
यों पकती है नशे की फसल
नरेन्द्र वर्मा . भीलवाड़ा।
काला सोना यानि अफीम। अब खेतों में डोडों पर चीरा लगने के साथ ही किसानों के चेहरे कमाई की आस में चमकने लगे हैं। अफीम के खेत ही किसानों का आशियाना बन गए हैं। भीलवाड़ा अफीम प्रभाग के कोटड़ी, मांडलगढ़, जहाजपुर, बिजौलियां व चित्तौडग़ढ़ जिले की बेगूं व रावतभाटा में किसानों ने अफीम के डोडों पर चीरा लगा लुआई (दूध इकट्ठा करना) शुरू कर दी है। जिला अफीम अधिकारी ने एसके सिंह ने बताया कि अफीम का तोल अप्रेल के प्रथम सप्ताह में होगा। भीलवाड़ा में प्रभाग में 233 गांवों के किसानों को 5246 पट्टे जारी किए गए। इनमें से 5240 किसानों ने 518.8308 हेक्टेयर में बुवाई की। प्रभाग में 258 लंबरदार हैं।
क्या है चिराई-लुआई
डोडों पर दोपहर बाद लोहे के नुकीले तार से चीरा लगाया जाता है। दूध को रातभर पौधे पर रखा जाता है। दूसरे दिन चीरों पर जमे अफीम के दूध को चम्मच से इकट्ठा करने को लुआई कहते हैं। प्रतिदिन लुआई के बाद गांव के लम्बरदार यानि मुखिया के यहां अफीम का तोल होता है। इसके बाद किसान अफीम घर में रखते हैं।
उपज के तीन रूप
01. दूध : दूध की खुले में बिक्री पर रोक है। इसकी खरीद केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो तय तौल केन्द्र पर करता है।
02. डोडा : दूध निकालने के बाद बचे डोडे का आबकारी विभाग करीब १२५ रुपए प्रतिकिलो की दर से खरीदता था। दो साल से रोक के बाद सरकारी स्तर पर इनको नष्ट किया जाता है।
03. पोस्तदाना: थोक व फुटकर दुकानों पर400 से 700 रुपए प्रतिकिलो के भाव से मिल जाता है।
नीमच जाती है अफीम
भीलवाड़ा प्रभाग की अफीम की मध्यप्रदेश में नीमच फैक्ट्री में गुणवत्ता की जांच होती है। जांच में मॉफीन सघनता शुष्क आधार पर नौ प्रतिशत से कम या मिलावट होने पर घटिया श्रेणी में रखा जाता है।
पुलिस मानती है एक लाख रुपए प्रतिकिलो
पुलिस कार्रवाई में जब्त अफीम की अंतरराष्ट्रीय बाजार कीमत एक लाख रुपए प्रतिकिलो तक आंकी जाती है। हालांकि नारकोटिक्स ब्यूरो औसत व गाढ़ता के आधार पर प्रतिकिलो 1500 से 3500 रुपए का भुगतान किसान को करता है।

Published on:
11 Mar 2019 01:00 am
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