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मानसून में ‘टापू‘ न बन जाए राजस्थान का ये जिला, कभी तरसता था एक-एक बूंद के लिए

locationबाड़मेरPublished: Jun 11, 2018 03:10:02 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

रेगिस्तान में आबाद बाड़मेर शहर जो पानी की बूंद-बूंद को तरस रहा था, यहां आश्चर्यजनक तरीके से “वाटर लॉगिंग” की समस्या शुरू हो गई है।

under ground water logging problem of Barmer in rajasthan

under ground water logging problem of Barmer in rajasthan

बाड़मेर। रेगिस्तान में आबाद बाड़मेर शहर जो पानी की बूंद-बूंद को तरस रहा था, यहां आश्चर्यजनक तरीके से “वाटर लॉगिंग” की समस्या शुरू हो गई है। करीब आधे शहर में मकानों के अंडरग्राउंड में पानी भरने लगा है और भूजल स्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो आने वाले समय में पूरे शहर के यही हाल होंगे। समय रहते इसके बारे में नहीं सोचा गया तो गंभीर परेशानी से शहर के घिरने की आशंका है। मानसून आने के बाद इस शहर के टापू बनने के आसार नजर आने लगे हैं।

कभी तरसता था, अब परेशानी बना
तेल और गैस के बूते देश की आर्थिक राजधानी बन रहा बाड़मेर शहर जमीन पर तेजी से विकास के घोड़े दौड़ा रहा है, लेकिन भूगर्भ में निरंतर जमा हो रहा पानी शहर के लिए बड़ी और गंभीर समस्या को न्योता दे रहा है। शहर में बेहिसाब दोहित हो रहा पानी “लॉक” हो रहा है। बेन्टोनाइट, ग्रेवल और आग्नेय चट्टानें पानी को नीचे रिसने नहीं दे रही है, लिहाजा जलस्तर द्रुतगति से बढ़ने लगा है। प्रशासन, नगरपरिषद और भू वैज्ञानिकों की ओर से इस ओर से समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह समस्या शहर को गंभीर संकट में खड़ा सकती है। मारवाड़ का जोधपुर शहर का भी एक बड़ा इलाका वाटर लॉगिंग के बुरे परिणाम भुगत रहा है।

बाड़मेर शहर करीब पांच किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ है। शहर की भूगर्भीय के मुताबिक यहां एक से छह मीटर की गहराई तक सोईल क्ले (मुरडा) और बेन्टोनाइट की पूरी लेयर है। यह लेयर भूगर्भ वैज्ञानिकों के मुताबिक 150 मीटर तक गहरी है। ऐसे में जमीन और मुरड़े के बीच का जो भाग है, उसमें प्रतिदिन जमीन में जाने वाला पानी जमा तो हो जाता है लेकिन नीचे जाने को जगह नहीं मिल रही है। लिहाजा यह पानी जमीन और इस परत के बीच ही जमा होकर “लॉक” हो गया है। इस पानी का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। इस कारण बाड़मेर शहर के वो क्षेत्र जो ढलान में है वहां पर एक दो फीट पर ही पानी निकलने लगा है।

पुराना शहर जहां मकान में अण्डरग्राउण्ड बनाकर जीवन जीता था, अब नए बाड़मेर में अण्डरग्राउण्ड छोड़ नीवें खोदना भी मुश्किल हो गया है। जमीन को खोदते ही पानी आ जाता है और इसे मोटर से बाहर निकालते निकालते लोग थक जाते है। जिन्होंने पहले अण्डरग्राउण्ड बना लिए हैं, वे भी दु:खी होने लगे हैं और इनको भरवाने का जतन करना पड़ रहा है। शहर में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही इस समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। नगरपरिषद को इसके लिए योजना बनाकर गंभीरता से कार्य करने की दरकार है लेकिन अभी तक आम आदमी खुद ही जमीन से निकल रहे इस पानी से जूझ रहा है।

सैकड़ों लीटर पानी आ जाता है
प्रतापजी की प्रोल के निकट रहने वाले संपत्त बोथरा की बहुमंजिला इमारत में व्यवसायिक लिहाज से बना बड़ा अण्डरग्राउण्ड उनके लिए परेशानी बन गया है। इसमें प्रतिदिन सैकड़ों लीटर पानी आ जाता है। बोथरा ने अण्डरग्राउण्ड का आंगन तुड़वाकर इसमें तीन मोटर लगाई है। पाइप के जरिए इस पानी को बाहर नाली में फेंकते हैं। पानी इस गति से बाहर आता है जैसे टे्रक्टर के टैंकर से पानी बाहर आ रहा हो। बोथरा को प्रतिमाह हजारों रूपए इस पर खर्च करने पड़ रहे है। वे बताते हैं कि इसको लेकर कई बार अधिकारियों से संपर्क किया। प्रतापजी की प्रोल के कई घरों मे यह समस्या है।
मकान बनाना मुश्किल
नेहरू नगर इलाके में जैसे ही नींवों की खुदाई होती है, गड्ढ़ा करते ही पानी निकल आता है। मकान मालिक को पहले इस पानी के लिए जतन करना पड़ता है। इसके लिए आरसीसी से तल का निर्माण करवाना, केमिकल डालना और कई प्रकार के खर्चे करने के बाद ही मकान खड़ा हो पाता है। इसके बाद भी लोगों को यह चिंता सता रही है कि उनका मकान सुरक्षित है या नहीं।

भरवाना पड़ा अण्डर ग्राउण्ड
हाईस्कूल के ठीक सामने की कॉलोनी और इसके पिछवाड़े महेश्वरी भवन के निकट बने आलीशान मकानों तक यह समस्या पहुंच गई है। यहां रहने वाले डा. जुगलकिशोर सर्राफ बताते है कि उनके तीन मंजिला मकान के नीचे बड़े चाव से अण्डरग्राउण्ड बनाया था। इस अण्डरग्राउण्ड में पानी का भराव हो गया। समस्या का और कोई समाधान नहीं होने पर पूरे अण्डरग्राउण्ड को मिट्टी से भरवाना पड़ा। उनके मौहल्ले में और लोगों ने भी अलग-अलग तरीके से समाधान किए हैं। पानी की समस्या ने परेशानी पैदा कर दी है।
ऐसी है बाड़मेर की भूगर्भ संरचना
बाड़मेर के भूविज्ञान को देखे तो यहां भूगर्भ में आग्नेय चट्टाने हैं। जो प्री केम्ब्रियन काल की है। उसके ऊपर ट्रीटेशियम काल की बाड़मेर हिल फॉर्मेशन की चट्टाने हैं। उसके ऊपर अकली फोर्मेशन का क्ले व बेन्टोनाइट है। उसके ऊपर क्वार्टनरी एल्युवियम तथा हार्ड डेजर्ट सेण्ड है। यहां पहले पानी का रिचार्ज नहीं था, लेकिन नहरी पानी का आना और बरसात की अधिकता हुई है। टयूबवेल भी नहीं रहे हैं। ऐसे में रिचार्ज बढ़ गया है। क्ले व बेन्टोनाइट चट्टाने पॉलिथिन की मानिंद व्यवहार कर रही है। इससे पानी ऊपर से जाकर नीचे एकत्रित हो रहा है। यही वाटर लॉगिंग की वजह है। इसके दुष्परिणाम होंगे। अभी बेन्टोनाइट को पानी ने छुआ नहीं है। ऐसा होते ही बेन्टोनाइट फूलेगा और मकानों में दरारों की समस्या आएगी। जोधपुर इस समस्या से रूबरू है। प्रशासन अभी से चेते और इस गंभीर समस्या को गंभीरता से लेते हुए उपाय ढूंढे।

यूं हुई समस्या
पानी को तरसने वाले बाड़मेर शहर में यह समस्या बढ़ने का पहला कारण पानी का अत्यधिक दोहन हो गया है। नहरी पानी आने से पहले बाड़मेर शहर में 60 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी आपूर्ति होता था जो अब 150 लीटर हो गया है। 60 लाख लीटर की बजाय अब 150 लाख लीटर प्रतिदिन पानी आपूर्ति हो रहा है। भू वैज्ञानिकों का मानना है कि मुश्किल से दस प्रतिशत पानी वाष्प बनता है शेष सारा पानी जमीन में किसी न किसी रूप में जाता है। इस कारण पानी जमा होने की रफ्तार तेज हो गई है। यह रफ्तार रही तो एक साल में एक मीटर तक जलस्तर हर वर्ष बढ़ना है।
नहीं होता दोहन
पूर्व में शहर में जलदाय विभाग भी भूमिगत जल का ही दोहन कर रहा था और कुओं बावडियों का पानी इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन अब शहर में भूमिगत पानी का दोहन नगण्य हो गया है। सारी आपूर्ति नहरी पानी से हो रही है। नहरी पानी के आने से पहले बाड़मेर के निकट गेहूं, बिशाला रोड, जोशियों का कुंआ व अन्य भूमिगत जलस्त्रोतो से 400 टैंकर पानी प्रतिदिन निकाला जाता था।

आबादी बढ़ी
बाड़मेर शहर की आबादी दस साल पहले पचास हजार थी जो अब एक लाख पचास हजार के करीब पहुंच गई है। जितने ज्यादा लोग, उतना ज्यादा पानी का दोहन। इसके अलावा औद्योगिकीकरण, रेस्टोरेंट, होटलें, भवन निर्माण सहित अन्य गतिविधियों में पानी की शहर की खपत दस गुणा बढ़ा दी है।

यहां भुगतने लगे हैं लोग
शहर की डेढ लाख आबादी करीब 39 हजार मकान है। इसमें से आधे शहर में यह समस्या पहुंच गई है। पहले यह समस्या नेहरू नगर, महावीर नगर, सिणधरी चौराहा सहित रेलवे फाटक के उस तरफ के इलाके में ही थी, जहां अण्डरग्राउण्ड खोदना मुश्किल हो गया था। अब हाईस्कूल रोड, प्रतापजीकी प्रोल, ऑफिसर कॉलोनी व स्टेशन रोड इलाके में भी इस समस्या से लोग रूबरू होने लगे है। ऎसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगातार यह समस्या बढ़ती जा रही है। अनुमान है कि इसी रफ्तार से जल स्तर बढ़ा तो पुराना बाड़मेर शहर जो पहाड़ी की तलहटी के निकट बसा है, वहां समस्या नहीं पहुंचेगी। पेड़-पौधों की कमी शहर में पेड़ पौधों की संख्या बढ़ने की बजाय लगातार घट रही है। शहर के इर्द-गिर्द जहां कभी खेत और जंगल होते थे, वहां कोलोनियां कट गई है। शहर का विस्तार द्रुत गति से होने से पेड़ो की भी अंधाधुंध कटाई जारी है। पेड़ लगाने को लेकर शहर में नगर परिषद, प्रशासन या अन्य स्तर पर कोई बड़ी योजना नहीं है।
यह है समाधान

इस समस्या का पहला समाधान इस पानी को जमीन में नीचे उतारना है, लेकिन वॉटर लेयर 150 मीटर तक गहरी होने के कारण यह मुश्किल हो रहा है। दूसरा समाधान इस पानी को पाइप के जरिए बाहर निकालकर इसको ट्रीट तक पहुंचाना है। तीसरा इस पानी का स्तर बढ़े नहीं और इसका दोहन लगातार होता रहे। साथ ही इस समस्या के स्थाई समाधान जोधपुर के तर्ज पर नगर परिषद को अन्य कई योजनाएं लानी होगी। इसके लिए तैयारी के साथ योजना बनाना जरूरी है। यह होंगे दुष्परिणाम मकानों में भूजल भराव की नौबत आने की आशंका है। अण्डरग्राउण्ड बनाकर भवन खड़ा करने की तो सोच ही नहीं सकते है और दूसरा नीवें भी कमजोर होने का पूरा खतरा है। भवनों में सीलन की समस्या, बरसाती पानी का कई दिनों तक जमा रहना, दीवारों में दरारें आना और कई प्रकार की समस्या इससे खड़ी हो सकती है।
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