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‘3 इडियट्स’ फिल्म के रियल कैरेक्टर ‘फुनसुख वांगडु’ ने इस एग्जाम का पैटर्न बताया गलत, स्टूडेंट्स के लिए कही ये बात

CG Education News : मैकेनिकल इंजीनियर, शिक्षक, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, सैकमॉल स्कूल, एचआईएएल कॉलज संचालक... यह सूची लंबी होती जाएगी सोनम वांगचुक के बारे में जितना जानने की कोशिश करेंगे।

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'3 इडियट्स' फिल्म के रीयल कैरेक्टर 'फुनसुख वांगडु' ने इस एग्जाम का पैटर्न बताया गलत, स्टूडेंट्स के लिए कही ये बात

'3 इडियट्स' फिल्म के रीयल कैरेक्टर 'फुनसुख वांगडु' ने इस एग्जाम का पैटर्न बताया गलत, स्टूडेंट्स के लिए कही ये बात

देवेंद्र गोस्वामी

भिलाई। CG Education News : मैकेनिकल इंजीनियर, शिक्षक, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, सैकमॉल स्कूल, एचआईएएल कॉलज संचालक... यह सूची लंबी होती जाएगी सोनम वांगचुक के बारे में जितना जानने की कोशिश करेंगे। स्कूल शिक्षा सिस्टम में सुधार कर लद्दाख क्षेत्र में बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट को 5 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक पहुंचा दिया। अभी वे स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (सैकमॉल) स्कूल चलाते हैं, जहां सिर्फ उन्हीं बच्चों को एडमिशन मिलता है जो फेल हुए हैं। पास वालों का नाम वेटिंग लिस्ट में रहता है।

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वे थ्योरी की जगह प्रैक्टिकल पर ज्यादा जोर देते हैं। हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्य लद्दाख (एचआईएएच) नाम से कॉलेज चलाते हैं, वहां भी व्यवहारिक शिक्षा दी जाती है। सोनम के नाम पर 400 से अधिक पेटेंट है। ऑपरेशन न्यू होप के नाम से लद्दाख में शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाने पर काम कर रहे हैं। फिल्म थ्री इडियट्स में आमिर खान ने जिस फुनसुख वांगड़ु का किरदार निभाया था, वह सोनम से ही प्रभावित था। बुधवार को वे भिलाई के रुंगटा आर-1 इंजीनियरिंग के इंडक्शन प्रोग्राम में आए थे।

आपके स्कूल सैकमॉल में सिर्फ फेल बच्चों का एडमिशन लिया जाता है?

ये बाद में आया। लद्दाख में पहले सिर्फ पांच प्रतिशत बच्चे पास हो रहे थे मैट्रिक बोर्ड में। जब हम सरकार से मिलकर सभी सरकारी स्कूलों में परिवर्तन लाने का प्रयास करने लगे तो उलटा होने लगा। 75 प्रतिशत पास होने लगे, 25 प्रतिशत फेल होने लगे। तब हमने स्कूल शुरू किया जिसमें सिस्टम के रिजेक्टेड बच्चे पढ़ सकें। इस स्कूल का क्राइटेरिया है कि आप फेल हुए हों। अगर आप पास हो गए हैं तो वेटिंग लिस्ट में हो सकते हैं।

आपके कॉलेज एचएआईएल में इसी पैटर्न पर पढ़ाई होती है?

वहां भी प्रैक्टिकल पर जोर है। हम कहते हैं कि अंग्रेजों से हमने क्या सीख ली जो पूरी शिक्षा नीति पटरी से उतर गई तो वह है थ्री आर- रीडिंग, राइटिंग और अर्थमेटिक। हम लद्दाख में कहने लगे थ्री एच- ब्राइट हेड्स, स्किल्ड हैंड और काइंड हार्ट। ब्राइट हेड्स और स्किल्ड हैंड विध्वंस ला सकता है इसलिए मानवता बहुत जरूरी है। मनुष्य बनाने के लिए जरूरी है मस्तिष्क से बहुत तीक्ष्ण हों, हाथों से बहुत दक्ष हों और हृदय से बहुत संवेदनशील हों।

आप लद्दाख से बाहर आना चाहेंगे?

जैसा अभी आया हूं, वैसा आना चाहूंगा। देश में बहुत इंस्टीट्यूट हैं, करने वाले हैं, उनसे संपर्क करना चाहूंगा, करेंगे वो, हम लद्दाख से कहीं आंध्रा कहीं आसाम में क्या करेंगे। जो स्पीरिट है, वह बांट पाएंगे। आपने केंद्र सरकार के साथ मिलकर शिक्षा सुधार के क्षेत्र में काम किया लेकिन यह दिखा नहीं?

यह दिखेगा भी नहीं। क्योंकि एक बहुत बड़ी समस्या है। लोकतंत्र में सरकारें कब बदलती है जब जनता की सोच बदलती है। सरकारें खुद से कुछ करे तो जनता उनको ताली से ज्यादा गाली देंगी। जरूरत अभी सरकार से ज्यादा जनता को बदलने की है। पहले तो शिक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। वही नहीं है। उसके बाद प्राथमिकता बन भी जाए तो कैसी शिक्षा हो, उसकी भी काई चर्चा नहीं है।

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फिर सरकार तो उसको प्राथमिकता नहीं देगी जो जनता की प्राथमिकता न हो। हम चांद के बारे में ज्यादा बात करेंगे लेकिन धरती पर जो बच्चे मिट्टी में मिले हैं, उनकी कम बात करेंगे। चांद पर गए अच्छी बात है लेकिन जो बच्चे धूल में मिले हैं, उनके भविष्य पर भी बात करने की जरूरत है। वह सिर्फ पॉलिसी के दस्तावेजों में न हो, स्कूलों में होनी चाहिए। नई शिक्षा नीति बहुत खूबसूरत है लेकिन बहुत आशंका है कि सच में रंग ला पाएगा। आईआईटी को लेकर नारायण मूर्ति ने कहा था कि कोचिंग सेंटर के कारण रटने वाले पहुंच रहे हैं। अच्छे टेक्नोक्रेट नहीं मिल रहे हैं?

यह बिल्कुल सही है। आईआईटी में जाता हूं तो हर बार प्रोफेसर यही शिकायत करते हैं कि बच्चे न क्लास में सुनते हैं न कुछ करते हैं। उन्हें तो सिर्फ डिग्री चाहिए। मैं बच्चों को दोष नहीं देता। हमारे कॉलेजेज में बदलाव नहीं आया। हम वही पुराने लेक्चर दे रहे हैं। मोबाइल पर सब है तो आपका लेक्चर कोई क्यों सुने। लेक्चर सब आउटसोर्स कर दो। आप वो करो जो कोई इंटरनेट नहीं कर सकता। वो है कोलाबोरेशन, एक्सपेरिमेंटेशन, एक्चुअल एप्लिकेशन।

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सभी संस्थाएं सेंटर ऑफ एप्लिकेशन बनें। थ्योरी को आउटसोर्स कर दिया जाए। ग्राउंड पर बेस्ट रिजल्ट देने का काम आप कर सकते हैं। आईआईटी समेत सभी टेक्नोलॉजी वाले इंस्टीट्यूट में कुछ मल्टी पर्पज सवालों का जवाब देकर सलेक्शन कर लेते हैं। ऐसे में रटने वाले बच्चे ही मिलेंगे। गलत लोग आ जाएंगे तो वे इंटरेस्टेड नहीं होंगेे। आपका एंट्रेस ही गलत है तो सिर्फ लेबल चाहते उन्हें प्रवेश मिलता है। जो सच में रुचि रखते हैं प्रॉब्लम के सॉल्यूशन में वे किसी गांव में साइकिल के साथ जुगाड़ कर रहे होंगे या कुछ खोल रहे होंगे, कुछ कर रहे होंगे। वो हाथ के माहिर होंगे लेकिन उनको वह ज्ञान नहीं मिलेगा जो आईआईटी दे सकता है। जिनको आईआईटी ज्ञान दे रहे हैं वो टूथपेस्ट बेचने चले जाते हैं। एंट्रेंस एग्जाम को बदल देना चाहिए।

एंट्रेंस एग्जाम का क्या पैटर्न होना चाहिए?

एडमिशन के लिए ट्रैक रिकॉर्ड देखने का मौका होना चाहिए। इस आदमी ने पहले क्या-क्या किया है जो उसे अच्छा इंजीनियर बनाएगा। इसे स्कूल के साथ लिंक किया जा सकता है। स्कूल में क्या सॉल्यूशन खोजे हैं, ऐसा कोई जिसने 10 सॉल्यूशन ट्राय किए हों, वो आईआईटी जाने से न रह जाए। बच्चों की संख्या बहुत रहती है लेकिन यह तो कर सकते हैं कि 20 सवाल पूछते हैं तो दो सवाल ऐसे हो सकते हैं जो रेंडमली किसी से पूछ लिए जाएं। किसी को भी एक कमरे में ले जाएं और एक घड़ी पड़ी हो तो उसको खोलना है। या खुला है तो उसको जोड़ना है।

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जब यह रेंडमली सवाल आएगा तो सभी पहले से तैयारी करेंगे। सभी पहले से घड़ी खोलने में लगे रहेंगे। कोचिंग सेंटर भी घड़िया खुलवाएंगी। पैरेंट्स डांटेंगे नहीं और दो घड़ी लाकर देंगे कि खोलो बेटा। पूरा इको सिस्टम बदल जाएगा अगर एंट्रेंस एग्जाम बदल जाएगा। और सही लोग फिर वहां पहुंचेंगे। इंटरेस्टेड लोगों को जगह मिलेगी। अभी गलत लोग जा रहे हैं, इनमें से 80-90 प्रतिशत तो इंजीनियरिंग करते ही नहीं हैं। फिर देश में रहते ही नहीं तो फिर क्या कर रहा है भारत, दुनिया की सेवा कर रहा है।