प्रताप को तो अपने पिता ज्यादा याद भी नहीं हैं क्योंकि जब हरिओम शहीद हुए तो प्रताप काफी छोटा था।
शहीद हरिओम की पत्नी गुड्डी देवी और बेटा प्रताप सिंह अब उनकी यादों के सहारे अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं। बेटे प्रताप को तो अपने पिता ज्यादा याद भी नहीं हैं क्योंकि जब हरिओम शहीद हुए तो प्रताप काफी छोटा था।