
मां के साथ दोनों बेटियां। फोटो पत्रिका
चौमूं। मुश्किलें कितनी ही क्यों न हों, हौसलों के आगे सब छोटी साबित होती हैं। पति को खोने के बाद जीवन की जंग अकेले लड़ने वाली किसान मां गीता देवी यादव ने न सिर्फ अपने बच्चों को संवार दिया, बल्कि उनके सपनों को भी पंख लगा दिए।
खेतों में दिन-रात पसीना बहाकर पढ़ाई का खर्च उठाया और आज उनका संघर्ष रंग लाया है, उनकी दो बेटियां चिकित्साधिकारी बन गई हैं, बड़ा बेटा इंजीनियर और छोटा बेटा तकनीकी शिक्षा पूरी कर चुका है।
गीता देवी की जद्दोजहद उन तमाम माताओं के लिए मिसाल है, जो हालात से समझौता करने के बजाय उनका डटकर सामना करती हैं। जानकारी के अनुसार निवाणा निवासी गीता देवी के पति की वर्ष 2014 में किडऩी की बीमारी के चलते मौत हो गई। चार बच्चों को शिक्षा दिलाना और परिवार की चलाने की पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गई, लेकिन वह पीछे नहीं हटी और बच्चों के सपनों को साकार किया।
हाल ही में उनकी दो बेटियों ने चिकित्साधिकारी का पद संभाला है। बड़ी बेटी सुमन यादव ने 12 अगस्त को मंडाभीमसिंह रेनवाल के पीएचसी में और छोटी बेटी संगीता यादव ने 14 अगस्त को गोविंदपुरा धाबाई शाहपुरा में चिकित्सा पद पर कार्यभार संभाला है। इनका बड़ा भाई राकेश यादव वर्ष 2017 में एनएचएआई अमृतसर (पंजाब) में इंजीनियर है। छोटा भाई राजेश ने भी बीटेक कर लिया है।
किसान मां गीता देवी ने बताया कि पति के मौत के बाद बच्चों को पढ़ाने और उनके सपनों को पूरा करने में जरूर अड़चने आई, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने बताया कि उसने कभी बच्चों में अंतर नहीं किया। बेटे और बेटियों को एक साथ पढ़ाया है। वह कहती हैं कि बच्चों की सफलता को देखकर सारे दुख भूल जाती हैं। बच्चों ने भी पूरा साथ दिया। पोती व पोते के सफल होने पर दादी मनभरी देवी भी खुश है।
चिकित्सा अधिकारी बनी संगीता ने बताया कि जब पिता का निधन हुआ, तब वह 12वीं कक्षा में थी। बड़ी बहन सुमन नीट की तैयारी कर रही थी। बड़े भाई राकेश भी इंजीनियर बनने की तैयारी कर रहा था। छोटा भाई भी स्कूल में था। पिता का भी सपना था कि उसकी बेटियां चिकित्सक बने और बेटे इंजीनियर।
Published on:
24 Aug 2025 04:04 pm
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