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बाड़मेर की पहली महिला लेफ्टिनेंट बनीं सरिता, घर लौटते ही ससुर को किया सैल्यूट, ऐसी है उनके संघर्ष की कहानी

NCC Lieutenant Sarita Lilard: बाड़मेर जिले की सरिता लीलड़ पहली महिला NCC लेफ्टिनेंट बनीं। ग्वालियर OTA में 75 दिन की ट्रेनिंग पूरी कर लौटीं तो ससुर को सैल्यूट किया। दो बेटियों की मां सरिता बोलीं, अब जिले की बच्चियों को एनसीसी से जोड़कर देश सेवा और करियर में आगे बढ़ाऊंगी।

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NCC Lieutenant Sarita Lilard

NCC Lieutenant Sarita Lilard (Photo- Instagram)

NCC Lieutenant Sarita Lilard: बाड़मेर की धरती ने पहली बार महिला एनसीसी लेफ्टिनेंट देने का गौरव हासिल किया है। गर्ल्स कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर सरिता लीलड़ अब लेफ्टिनेंट (ANO) सरिता के नाम से जानी जाएंगी। सरिता ने मध्यप्रदेश के ग्वालियर स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (OTA) में 75 दिन की कड़ी ट्रेनिंग पूरी की और एनसीसी में अधिकारी का दायित्व प्राप्त किया।


बता दें कि सरिता दो बेटियों की मां हैं। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें बेटियों से दूर रहना पड़ा, कई बार बच्चों की याद में वे भावुक होकर रो पड़ीं। लेकिन लौटने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपने ससुर को सैल्यूट किया। सरिता कहती हैं, यह सैल्यूट उनका हक था, क्योंकि उन्होंने हमेशा मुझ पर भरोसा किया और प्रोत्साहित किया।


असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में ज्वॉइनिंग


साल 2019 में सरिता ने बाड़मेर गर्ल्स कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में ज्वॉइन किया। अगले साल कॉलेज में एनसीसी की गर्ल्स विंग शुरू हुई और इसका चार्ज उन्हें मिला। तब उन्होंने महसूस किया कि बच्चों को ट्रेनिंग और अनुशासन देने के लिए उन्हें खुद प्रशिक्षित होना जरूरी है। दो बार इंटरव्यू दिए, लेकिन पहली बार विशेष परिस्थितियों के कारण नहीं जा सकीं। दूसरी बार सितंबर 2024 में चयन हुआ और जुलाई 2025 में ट्रेनिंग शुरू की।


'अपने कैडेट्स को सिखाना चाहती हैं'


सरिता बताती हैं कि ट्रेनिंग के दौरान वेपन हैंडलिंग, बैटल क्राफ्ट, फील्ड क्राफ्ट, CPR समेत कई अहम तकनीकी और सामाजिक गतिविधियों की ट्रेनिंग दी गई। यह अनुभव वे अब अपने कैडेट्स को सिखाना चाहती हैं। उनका उद्देश्य है कि बाड़मेर की बच्चियां भी एनसीसी के जरिए अनुशासन, देशभक्ति और करियर में आगे बढ़ सकें।


माता-पिता ने प्रेरित किया


सरिता का पैतृक गांव बाड़मेर जिले का कोलू है। हालांकि, शिक्षा जोधपुर जिले में हुई। उनके पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए हमेशा प्रेरित किया। शादी के बाद भी परिवार का साथ मिला। सास-ससुर और पति ने हमेशा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। खासकर उनकी बड़ी बेटी ने ट्रेनिंग के समय उन्हें गले लगाकर कहा, मम्मी आप जाओ, बेस्ट ऑफ लक। यह बात उन्हें सबसे ज्यादा हिम्मत दे गई।


'तारे लगाने का सपना था'


सरिता बताती हैं कि बचपन से ही उनके मन में सेना की वर्दी पहनने और कंधे पर तारे लगाने का सपना था। स्कूल में जब उन्होंने आर्मी ऑफिसर्स को देखा, तभी से उनके मन में यह ख्वाहिश जागी। जीवन ने उन्हें पहले असिस्टेंट प्रोफेसर बनाया और अब एनसीसी लेफ्टिनेंट बनकर उनका बचपन का सपना पूरा हो गया।


सरिता कहती हैं, मैं गर्व से कह सकती हूं कि मेरे पास दो बेटियों की जिम्मेदारी है, लेकिन मेरे सपनों को पूरा करने में मेरे परिवार ने कभी रोड़ा नहीं बनने दिया। अब मेरी कोशिश रहेगी कि बाड़मेर की हर बेटी में एनसीसी के जरिए अनुशासन और आत्मविश्वास पैदा हो।