
villagers allowed woman funeral after religious conversion betul (फोटो- सोशल मीडिया)
MP News: बैतूल के आमला ब्लॉक के कन्नड़गांव गांव की आदिवासी महिला ललिता परते (50) के निधन के बाद उनके परिवार को अपनों से ही बेगानापन झेलना पड़ा। ग्रामीणों ने न केवल उनके घर आने से इनकार कर दिया बल्कि गांव के एकमात्र श्मशान घाट का उपयोग करने पर भी रोक लगा दी। मृतिका का परिवार जब असहाय हो गया तो उन्होंने गांव के बुजुर्गों और पंचायत से गुहार लगाई, लेकिन शुरुआत में किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।
ललिता के पुत्र राजाराम के मुताबिक, समाज ने आरोप लगाया कि उनका परिवार वर्षों पहले ईसाई धर्म अपना चुका (religious conversion) है और अब उनका समाज से कोई संबंध नहीं है। अंतिम संस्कार जैसे संवेदनशील मौके पर इस तरह का विवाद सामने आना न केवल पीड़ित परिवार के लिए पीड़ा का कारण बना बल्कि गांव में तनाव और चर्चा का विषय भी बन गया।
स्थिति तब बदली जब ललिता के पुत्र और परिवार के अन्य सदस्य (तीन बेटियां और दामाद) गांव के देवी-देवताओं की कसम खाकर समाज से माफी मांगने लगे। परिवार ने वादा किया कि अब वे पूरी तरह से आदिवासी परंपराओं का पालन करेंगे और गांव की परंपराओं में शामिल रहेंगे। उन्होंने बड़ा देव की कसम खाते हुए कहा कि वे फिर से आदिवासी धर्म में लौट आए हैं और भविष्य में किसी अन्य धर्म का लालच स्वीकार नहीं करेंगे। इसके बाद ग्रामीणों ने मृतका की अंत्येष्टि में हिस्सा लिया। देर शाम ललिता का अंतिम संस्कार आदिवासी रीति-रिवाज से हुआ।
गांव की सरपंच सविता सरयाम और पंच रेवती कवड़े ने बताया कि परिवार लंबे समय से ईसाई धर्म का पालन कर रहा था, इसीलिए समाज ने उनसे दूरी बना ली थी। लेकिन अब जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से घर वापसी की है, तो समाज ने भी उन्हें स्वीकार कर लिया। ग्राम सचिव आशीष नागले ने कहा कि पंचायत किसी भी प्रकार के जबरन धर्म परिवर्तन की निंदा करती है और शासन स्तर से पीड़ित परिवार को जो भी सहायता मिलनी चाहिए, वह दिलाई जाएगी। (MP News)
Published on:
13 Sept 2025 11:30 am
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