
पुरी से लौटकर नितिन त्रिपाठी की रिपोर्ट @
भिलाई . धार्मिक और पुरा महत्व के साथ ओडिशा के पुरी शहर की एक पहचान समुद्र से कटकर बनी विशाल झील चिल्का भी है। भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी खारे पानी की झील चिल्का जैव विविधता के लिए पहचानी जाती है। समुद्र तट के कटाव और बारिश के दौरान आने वाली मिट्टी से चिल्का झील लगातार छिछली होती जा रही है। इससे चिल्का के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
पुरी से करीब 45 किलोमीटर का सफर करके यहां पहुंचा जा सकता है। 11 हजार वर्गफीट में फैली यह झील देश की सबसे बड़ी और एशिया के दूसरी सबसे बड़ी है। झील में मोटरबोट पर घूमने का आनंद ही कुछ और है। हां, इसके लिए आपको तीन घंटे के 1720 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। आमतौर पर पर्यटक यहां सुबह दस बजे से पहले पहुंच जाते हैं, ताकि प्रवासी पक्षियों, इरावती डॉल्फिन के साथ ही लैगून के आसपास की खूबसूरती को देख सकें।
झील का सफर शुरू होते ही आपको इसकी बेजोड़ सुंदरता और जैव विविधता का अहसास हो जाता है। झील के बीच टापू की शक्ल में गांव हैं।
समुद्र तट के कटाव से झील को है बड़ा खतरा
चिल्का से जुड़ा समुद्र तट उत्तर-पूर्व की तरफ बढ़ रहा है। मोटर बोट के नाविक दिनेश बताते हैं कि बचपन से तट को देखते आ रहे हैं, तब यह जिस जगह हुआ करते थे, उससे अब दूर चला गया है। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने यहां पेड़ लगवाए ताकि तट का कटाव रोका जा सके। अब दूसरे छोर को बचाने के लिए भी वहां खास किस्म के पौधे लगाए गए हैं। इनके चारों तरफ बाड़ लगाई गई है। सुरक्षा गार्ड तैनात किया गया है। उसकी 12 घंटे की ड्यूटी होती है। वह एक पौधे को दिखाते हुए कहता है कि पर्यटकों को समझाना मुश्किल होता है। जब कहते हैं पौधों का न कुचलें तो कुछ लोग मान जाते हैं और कुछ उनको रौंदकर आगे बढ़ जाते हैं। यह ऐसा ही पौधा है।
इरावती डॉल्फिन अब 155, लेकिन बमुश्किल दिखती हैं
ओडिशा के पुरी क्षेत्र की इस झील का पानी बारिश में मीठा हो जाता है। झील में इरावती डॉल्फिन भी पाई जाती हैं। झील का खास आकर्षण डॉल्फिन मछली हैं। हाल में डॉल्फिन की संख्या 155 बताई गई है। हालांकि यहां आने वालों को डॉल्फिन देखने के लिए काफी धैैर्य रखना होता है। मोटर बोट के अलावा व्यापारिक गतिविधियों के लिए चलने वाले छोटे जहाजों के शोर से डॉल्फिन को देखना मुश्किल हो जाता हैै।
चिल्का झील इतनी पंसद आई कि
प्रवासी पक्षियों ने यहीं डाला डेरा
यहां साइबेरिया व अन्य स्थानों से आने वाले करीब 160 तरह के अप्रवासी पक्षी डेरा जमाते हैं जो झील की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं। नाविकों की मानें तो सर्दियों में झील और इसके मुहाने प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा स्थली होते हैं। यहां हर साल एक लाख से भी ज्यादा प्रवासी पक्षी पहुंचते हैं। सर्दियां बीतने के साथ ही इनकी संख्या कम होने लगती है। अच्छी बात यह है कि कुछ प्रवासी पक्षियों ने अब चिल्का झील को ही अपना स्थायी निवास बना लिया है।
1990 में खत्म होने की कगार
पर पहुंच गई थी चिल्का झील
भू वैज्ञानिकों के अनुसार झील का निर्माण 3500 वर्ष पूर्व हुआ होगा। जैव विविधता के चलते इसे 1981 में रामसर घोषणा पत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय आद्र्र भूमि के तौर पर चिन्हित किया गया। चिल्का आसपास के 192 गांवों के 50 हजार से अधिक मछुआरों की आजीविका का साधन है। यह झील में मछली और झींगा पालन करते हैं। बताया जाता है कि गाद जमने से झील इस कदर छिछली हो गई थी। वर्ष 1990 में इस झील को मृत प्राय मान लिया गया था। इसके बाद झील के संरक्षण की दिशा में प्रयास शुरू हुए। तभी झील विकास प्राधिकरण अस्तित्व में आया।
आज भी झील में परिवहन का
मुख्य साधन हैं छोटे जहाज
करीब 11 सौ वर्ग किलोमीटर में फैली झील कई जिलों की सीमा को छूती है। झील के बीच में टापूनुमा गांवों से आने-जाने के लिए एकमात्र जलमार्ग ही है। चिल्का झील में आज भी परिवहन का मुख्य साधन छोटे जहाज हैं। इनके जरिए लोगों को ही नहीं सामान और वाहनों को भी ढोया जाता है। इसके लिए झील विकास प्राधिकरण ने जहाज और मोटर बोट खड़ी करने के लिए कांक्रीट की जेटी तैयार कराई हैं।
कुछ खास बातें चिल्का झील से जुड़ीं
- एक साल में डॉल्फिन की संख्या 100 से बढ़कर 155 हो गई है। दावा है कि इनको झील के उन स्थानों पर भी देखा गया, जहां इससे पहले कभी डॉल्फिन नजर नहीं आई।
- झील करीब 90 हजार प्रवासी पक्षियों का ठिकाना बनी। इस दौरान कोई नई प्रजाति का प्रवासी पक्षी यहां नहीं देखा गया। कुछ प्रवासी पक्षी समय से पहले ही यहां से लौट गए, लेकिन कुछ यहीं बस गए हैं।
- झील के बरुनकुडा और समुद्र तट कृष्णाप्रसाद ब्लॉक में प्रवासी पक्षियों को अनुकूल माहौल मिलने से उन्होंने नया ठिकाना बनाया है। इस क्षेत्र में भी इको टूरिज्म की जबरदस्त संभावना है।
- चिल्का झील में पेन (पानी में घेरा बनाकर) संस्कृति से मछली और झींगा पालन किया जाता है लेकिन इसमें 152 वर्ग किमी का क्षेत्र अवैध घाटियों और पेन संस्कृति से मुक्त किया गया है।
(चिल्का झील विकास प्राधिकरण की हाल में हुई वार्षिक बैठक में सामने आए तथ्य)
भगवान जगन्नाथ पुरी मंदिर का ध्वज
हवा की दिशा के विपरीत लहराता है
जगन्नाथ धाम हिन्दू धर्र्म के सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में है। ओडिशा में समुद्र तट पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए देश और दुनिया से श्रद्धालु वर्षभर आते हैं। जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। धार्मिक तौर पर जगन्नाथ धाम की विशेष महिमा है। मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर का ध्वज हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है। ऐसी अनेकों किवदंतियां इस मंदिर को लेकर जुड़ी हुई हैं। मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजे हैं। पौराणिक गाथाओं और धार्मिक मान्यताओं के चलते एक बार फिर पुरी की यात्रा का संजोग बना। पुरी मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते ही आपको अलौकिक अनुभव होता है। समुद्र तट पर स्थापत्य कला और शिल्प का अद्भुत उदाहरण है। करीब 4 लाख वर्गफीट क्षेत्र में फैले इस मंदिर में देवी-देवताओं की करीब सवा लख प्रतिमाएं हैं।
Published on:
05 Mar 2018 02:57 pm
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