
भवानी सिंह राठौड़/ बाड़मेर। नया काम और चोखे दाम…। दूध से दही, छाछ और घी बनाने वाली रेगिस्तान की महिलाएं अब पनीर बनाकर कुछ ऐसा ही कर रही हैं। बाजार में इसकी लगातार मांग के चलते अब बॉर्डर के गांवों में इस नए उत्पाद से अच्छी-खासी कमाई हो रही है।
बॉर्डर के रोहिड़ी गांव से प्रतिदिन 60 किलो पनीर तैयार हो रहा है। एक क्विंटल से अधिक पनीर की आपूर्ति बाड़मेर के रेस्टोरेंट आदि पर हो रही है। बॉर्डर के दूरस्थ गांवों में लोगों के लिए आज भी पशुधन पर आजीविका निर्भर है। दस साल पहले लोग दूध बेचकर आजीविका चलाते थे, लेकिन उन्हें दूध के माकूल दाम नहीं मिल रहे थे। छाछ की बिक्री नहीं है। ऐसे में पनीर की मांग ने इन्हें नई सोच दी। पनीर की मांग भी बाड़मेर शहर के बाजार में ही मिल गई। अब बॉर्डर के रोहिड़ी, सुंदरा व पांचला गांव से प्रतिदिन एक क्विंटल से अधिक पनीर बिकने के लिए बाड़मेर शहर आ रहा है। इन्हें प्रति किलो 210 रुपए मिल रहे है। छह किलो दूध से एक किलोग्राम पनीर तैयार होता है।
पनीर तैयार करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता भी नहीं होती। महिलाएं इस नए कार्य से खुश हैं। पनीर बनाने में छाछ बिलौने से लेकर घी बनाने जितनी मेहनत भी नहीं लगती।
बॉर्डर के गांव पांचला, रोहिड़ी, द्राभा, मोती की बेरी, सुंदरा, सजनाणी, गडरारोड़, म्याजलार सहित अन्य गांवों में थारपारकर नस्ल की उत्तम गायें है। यहां के पनीर व घी को रेगिस्तान में सर्वाधिक महत्व दिया जाता है।
पनीर बनाते हैं, इससे अच्छा मुनाफा होता हैं। बॉर्डर के गांवों में आज भी पशुधन पर आजीविका निर्भर है। पहले डेयरी की गाड़ी दूध लेने आया करती थी, लेकिन दाम नहीं मिल रहे है। ऐसे में अब यहां दूध से पनीर बनाते हैं। यह पनीर शुद्ध होता है। पशुपालकों को भी अच्छे दाम मिल जाते है।
कल्याणसिंह रोहिड़ी
Published on:
25 Aug 2024 05:19 pm
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