
कबीर
पुनीत कौशिक/भिलाई. कबीर पंथ यानी कबीर का पथ या कबीर का मार्ग। कबीर पंथ कोई धर्म या जाति नहीं, बल्कि सतगुरु कबीर साहब द्वारा दिखाया हुआ एक मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर हर धर्म, जाति और मजहब का व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है। संत कंबीर का 626वां प्रकटोत्सव दिवस 4 जून को है। छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ को मानने वालों की संख्या बहुत है। कुछ क्षेत्र में इस पंथ वालों का अच्छा प्रभाव है। मानिकपुरी पनिका समाज और साहू समाज के लोग बड़ी तादाद में कबीर पंथ से जुड़े हैं। कबीरपंथी समाज के सदस्य रमेश साहू ने बताया कि छत्तीसगढ़ में करीब 72 लाख लोग इस पंथ को मानते हैं। वहीं देशभर में इनकी आबादी करीब 96 लाख है।
पोटियाकला कबीरपंथियों का गांव जहां अंडा तक नहीं बिकता
दुर्ग जिले के पोटियाकला गांव में गिने चुने घर को छोड़ पूरा गांव कबीरपंथियों का है। इस गांव में अंडा तक नहीं बिकता। इसी गांव के 91 वर्षीय महंत खोरबाहरा साहेब मानते हैं कि आज कबीर की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। चारों तरफ पाखंड का बोलबाला है, ऐसे में कबीर का मार्ग इससे बचा सकता है। युवा वर्ग मांस मदिरा जैसे अन्य दुव्र्यसनों का शिकार हो रहे हैं, कबीर का मार्ग उन्हें भटकाव से बचा सकता है। क्यंोंकि कबीर पंथ सत्मार्ग पर चलता है। पाखंड के लिए कोई जगह नहीं है। यह मार्ग कर्मप्रधान हैं, पर फालतू के कर्मकांड के कबीरजी सख्त विरोधी थे।
धन संचय और विलासिता की जीवन में घुसपैठ
कबीरपंथ के लोगों से बातचीत में यह बात भी सामने आई कि पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच एक महीन सामानांतर रेखा सी खींच रही है। युवाओं की सोच और जीवनशैली में परिवर्तन आ रहा है। सात्विकता की जगह विलासिता घुसपैठ करने लगी है। धन संचय और स्वार्थ की भावना बलवती होने लगी है। महंत खोरबाहरा साहेब भी मानते हैं कि आज की युवा पीढ़ी सत्संग से दूरी बना रही है। चौका आरती, पूर्णिमा उपवास, संध्या आरती से उनका जुड़ाव कमजोर पड़ रहा है। उनका कहना है कि पढऩा लिखना जरूरी है, साथ ही अपनी जड़ से जुड़े रहना भी उतना ही जरूरी है।
कबीरपंथ के युवाओं को मार्गदर्शन की जरूरत
कबीरपंथ से जुड़े परिवार के युवाओं से बातचीत में एक बात साफ प्रतीत होता है कि उन्हें मार्गदर्शन की जरूरत है। युवाओं ने भी कहा कि जितना कुछ देख लिया सीख लिया पर बचपन से ज्यादातर घरों में कबीर पंथ के बारे में कुछ बताया सीखाया नहीं जाता। रूपेश कुमार साहू का कहना है कि हमारे माता पिता कंबीरपंथी हैं, इसलिए हम भी हैं, और आगे हमारे बच्चे भी कबीरपंथी रहेंगे। लेकिन कबीरजी के मार्ग पर कैसे चलें यह बचपन से सीखाने की जरूरत है।
घर में बचपन से कबीरपंथ के बारे में बताया सीखाया जाए
युवा रिमांशु साहू का कहना है कि थोड़ा आभाव तो है, लेकिन कुछ अपवाद छोड़ दें तो कबीर पंथ का युवा दुव्यज़्सनों से दूर रहता है। कबीर पंथ आज भी आडंबर से मुक्त है। रिमांशु भी मानते हैं कि घर में बचपने से कबीर पंथ के बारे में बताया सिखाया जाना जरूरी है। युवा पढऩे लिखने बाहर चल देते हैं। वहां के रंग में रंगने लगते हैं। बचपन से सीख मिलेगी तो उसका प्रभाव उसके जीवन पर रहेगा। मोहितदास मानिकपुरी कहते हैं कि कबीरपंथ के महंत कबीरपंथ का प्रचार प्रसार कर रहे हैं पर इसे और गति देने की जरूरत है।
वैराग्य को अलग परिभाषित किया
महंत खोरबाहरा साहेब बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के अलावा पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश में कबीरपंथी बहुत हैं। दामाखेड़ा की गुरुगद्दी पर प्रकाश मुनि नाम साहेब विराजमान हैं। कबीरपंथी प्रार्थना को बंदगी कहते हैं। मानव शरीर 5 तत्वों से मिल कर बना है, जिसके लिए दिन में 5 बार बंदगी करनी जरूरी है। वे कहते हैं कि कबीरदास ने मुक्ति का बहुत ही सहज मार्ग बताया है। ईश्वर को बाहर ढंूढने की जरूरत नहीं है। वह हर मनुष्य के भीतर है। उसे बाहर नहीं अंदर ढूंढों। वैराग्य को अलग परिषाभित किया। वैराग्य के लिए घर परिवार को छोडऩा कतई जरूरी नहीं है। कबीरपंथी ईश्वर के निर्गुण रूप की उपासना करते हैं और किसी भी प्रकार के पूजा और पाठ से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति को ही सर्वोपरी मानते हैं।
संत कबीर को अवतारी मानते हैं अनुयायी
संत कबीर के अनुयायी उन्हें अवतारी मानते हैं। उनका जन्म किसी मां के गर्भ से नहीं हुआ। वे काशी के तहरताला तालाब में कमल पुष्प पर शिशुरूप में प्रकट हुए। नीरू (नूर अली) और उसकी पत्नी नीमा उसे अपने घर जुलाहा मोहल्ले में ले आए और पालन पोषण किया। श्रीरामानंदाचार्य महाराज उनके गुरु थे। कबीर पंथ में संत कबीर द्वारा लिखे ग्रंथ बीजक को केंद्र माना जाता है और इसे ही सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बीजक ग्रंथ के अनुसार ही भगवान की पूजा होती है और बाकी के धार्मिक काम होते हैं। बीजक का शाब्दिक अर्थ होता है बीज।
Published on:
03 Jun 2023 11:19 pm
