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सावन का पहला सोमवार : सुबह से शिवालयों में गूंजे ओम नम: शिवाय के पंचाक्षरी मंत्र

सावन महीने के पहले सोमवार 30 जुलाई को शिवालयों में सुबह से ही भगवान भोलेनाथ के प्रिय पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का जयघोष गूंजे।

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Lord Shiva

सावन में पूरे एक माह तक शिव जी रहते हैं यहां, इस वजह से लेना पड़ा था उन्हें यह फैसला

भिलाई. सावन महीने के पहले सोमवार 30 जुलाई को शिवालयों में सुबह से ही भगवान भोलेनाथ के प्रिय पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का जयघोष गूंजे। पहले सोमवार से ही ट्विनसिटी सहित आस-पास के ग्रामीण इलाकों के मंदिरों में शिव भक्तों का तांता लगा। दुर्ग में जहां शिवनाथ नदी किनारे स्थित शिव मंदिर में वहीं भिलाई के विभिन्न सेक्टरों सहित पटरी पार स्थित मदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही।

खारुन नदी के बीच भोलेनाथ का मंदिर

रानीतराई पाटन से लगभग 6 किलोमीटर दूर ठकुराइनटोला में खारुन नदी के बीच भोलेनाथ का मंदिर आस्था का केंद्र है। राजिम में तीन नदियों के संगम में कुलेश्वर महादेव के मंदिर से आप वाकिफ होंगे। उसी तर्ज पर खरून नदी में निषाद समाज ने इस शिव मंदिर का निर्माण किया है। इस गांव में निषाद समाज के लोगों की बहुलता है। जानकारी के अनुसार 1941 में निषाद समाज के मुखिया (राजा) ने राजिम प्रवास के दौरान महानदी,सोंढूर और पैरी नदी के संगम में कुलेश्वर महादेव का मंदिर देखा। उसे देखकर उनके मन में यह बात आई कि ठकुराइन टोला में भी खारुन नदी और नाले के मध्य धारा में ऐसा ही मंदिर निर्माण किया जाए। उन्होंने निषाद समाज के प्रमुख लोगों से मंत्रणा की और निषादों ने आपसी सहयोग से मंदिर बनवाने की योजना बनाई।

उत्तराभिमुख है शिवलिंग की पीठिका,जल प्रणाली दक्षिण में
यह मंदिर खारुन नदी के बीचों बीच स्थित है। नदी के बीच पत्थरों को ही कुशल शिल्पकारों ने वर्गाकार काट कर मंदिर का निर्माण किया है। लगभग आधी शताब्दी तक काम चलने के बाद सन् 1980 में जगती का काम पूरा हुआ। जगती के उपर शिव मंदिर उत्तराभिमुख निर्मित है। गर्भगृह में शिवलिंग की पीठिका भी उत्तराभिमुख है पर जल-प्राणालिका दक्षिण में है। मंदिर के निर्माण का कार्य 1984 में पूर्ण हुआ था। धमतरी के निकट के पास ग्राम सोरर के शिल्पकार द्वारा निर्मित शिवलिंग की प्रतिमा इस मंदिर में स्थापित है। सावन में पूरे महीने दूर-दूर से शिवभक्त कांवर से जल लेकर जलाभिषेक करने आते हैं। कमर और गले तक पानी भरे होने पर भी लोग मंदिर में आसानी से चले जाते हैं।

पहले नदी के तट पर ही बसा था गांव
ठकुराइनटोला गांव पहले नदी के तट पर ही बसा था। बताते हैं कि १९४२ और १९४७ में खारून नदी में भीषण बाढ़ आई थी। जान-माल का काफी नुकसान हुआ था। तब ग्रामीणों ने गांव को नदी से दूर टीले पर बसाने का निर्णय लिया। निषादों ने नदी से आधा किलोमीटर दूर बस्ती बसाई।

नदी के दोनों तरफ लगता है मेला
महाशिवरात्रि पर खारुन नदी के दोनों किनारे मेला लगता है। नदी के इस पार दुर्ग और उस पार रायपुर जिले की सीमा है। नदी को दोनों किनारों में अन्य मंदिरों का निर्माण किया जा चुका है।